रोजमर्रा के जीवन में अपने आसपास हमें कई ऐसे लोग देखने को मिलते हैं, जो सेल्फटॉक का सहारा लेते हैं। वे बैठे-बैठे खुद से बातें करने लगते हैं और खुद को ही सेल्फ मोटिवेट भी करते हैं। क्या आपके साथ भी ऐसा हुआ है कभी। हांलाकि कुछ लोग अपने आप से बात करने को पागलपन का भी नाम देते हैं। सेल्फटॉक को लेकर लोगों के मन में एक दुविधा बनी रहती है। अगर आप भी इस सवाल का जवाब खोज रहे हैं, तो पूरा लेख पढ़ें और जानें सेल्फ टॉक के फायदे। साथ ही जानें ये किन लोगों के लिए हो सकती है नुकसानदायक (Does self-talk is normal)।
जर्नल ऑफ पर्सनेलिटी एंड सोशल साइकॉलोजी के मुताबिक व्यक्ति सामाजिक तनाव महसूस करने पर खुद से बातें करने लगता है, जिससे मानसिक तौर पर सुकून प्राप्त होता है। सेल्फ टॉक के समय इस बात का विशेष ख्याल रखें कि खुद से बात करते वक्त आप थर्ड पर्सन का इस्तेमाल तो नहीं कर रहे। खुद से कलेक्ट होने के लिए मैं या मेरे लिए जैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। युनिवर्सिटी ऑफ हॉस्टन ग्रेजुएट कॉलेज की एक रिसर्च के अनुसार पॉजिटिव सेल्फ टॉक से लंबे वक्त से चले आ रहे तनाव और एंग्ज़ाइटी से मुक्ति मिल जाती है।
एक्सपर्ट के अनुसार जहां सेल्फ टॉक कुछ लोगों में बीमारी को दर्शाती है, तो वहीं ये बहुत से लोगों में नेचुरल हेबिट के तौर पर भी पाई जाती है। इससे व्यक्ति खुद को रिलैक्स रखने का प्रयास करता है और मन में कैद फ्रसटरेशन को भी निकाला जा सकता है। सेल्फटॉक के ज़रिए सेल्फहॉर्म से बचा जा सकता है। जानते हैं सेल्फटॉक के कुछ फायदे।
वे लोग जो किसी बात को लेकर परेशान रहते हैं। वे सेल्फटॉक के ज़रिए अपने तनाव को रिलीज़ करने लगते हैं। इससे किसी कारण बढ़ने वाले एग्रेशन से राहत मिल जाती है और खुद से बात करके गुस्से को दूर किया जा सकता है। सेल्फ टॉक करने वाले लोगों को अपनी बात कहने के लिए किसी दोस्त की आवश्यकता नहीं होती है।
अधिकतर लोग मन में भावनाओं को छुपाकर और दबाकर रखते हैं। जब उनका स्तर बढ़ने लगता है, तो व्यक्ति सेल्फ टॉक के ज़रिए खुद से ही अपने इमोशंस को बात करके, गुस्सा करके और हाथ हिलाकर एक्सप्रैस कर देता है। इससे मन में बढ़ने वाली भावनाओं को दूर करने में मदद मिलती है।
दिनभर में होने वाली सभी अच्छी बुरी बातें अगर कोई व्यक्ति अपने आप से ही जाहिर करने लगता है, तो ये एक सेल्फ क्रिएटिड ट्रीटमेंट की कैटेगरी में आता है। इसमें व्यक्ति कमरा बंद करके अपनी भावनाओं को अपने समक्ष ज़ाहिर करने लगता है, जिससे व्यक्ति मानसिक तौर पर रिलैक्स फील करने लगता है।
अगर कोई इंसान अपनी समस्याओं को अपने आप से ही बांट लेता है, तो उसके मन में खुद को नुकसान पहुंचाने के बुरे ख्याल नहीं आते हैं। सेल्फ हार्म से बचने के लिए अपने आप से बात करना बेहद कारगर उपाय है। इससे रोजमर्रा की चिंताओं को व्यक्ति दूसरों के सामने व्यक्त करने की बजाय खुद के साथ ही साझा करने लगता है।
किसी अन्य दोस्त की कामना करने की जगह ऐसे लोग स्वंय के अच्छे दोस्त बन जाते हैं। वे अपने आप से बात करने अपनी अच्छाई और बुराई के बारे में जान पाते हैं और हर परेशानी का हल खोज लेते हैं। ऐसे लोगों को अपनी बात कहने के लिए अन्य लोगों की आवश्यकता नही होती है।
इस बारे में बातचीत करते हुए मनोचिकित्सक डॉ युवराज पंत बताते हैं कि खुद से बात करना मानसिक रोगों का लक्षण भी माना जाता है। वे लोग जो सड़क पर चलते हुए या खाली बैठे हुए बिना किसी की ओर देखे अपने आप से ही हाथों को हिलाते हुए बातें करते रहते हैं, वे मेंटल डिसऑर्डर का शिकार होते हैं।
ऐसे लोग सिज़ोफ्रेनिया और सायकोसिस जैसे रोग का शिकार होते हैं। दरअसल, इन रोगों से ग्रस्त व्यक्ति को अपने इर्द गिर्द कई प्रकार की आवाजें सुनने को मिलती हैं। उन आवाज़ों का रिस्पॉंस करने के लिए वे बोलते है। मगर ऐसा प्रतीत होता है कि वो इंसान खुद से ही बातें कर रहा है। इस स्थिति को सेल्फ मटरिंग भी कहते हैं।
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