अवसाद यानी डिप्रेशन व्यक्ति के महसूस करने के, सोचने और कार्य करने के तरीके को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। अवसाद उदासी की भावनाओं या दिन भर की गतिविधियों के प्रति उदासीन होने का कारण बनता है, जिन्हें पहले व्यक्ति ठीक तरह से कर लिया करता था। इससे कई तरह की भावनात्मक और शारीरिक समस्याएं भी हो सकती हैं। ऑफिस और घर पर काम करने की क्षमता कम हो सकती है। लोग अब इसके बारे में जागरुक हो रहे हैं और बात कर रहे हैं। पर कोई भी गलत जानकारी स्थिति को और भी खतरनाक बना सकती है। इसलिए यहां हम उन सभी सवालों के जवाब दे रहे हैं, जो लोग अवसाद या डिप्रेशन (FAQs about depression) के बारे में बार-बार पूछ रहे हैं।
अवसाद वास्तव में एक डिसऑर्डर है, जो लगातार उदासी की भावना और उन चीजों एवं गतिविधियों में रुचि की कमी का कारण बनता है, जिनका कभी व्यक्ति आनंद लेता था। इससे सोचने, चीजों को याद रख पाने, खाने और सोने में भी कठिनाई हो सकती है।
जीवन की कठिन स्थितियों पर दुखी होना सामान्य बात है। अवसाद इस मायने में अलग है कि यह व्यावहारिक रूप से कम से कम दो सप्ताह तक हर दिन बना रहता है। इसमें उदासी के अलावा अन्य लक्षण भी शामिल होते हैं।
डिप्रेशन या अवसाद कई प्रकार का हो सकता है। क्लिनिकल डिप्रेशन या प्रमुख अवसाद विकार सबसे गंभीर प्रकार का अवसाद है। उपचार के बिना अवसाद बदतर हो सकता है। यह लंबे समय तक बना रह सकता है। गंभीर मामलों में यह आत्महत्या या मृत्यु का कारण भी बन सकता है। इसके लक्षणों को सुधारने में उपचार प्रभावी हो सकते हैं।
मेंटल हेल्थ जर्नल के अनुसार, अवसाद अनुमानित रूप से 15 वयस्कों (6.7%) में से एक को प्रभावित करता है। छह में से एक व्यक्ति (16.6%) अपने जीवन में कभी न कभी अवसाद का अनुभव करता है। अवसाद किसी भी समय हो सकता है। अवसाद के सबसे ज्यादा मामले किशोरावस्था के अंत से लेकर 20 के दशक के मध्य तक देखे जाते हैं। इस उम्र में व्यक्ति को अपने मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अवसाद का अनुभव होने की संभावना अधिक होती है। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि एक तिहाई महिलाएं अपने जीवनकाल में बड़े अवसाद प्रकरण का अनुभव करती हैं। प्रथम श्रेणी के रिश्तेदारों (माता-पिता/बच्चे/भाई-बहन) को अवसाद होता है, तो संबंधित व्यक्ति को अवसाद होने की संभावना लगभग 40% बढ़ जाती है।
महिलाओं में पुरुषों की तुलना में दोगुना अवसाद विकसित होता है। इसका एक कारण हार्मोन के स्तर में होने वाले विभिन्न बदलाव हो सकते हैं, जो महिलाएं अनुभव करती हैं। उदाहरण के लिए, गर्भावस्था और रजोनिवृत्ति के दौरान अवसाद आम है।
साथ ही बच्चे को जन्म देने के बाद, गर्भपात से पीड़ित होना या हिस्टेरेक्टॉमी होना, ये सभी ऐसे समय होते हैं जब महिलाओं को हार्मोन में भारी उतार-चढ़ाव का अनुभव होता है। प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (PMS) और प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (PMDD), जो पीएमएस का चरम रूप है, अवसाद का कारण बन सकता है।
नहीं, यह जरूरी नहीं है कि अवसाद से पीड़ित सभी लोग आत्महत्या का प्रयास करें या उसके बारे में सोचें। मगर आंकड़े बताते हैं कि अवसाद से पीड़ित होने के कारण आत्महत्या के प्रयास का जोखिम ज्यादा बढ़ जाता है। मेंटल हेल्थ जर्नल के अनुसार, आत्महत्या करने वाले 30%-70% पीड़ित किसी न किसी रूप में अवसाद से पीड़ित होते हैं।
यह हो सकता है, एक बार अवसाद का अनुभव करने के बाद व्यक्ति को भविष्य में भी ऐसा होने का जोखिम बढ़ जाता है। इसके लिए व्यक्ति की भावनात्मक संरचना जिम्मेदार हो सकती है। कोई एक व्यक्ति यदि भावनात्मक रूप से कमजाेर है और चीजों को ठीक तरह से डील नहीं कर पाता है, तो डिप्रेशन का जोखिम बढ़ सकता है।
मगर यह सभी के साथ हो, यह जरूरी नहीं है। कभी-कभी अवसाद किसी प्रमुख जीवन घटना, बीमारी या किसी निश्चित स्थान और समय के लिए विशेष कारकों के संयोजन से उत्पन्न होता है। अवसाद बिना किसी स्पष्ट कारण के भी हो सकता है।
यदि उपचार न किया जाए तो विभिन्न प्रकार के अवसाद विकार महीनों या कभी-कभी वर्षों तक बने रह सकते हैं। अवसादग्रस्तता की पहचान लक्षणों के एक समूह से होती है, जो आम तौर पर कुछ महीनों तक रहते हैं।
व्यक्ति का अपने आप को अकेला महसूस करना या उसका अकेला होना, अवसाद का एक प्रमुख ट्रिगर पॉइंट हो सकता है। साथ ही धूप या विटामिन डी की कमी उदासी की भावनाओं को बढ़ाने में योगदान करती है। अमूमन होलीडे सीजन, जिसे क्रिसमस के आसपास सर्दियों में माना जाता है, को मौसमी अवसाद के लि
इस समय सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर या मौसमी अवसाद की चपेट में आने का जोखिम बढ़ जाता है। इस मौसम में विटामिन डी और सोशल कनैक्टिविटी दोनों कम हो जाते हैं। आइसोलेशन के कारण व्यक्ति उदास और यूजलेस महसूस कर सकता है। वसंत और गर्मियों के मौसम में इस स्थिति में सुधार हो सकता है। स्थिति अगर गंंभीर हो तो विशेषज्ञ से कंसल्ट जरूर करना चाहिए।
डिस्टीमिया जिसे आमतौर पर लगातार अवसादग्रस्तता विकार के रूप में जाना जाता है। अवसाद का एक हल्का और कभी-कभी कम पहचानने योग्य रूप है, जो वयस्कों में 2 साल या उससे अधिक समय तक रहता है। यह जीवन की गुणवत्ता को बाधित करता है और अगर इलाज न किया जाए तो बड़े अवसाद का कारण बन सकता है। अपने शरीर और मन में होने वाले किसी भी तरह के बदलाव के प्रति आपको सजग रहना होगा।
कभी-कभी आपके आसपास के लोग और माहौल भी इसे ट्रिगर कर सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि आप इसके लक्षणों को पहचान कर सेल्फ हेल्प के लिए आगे बढ़ें।
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