बच्चों में यदि गलत आदत हैं, तो उनमें सुधार लाने के लिए पेरेंट्स डांटते हैं या फिर उन्हें समझाते-बुझाते हैं। पेरेंट्स भी बच्चों से बहुत कुछ सीख सकते हैं। अपने बच्चों से कुछ सीखना चाहती हैं, तो अपने बचपन के लापरवाह दिनों को याद करें। हम न सिर्फ तनाव मुक्त रहते थे, बल्कि हमेशा कुछ नया सीखते और खोज करते रहते थे। मेंटल हेल्थ के लिए बहुत जरूरी है कि हम बच्चों को अपना गाइड (what parents can learn from child) मान लें। उनसे हम वे सारी चीजें सीखें, जो हमारे स्वास्थ्य और पर्सनालिटी दोनों के लिए जरूरी हैं।
एशियन अमेरिकन जर्नल ऑफ़ साइकोलॉजी के अनुसार, वयस्क होना बढ़िया है, लेकिन यह बहुत सारी जिम्मेदारियों और कठिन निर्णयों से भी भरा होता है। हम अपने ब्रेन में पारिवारिक और प्रोफेशनल समस्याओं के ढेर सारे बोझ को जमा करते जाते हैं। बोझ से उत्पन्न हुए तनाव को कम करने के लिए हमें कभी-कभी बच्चा बनना चाहिए। उनकी तरह चिंता मुक्त रहना और नई खोज-नई चीज सीखने की कोशिश करनी होगी। इससे हमारी थकान और तनाव कम होगा। बच्चे हमें जीवन जीने, आशा रखने और किसी भी स्थिति का अधिकतम लाभ उठाने के बारे में बहुत कुछ सिखा सकते हैं।
बच्चे अपनी भावनाओं को व्यक्त करना जानते हैं। जब वे खुश होते हैं, तो वे मुस्कुराते हैं और हंसते हैं। जब वे दुखी होते हैं, तो रोते हैं। एक वयस्क के रूप में हम अपनी भावनाओं पर नियंत्रित करने का प्रयास करने लग जाते हैं। बेशक, अपनी भावनाओं को प्रबंधित करना जरूरी है। हम पहले यह स्वीकार किए बिना कि हम कैसा महसूस करते हैं, हम उस ओर आगे नहीं बढ़ सकते। पर कभी बच्चों की तरह नकारना, खुश होना और स्वीकारना शुरू कर देखें। तनाव कम होगा।
बच्चे हमेशा सीखते रहते हैं। वे बटन दबाते हैं, चाभी घुमाकर ताला खोलने की कोशिश करते हैं। ड्रावर खोलते हैं। लगभग हर चीज के बारे में कई प्रश्न और परिकल्पना करते हैं। वे दुनिया की हर चीज के बारे में जान लेना चाहते हैं। वे इस चिंता के बोझ से दबते नहीं हैं कि दूसरे उनके प्रयासों के बारे में क्या सोच सकते हैं।
हमारे अंदर भी नए विचार को साझा करने और सीखने की इच्छा होती है। फिर भी, हम नई चीजें सीखने और नई जगहों की खोज करने की जिज्ञासा और उत्साह खो देते हैं। अगर हम एक बच्चे की तरह जिज्ञासु बनना सीख जाएं, तो यह हमें सेल्फ सटिसफेक्सन और ख़ुशी दे सकता है।
बच्चे कहीं भी कूदते हैं, चढ़ते हैं, गिरते हैं और ऊपर उठते हैं। वे निडर होते हैं। हमें भी बच्चे की तरह कभी-कभी निडर बनना सीखना चाहिए, तभी हम उनकी तरह अपनी बात को सामने वाले के पास रख पायेंगे। यह भाव हमें लापरवाह नहीं, बल्कि जोखिम लेने के लिए तैयार करता है। इससे आपको व्यक्ति के तौर पर मजबूत बनाता है।
अक्सर आपने देखा होगा कि बच्चे टेक्नोलॉजी को हैंडल करने में हमेशा आगे रहते हैं। दरअसल, वे जिज्ञासु बनकर हर चीज सीख लेना चाहते हैं।
वे रोज कुछ न कुछ नया सीख लेते हैं। जब हम व्यस्क हो जाते हैं, तो सीखने का प्रयास करना कम कर देते हैं। हमें जीवन पर्यंत सीखते रहना चाहिए। स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट भी बताती है कि सीखते रहने से अल्जाइमर, डीमेंशिया जैसे रोग का जोखिम घट जाता है।
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