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2023 में टेंशन और डिप्रेशन से बचना है, तो पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में याद रखें भगवद गीता के ये सबक

गीता में समझाया गया एक और गहरा जीवन का पाठ है, 'जो कुछ पहले किसी और का था, वह आज तुम्हारा है। और जो आज तुम्हारा है, वह भविष्य में किसी औ,र का होगा।’ इसलिए पॉजिशन में बदलाव से घबराना मूर्खता है।
गीता के सबक आपकी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को बेहतर बना सकते हैं। चित्र : अडोबी स्टॉक
AIR - Atman in Ravi Updated: 20 Oct 2023, 10:01 am IST
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अध्यात्मिकता आत्मा का विज्ञान है। जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य इस सत्य की अनुभूति करना है कि हम यह शरीर, मन और अहंकार नहीं हैं। मानव शरीर नश्वर है। यह हमारी मां के गर्भ में हमारे गर्भधारण के बाद ही बना था और हमारे मरने के बाद या तो इसे जला दिया जायेगा या फिर दफना दिया जायेगा। यह शरीर जो पांच तत्त्वों से बना है, पुन: उन पांच तत्त्वों में मिल जयेगा। जिस मन को हम इतना महत्व देते हैं और जो हम पर शासन करता है, वास्तव में उसका अस्तित्व ही नहीं है। अगर आप नव वर्ष 2023 में तनाव और अवसाद से बचे रहना चाहती हैं, तो श्रीमद्भगवद् गीता के ये सबक (lessons from Gita at work) आपके काम आ सकते हैं।

धर्म से अलग है आध्यात्मिकता 

भले ही भगवद् गीता एक हिंदू धार्मिक ग्रंथ है, परंतु गीता जो ज्ञान देती है, उसका सार गहरा है और इसका पालन कोई भी कर सकता है जो अपनी आध्यात्मिक यात्रा में सर्वोच्च लक्ष्य प्राप्त करना चाहता है।

आध्यात्मिकता किसी एक धर्म तक ही सीमित नहीं है, यह आपको मुक्त करती है। चित्र: अडोबी स्टॉक

आध्यात्मिकता धार्मिक बाधाओं से परे है और एक आध्यात्मिक मनुष्य ज्ञान के धन को संचित करता है, जो उसे चित्, ध्यान या विचारहीनता की स्थिति में ले जाएगा, एक ऐसी स्थिति जिसमें उसका मन नहीं होगा और उसकी बुद्धि चमक उठेगी। बुद्धि, जो उसे विवेक की शक्ति देगी। इसलिए, ये भगवद गीता के सार से मिले सरल व सुंदर पाठ हमारे दैनिक जीवन में पालन किये जा सकते हैं और इनसे जीवन को आध्यात्मिक, पूर्ण और खुशहाल बनाया जा सकता है।

समझिए क्यों कहीं मन लगता है और कहीं नहीं लगता

मन सिर्फ विचारों का गुच्छा है। जब विचार प्रकट होते हैं तब मन भी प्रकट होता है और जब विचार गायब हो जाते हैं, तब मन भी गायब हो जाता है। हम अहंकार भी नहीं हैं। अहंकार जो सदैव ‘मैं, मेरा’ करता है, हमें गर्व और झूठी पहचान की भावना देता है। जब हमें एहसास होगा कि हम यह शरीर, मन और अहंकार नहीं हैं, तब हमें यह बोध होगा कि हम आत्मा हैं।

आत्मा दिव्य है। आत्मा जन्म-रहित और मृत्युहीन है। आत्मा प्रभु से आती है और प्रभु में वापस चली जाती है। जब हमें यह अनुभूति होगी कि हम एक दिव्य अमर आत्मा हैं, तब हम मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्रव्यूह से मुक्ति प्राप्त कर लेंगे और इस शरीर के मृत्यु के पश्चात, उस सर्वोच्च अमर शक्ति, जिसे हम प्रभु कहते हैं, उस शक्ति से एकीकृत हो जायेंगे।

यहां हैं वे गीता के वे सबक जो आपकी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में आपको कूल बने रहने में मदद करेंगे 

भगवद् गीता ज्ञान का खज़ाना है और इस ग्रंथ में दी गयी शिक्षा को हमारे जीवन के आध्यात्मिक पथ पर चलने के लिए, एक नींव के रूप में रखा जा सकता है। भगवद गीता में कुछ अतिसुंदर, सरल और गहरे जीवन की शिक्षा दी गई हैं। जिनका अनुसरण करके मनुष्य का आध्यात्मिक विकास हो सकता है।

1 हमेशा कुछ अच्छा होता है 

भगवद् गीता से हमें यह सीख मिलती है कि, ‘जो कुछ भी हुआ, अच्छे के लिए हुआ। जो कुछ हो रहा है, वह अच्छे के लिए ही हो रहा है। और जो भी होगा, अच्छा ही होगा।’ हमारा जीवन कर्म के नियम से संचालित होता है। प्रारब्ध कर्म पिछले कर्म हैं, जो हमारे जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हैं। यदि यह, वह मार्ग है जो पहले से ही निर्धारित है, तो हमारे वर्तमान कर्म वह दिशा हैं जिस दिशा में हम वर्तमान समय में जीवन की गाड़ी में जा रहे हैं।

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2 काम करने में ही सार्थकता है 

हमारे वर्तमान कर्म हमारे भावी जीवन का मार्ग प्रशस्त करेंगे। अतः हमारे वर्तमान कर्म अच्छे होने चाहियें। हमें सदैव ईश्वरीय इच्छा की स्वीकृति में रहना चाहिए और जीवन में परिस्थितियों का विरोध किए बिना उन्हें स्वीकार करने चाहिए, क्योंकि जो हुआ या जो होगा, अच्छा ही होगा, प्रभु की इच्छा के अनुसार ही होगा।

प्रोडक्टिविटी आपको हमेशा आपके लिए फायदेमंद होती है। चित्र : अडोबी स्टॉक

ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव हमारे भीतर की अराजकता को शांत करेगा और हमें शांति की अनुभूति कराएगा। हमें जीवन और उसकी परिस्थितियों को स्वीकार करने के साथ-साथ, सर्वोत्तम कर्म करने पर भी ध्यान देना चाहिये।

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3 क्यों हो खोने का दुख 

भगवद् गीता में कहा गया है, ‘तुमने क्या खोया जिसके लिए तुम विलाप कर रहे हो? तुम अपने साथ क्या लाये थे जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया जो नष्ट हो गया? तुम्हे जो कुछ भी मिला है, यहीं से मिला है। जो भी तुम्हे मिला, तुमने यहीं से लिया। और तुम उसे यहीं देकर, यहीं छोड़कर जाओगे।’ यह जीवन का अटूट सत्य है कि जब हम पैदा होते हैं तब अपने साथ कुछ भी नहीं लाते। यह शरीर भी नहीं।

हमारा शरीर हमारी मां के गर्भ में गर्भधारण के बाद 9 महीने की अवधि में बनता है। और एक बार जब हम मर जाते हैं, तब हम कुछ भी वापस नहीं ले जा सकते। सब कुछ पीछे छूट जायेगा। यह शरीर भी। इस संसार से हम एक सुई भी नहीं ले जा सकते हमारे मृत्यु के पश्चात। फिर हम मनुष्य, भौतिकवादी लाभ के पीछे क्यों भागते हैं? हम जो भी धन सम्पत्ति कमाते हैं, मरने के बाद, दूसरे ही उसका उपयोग करेंगे।

4 ईगो देती है तनाव 

लोग, संपत्ति और भौतिक सुख, अस्थायी सुख हैं। यह हमारे जीवन में दुख लाते हैं। शरीर, मन और अहंकार पृथ्वी पर हमारे त्रिविध पीड़ा का कारण बनते हैं – भौतिक शरीर का दर्द, मन का दु:ख और अहंकार व झूठी पहचान की पीड़ा। अध्यात्मिकता ही एकमात्र मार्ग है जिससे व्यक्ति अपनी अज्ञानता को दूर कर सकता है, जीवन के सत्य की अनुभूति कर है, बोध और ज्ञान की प्राप्ति कर सकता है और इन सभी कष्टों और दु:खों से मुक्ति पा सकता है।

5 बदलती रहती है पॉजिशन 

गीता में समझाया गया एक और गहरा जीवन का पाठ है, ‘जो कुछ पहले किसी और का था, वह आज तुम्हारा है। और जो आज तुम्हारा है, वह भविष्य में किसी और का होगा।’ यह एक सुंदर वाचन है क्योंकि यह हमें सिखाता है कि परिग्रह अस्थायी है और मनुष्य को अपनी संपत्ति से आसक्त नहीं होना चाहिए। भौतिक संपत्ति और धन का उपयोग मानवता की सेवा में करना चाहिए।

सकारात्मक दृष्टिकोण रखता हैं आपका मन शांत। चित्र: शटरस्‍टॉक

बेशक, अपनी ज़रूरतों को देखें, लेकिन किसी को संपत्ति के लालच में नहीं फंसना चाहिए। इस दुनिया में कुछ भी हमारा नहीं है। जब हम परमात्मा के हैं तो कोई वस्तु हमारी कैसे हो सकती है? नहीं! इस ब्रह्मांड में सब कुछ, हर एक पदार्थ का हर एक कण, उस परम शक्ति से है और उसी का अंश है। हमारा कुछ भी नहीं है।

6 बदलाव तो होगा ही 

गीता एक और सरल, फिर भी एक गहन शिक्षा देती है कि, ‘परिवर्तन ही इस सृष्टि का नियम है।’ मनुष्य को यह समझना चाहिए कि केवल एक चीज़ इस पूर्ण ब्रह्मांड में स्थायी है – और वह परिवर्तन है। इसलिए, हमें जीवन में अनासक्त आसक्ति का अभ्यास करना चाहिए और अपने जीवन को जीने में वैराग्य का पालन करना चाहिए।

हम आत्मा हैं, ये शरीर, मन या अहंकार नहीं। जब हम इस सच की अनुभूति करते हैं, तो हम कर्मों के बंधन से मुक्त होते हैं। क्योंकि कर्म हमारा, यानी आत्मा का नहीं है। हम सिर्फ़ प्रभु के यंत्र मात्र हैं।

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AIR - Atman in Ravi

Atman in Ravi is Spiritual & TED Ex speaker. He is the Founder of AIR Institute of Realization and AIR Center of Enlightenment. ...और पढ़ें

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