आने वाली परीक्षा की चिंता हो या जॉब इंटरव्यू की, चिंता होना सामान्य है जब तक यह नियंत्रण में हो। कोई भी घटना महत्वपूर्ण है, तो चिंता होना लाजमी है। लेकिन अगर आपको हर बात को लेकर टेंशन होने लगी है, तो आप एंग्जायटी का शिकार हो सकते हैं।
एंग्जायटी होना कोई फेज नही है। यह एक बड़ी समस्या है जिसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता। यह आपके जीवन में परेशानी की वजह बन सकती है और बहुत कष्टकारी होती है। एंग्जायटी आपके दोस्तों और परिवार से रिश्तों को भी प्रभावित कर सकती है।
हमने जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ समीर पारिख से जाना कब एंग्जायटी चिंता का विषय बन जाती है। डॉ पारिख कहते हैं, “जब आपको लगे कि आपकी एंग्जायटी से आपको कई दिनों या हफ्तों तक दिक्कत होने लगे, परिवार या दोस्तों से सम्बंध खराब होने लगे, दिनचर्या पर प्रभाव पड़ने लगे, नींद ना आये, काम में दखल हो या भूख ना लगे तो समझ लीजिए आपकी एंग्जायटी बेकाबू हो गयी है।”
डॉ पारिख बताते हैं कुछ ऐसी निशानियां जिनसे आप पता लगा सकते हैं कि आपको एंग्जायटी है या नहीं।
1. आपको हर वक्त चिंता होती है, जबकि स्थिति चिंताजनक है भी नहीं।
2. आपको एंग्जायटी के कारण परेशानी होने लगी है।
3. एंग्जायटी आपकी दिनचर्या को प्रभावित कर रही है।
4. अगर आप लोगों से कांटेक्ट करने से बच रहे हैं तो यह एंग्जायटी का ही लक्षण है।
डॉ. पारिख कहत हैं, “आपको अपनी चिंता करने की आदत में पैटर्न समझ आएगा। आप हर छोटी बात पर परेशान होने लगेंगे, छोटी छोटी गलतियां करने लगेंगे जो आप सामान्य तौर पर कभी नहीं करते, लोगों से बात करना अवॉयड करने लगेंगे और आत्मविश्वास की बहुत कमी होगी। यही संकेत हैं कि आपको एंग्जायटी मैनेज करने के लिए मदद की जरूरत है।”
इसके अलावा कुछ शारीरिक लक्षण भी आपको नजर आएंगे। बहुत अधिक पसीना आना, सांस फूलना, बेचैनी होना, भूख कम लगना, पेट खराब रहना, सर भारी लगना और हकलाना भी एंग्जायटी के लक्षण हैं।
दरअसल एंग्जायटी दिमाग के जिस हिस्से को प्रभावित करती है, वह हमारे दिल और पेट की नसों को मैनेज करता है। यही कारण है कि एंग्जायटी होने पर हमारी दिल की धड़कन बढ़ जाती है और पेट खराब हो जाता है।
हमारा दिमाग ही पूरे शरीर को नियंत्रित करता है, ऐसे में दिमाग पर पड़ने वाला कोई भी प्रभाव शरीर को प्रभावित करता ही है। डॉ पारिख बताते हैं कि एंग्जायटी होने पर हमारा शरीर केमिकल असंतुलन के कारण इस तरह रिएक्ट करता है।
अधिकतर एंग्जायटी और स्ट्रेस का पैटर्न जेनेटिक होता है। अगर आप बहुत चिंता करते हैं, तो आपके बच्चे भी बहुत चिंता करेंगे। जेनेटिक्स, पुराने अनुभव, सदमे, आसपास का माहौल और वातावरण आपकी एंग्जायटी पर बहुत प्रभाव डालते हैं। लेकिन सिर्फ यही एंग्जायटी के लिए जिम्मेदार नहीं होते।
कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (Cognitive behavioural therapy) एक खास तरह की साइकोथेरेपी है जो व्यक्ति के विचारों और आदतों को बदल सकती है। यह थेरेपी एंग्जायटी का इलाज करने में कारगर साबित हुई है। एंग्जायटी खत्म करने का तरीका है अपनी भावनाओं को अपनाना।
बिहेवियर थेरेपी में दवाओं के मुकाबले ज्यादा समय लगता है और मरीज की ओर से ज्यादा एफर्ट लगता है। लेकिन एक बार आप आदत में आ जाएं तो थेरेपी आसान हो जाती है। और इसका फायदा ज्यादा लॉन्ग लास्टिंग होता है।
डॉ पारिख बताते हैं, “शुरुआती समय में ही अगर आपको महसूस होता है कि आपको कुछ समस्या हो रही है तो किसी से बात करें। अपनी समस्या किसी दोस्त से साझा करें। आपको सीधे मनोचिकित्सक के पास जाने की जरूरत नहीं है। अगर समस्या बढ़ रही है तो प्रोफेशनल मदद लें। इसके लिए आपको दवा, मेडिटेशन, थेरेपी या काउन्सलिंग के रूप में मदद दी जाएगी।”
एंग्जायटी लाइलाज नहीं है, बस मदद मांगने की जरूरत है।
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