कई बार चुपचाप एक कोने से बैठा बच्चा अपने आप से ही बातें करने लगता है। मन ही मन उठ रहे सवालों को वो ये सोचकर दबा लेता है कि कहीं कोई उसे डांटेगा तो नहीं। अब घर से बाहर निकलने में भी कतराता है कि कोई उसका मज़ाक तो नहीं उड़ाएगा। दूसरी ओर पेरेंटस ये सोचकर बात को टाल देते हैं कि ये तो मनमौजी है। जब मन करेगा, तो अपने आप खेल लेगा। माता पिता का ये रवैया बच्चों की मेंटल हेल्थ (Mental health) खराब कर सकती है (nudging For Kids) ।
दरअसल, जब तक माता पिता पूरी तरह से बच्चों के साथ हर काम में भागीदारी नहीं देंगे, वो आगे नहीं बढ़ेगे। बहुत बार ऐसा होता है कि उन्हें इंडीपेंडेंट(Independent) करने के नाम पर पेरेंटस अपनी जिम्मेदारियों से भागने लगते है। जानते हैं बच्चों में मानसिक असंतुलन बढ़ने के कुछ ट्रिगर प्वाइंटस।
बच्चों की मेंटल हेल्थ फोक्स करना माता पिता की पहली ज़िम्मेदारी है। इस बारे में पेरेंटिंग कोच डॉ पल्लवी राव का कहना है कि बच्चे को ओवर प्रोटेक्ट करना कई बार उसकी ग्रोथ को रोकने का काम करता है। बच्चों के हर काम में उन्हें हेल्प करने की जगह उन्हें मॉनिटर करें।
पेरेंटिंग कोच डॉ पल्लवी राव का कहना है कि पेंरेटल ट्रिगर बच्चे के मानसिक तनाव का सबसे अह्म कारण साबित होता है। दूसरे बच्चों के साथ अपने बच्चे की आदतों को कंपेयर करना और उनसे उम्मीद से ज्यादा अपेक्षाएं करना गलत है। चाइल्ड डवेल्पमेंट पूरी तरह से न हो पाने का कारण कई बार पेरेंटस का सेपरेशन या बच्चे की पढ़ाई और अन्य एक्टिविटिज़ में पेरेंटस के ज्यादा इन्वालवमेंट (Parents involvement) का न होना भी एक कारण होता है। बहुत से पेरेंटस ऐसे भी है, जो बच्चे को बात बात पर डांटना, मारना और कठिन सज़ा देने का प्रयास करते हैं। इसका भी बहुत गहरा प्रभाव बच्चे के विकास में बाधा का काम करता है।
सोसायटी बच्चों को कई मायनों में प्रभावित करने का काम करती है। वो प्रभाव सकारात्मक भी हो सकते हैं और नकारात्मक भी। डॉ पल्लवी के मुताबिक बच्चे जिस सोयाटी में रहते हैं, वहीं से हर चीज़ सीखते है। कई बार जेंडर को लेकर किया जाने वाला भेदभाव, तो कभी हर फील्ड में अच्छा परफार्म करने और दूसरे बच्चों से आगे निकलने का प्रेशर बच्चों के मस्तिष्क पर गहरा असर डालता है। बच्चे अंदर ही अंदर खुद को लूज़र महसूस करने लगते है। कई बार बच्चों को बुलिंग का भी सामना करना पड़ता है। बच्चों की अवस्था को समझने का प्रयास करना बेहद ज़रूरी है।
ये वो सिचुएशन है, जब बच्चा अपने अपनी बॉडी में कई प्रकार के बदलाव देख रहा होता है। हार्मोनल चेंजिज़ बच्चों को कई बार काफी परेशान कर देते हैं। उन्हें एक्सेप्ट करने में भी बच्चे को समय लगता है। वो इस बात पर ध्यान देने लगता है कि मैं अब कैसा दिखूंगा। इसके अलावा कई बार सेक्सुअल एब्यूज़ और फिज़िकल एब्यूज़ भी बच्चे के मानसिक असंतुलन का कारण साबित हो सकते हैं।
आजकल हर कोई टैब, मोबाइल और लैपटॉप का इस्तेमाल कर रहा है। इसके अंदर कई बार बच्चे कुछ ऐसी एप्लीकेशन्स भी डाउनलोड कर लेते हैं, जो उनके लिए परेशानी बनने लगती है। ऐसे में बच्चों के स्क्रीन टाइप और स्क्रीन टाइप पर नज़र रखना ज़रूरी है। डॉ पल्लवी के मुताबिक हमें इस बात पर ध्यान देना है कि बच्चा कितनी देर तक एक्टिव स्क्रीन टाइम में इनडल्ज है और कितना समय पैसिव पर बिता रहा है। अगर बच्चा कुछ लर्न करद रहा है, तो वो उसे मानिक विकास में कारगर साबित होता है। इतना ही नहीं साइबर बुलिंग भी बच्चे के दिमाग को प्रभावित करती है।
एक्सपर्ट का कहना है कि हमारे आस पास घटने वाली घटनाएं भी बच्चों की सोच को बदलने का काम करती है। किसी का जन्म, मृत्यु या बीमारी कई बार बच्चों का सदमे में भी लेकर जा सकती है। माहौल में बदलाव आने या स्कूल बदलने से भी बच्चा चुपचुप रहने लगता है। किसी के भी संपर्क में आने से कतराता है। कई बार अकेले बैठकर रोने लगता है। ये सभी लक्षण बच्चे के मेंटल इम्बैलेस होने को दर्शाता है।
फेलियर जीवन में बहुत कुछ सिखा कर जाता है। बच्चे को हर वक्त जीताने की कोशिश न करें।
इससे बच्चे में काफिडेंस बिल्ट नहीं हो पाएगा।
लोगों से मिलने जुलने दें और उन्हें बात बात पर टोकना बंद कर दें।
स्क्रीन टाइम को एक्टिव और पैसिव दो भागों में बांटकर चलें।
बच्चों को अपने फैसलों में शामिल करें और उनकी राय को महत्व दें।
बच्चों को गिरकर संभलने दें, ताकि वे हर हाल में मज़बूती से आगे बढ़ सके। उसे हर जगह पर सहारा देने की कोशिश न करें।
बच्चों को गिफ्टस देकर खुश करने बजाय, उनके साथ समय व्यतीत करें।
ये भी पढ़ें- यदि दोनों पेरेंट्स को है मायोपिया है, तो इन 5 चीजों को ध्यान में रख बच्चों को बचा सकते हैं दृष्टि दोष से