तलाक (Divorce) एक ऐसा निर्णय है, जो आपके जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। कारण कोई भी हो सकता है, जिसकी वजह से आप किसी से अलग होने का फैसला लेती हैं। इस चरण के दौरान आप न केवल अपने जीवन साथी से अलग होते हैं, बल्कि अपनी जीवन शैली को पीछे छोड़ कर अपने दूसरे रिश्तों में भी कई तरह के बदलावों से गुजरते हैं। तलाक के बाद आने वाली समस्याएं आपके भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती हैं। इसकी वजह से सेल्फ – डाउट आपको घेर सकता है।
किसी से तलाक लेना भावनात्मक रूप से बहुत चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि कोर्ट – कचहरी के चक्कर लगाना हर किसी के बस की बात नहीं है। भविष्य में आपके जीवन का मार्गदर्शन करने वाले कानूनों को जानना और समझना महत्वपूर्ण है। इसलिए सावधान रहें और जान लें कि यदि दोनों पक्ष सहमत हैं, तो आप डिवोर्स मीडिएशन का विकल्प चुन सकती हैं, क्योंकि यह तलाक लेने एक शांतिपूर्ण तरीका है।
साथ ही, प्रश्न पूछने और अपनी ओर से शोध करने में भी संकोच न करें। इसके अलावा, एक प्रोफेशनल के साथ-साथ अन्य लोगों की मदद लें, जो इस दौर से गुजरे हैं।
हम सभी के पास दुख से निपटने का, इससे हील होने का अपना – अपना तरीका होता है। तलाक के दौरान और इसके बाद भी अपनी भावनाओं को स्वीकार करना बहुत ज़रूरी है। कानूनी कार्यवाही के दौरान और तलाक हो जाने के बाद भी अपनी भावनाओं को स्वीकार करना सीखें। तलाक से आपके परिवार में भी बदलाव आएगा। यदि आपके बच्चे चिंतित हैं, तो उन्हें स्थिति के बारे में धैर्यपूर्वक समझाएं। हर स्थिति को स्वीकार करने से हमें आंतरिक शांति प्राप्त करने में मदद मिलती है।
तलाक जीवन की सबसे कठिन घटनाओं में से एक है। यह आपके परिवार के लिए भी कठिन है और इसकी वजह से आपको अपने परिवार से थोड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है। आपके लिए अपने परिवार की पुरानी सोच से लड़ना मुश्किल हो सकता है, लेकिन खुद पर और अपने फैसले पर भरोसा रखें। बस खुद को कमजोर न पड़ने दें और खुद पर भरोसा करना सीखें।
अलगाव और तलाक आपको अपने साथी के प्रति नकारात्मकता और विषाक्त भावनाओं के साथ छोड़ देता है। यह नकारात्मकता आपके परिवार और आपको दुखी कर सकती है। तलाक के बाद अपने आप को कुछ समय दें और इस समय चीजों को ठीक करने की हड़बड़ी से बचें। इसमें समय लगेगा, लेकिन एक बार जब आप माइंडफुलनेस का अभ्यास कर लेंगी तो आप अपने आप को जीवन में नई संभावनाओं के लिए खोल सकती हैं।
यह भी पढ़ें : बच्चों ही नहीं किशोरों को भी प्रभावित कर सकता है एडीएचडी, जानिए इससे निपटने के उपाय