आप किसी भी व्यक्ति से पूछेंगे की उम्र का सबसे अच्छा पड़ाव कौनसा है, तो स्वाभाविक तौर पर सभी का जवाब बचपन ही होगा। बचपन हर व्यक्ति के जीवन का वो सुनहरा दौर होता है, जिसमें व्यक्ति दुनियादारी की तमाम समस्याओं और परेशानियों से अलग होकर सिर्फ अपने जीवन में ही खुश होता है।
वैसे तो आमतौर पर हर व्यक्ति की उम्र हमेशा बढ़ती ही रहती है, लेकिन जब भी वो व्यक्ति किसी बच्चे के साथ खेलता है, तो मानसिक तौर पर उसकी उम्र काफी घट जाती है।
लेकिन बदलते दौर में बचपन के मायने भी काफी बदल गए हैं। कुछ वर्ष पहले अपने दोस्तों के साथ मैदानों और स्कूलों में खेलने वाला बचपन अब घर की चहारदीवारी में बंद हो गया हैं, जिसमें मोबाईल फोन और तमाम आधुनिक उपकरण उसके साथी बन गए है। आधुनिक जीवन में रहने के कारण बच्चों में सोशल स्किल्स डेवलप नहीं होती, जिसके कारण जब वे बड़े होकर बाहर निकलते है, तो दुनिया के साथ कंफर्टेबल होने में उन्हें समय लगता है।
वहीं, अगर आपका बच्चा भी उम्र के इस पड़ाव में दोस्त नहीं बना पा रहा है, तो पैरेंट के तौर पर आप उनकी मदद कर सकतीं हैं। बच्चों को अच्छी पैरेंटिंग टिप और खुद में थोड़े बदलाव कर के आप बच्चों के सोशल स्किल्स को सुधार सकती हैं।
घर या बाहर बच्चों के न खुलने का कारण अवसाद भी हो सकता है। 2022 में द कन्वर्सेशन में छपी रिपोर्ट में यह पता चला कि कोविड-19 के दौरान बच्चों में डिप्रेशन की स्थिति में कई गुना तक बढ़ोतरी हुई है।
बच्चे बेहद संवेदनशील हो गए है और पारिवारिक तथा सामाजिक मामलों के चलते उनकी मानसिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है। ऐसा होने से बच्चों की सोशल स्किल्स पर प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण बच्चों को दोस्त बनाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
बच्चों की मेंटल ग्रोथ ही उनकी सोशल स्किल्स को कई गुना तक अच्छा करती है। जर्नल ऑफ सोशल एंड क्लिनिकल साइकोलॉजी में छपी एक रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक़ कंट्रोल्ड या स्ट्रिक्ट पैरेंटिंग बच्चों के मेंटल हेल्थ को बुरी तरह प्रभावित करती है।
इसके कारण बच्चों में क्रिएटिविटी स्किल्स खत्म होने लगती है, जिससे बच्चे की सोशल स्किल्स प्रभावित होती है और बच्चे उतना एक्सप्रेसिव नहीं हो पाते है। बच्चों के मन में कंट्रोल्ड और स्ट्रिक्ट पैरेंटिंग के कारण डर का भाव आ जाता है, जिसके कारण वे कहीं भी कुछ कहने से संकुचित होते है। जिसके कारण बच्चे आपस में अपनी हमउम्र के बच्चों के सामने भी कुछ बोलने या दोस्ती करने से कतराते है।
कई पैरेंट्स की यह आदत होती है कि वे अपने बच्चों की नाकामयाबियों पर तमाम तरह की टिप्पणियां करने के साथ किसी अन्य व्यक्ति से उसकी तुलना करने लगते है। तुलना करने से बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है और उसका आत्मविश्वास कम होता है।
इस मौके पर आप बच्चों को जीवन में सफल होने के गुण सिखाएं और उन्हें हर परिस्थिति और मनोस्थिति में रहने की ट्रेनिंग दें।
बच्चों की सोशल स्किल्स और दोस्त न बन पाने की स्थिति में सबसे बड़ी बाधा मोबाइल फोन भी होkids सकता है। आजकल मोबाइल फोन में गेम्स और कार्टून देखते हुए बच्चे किसी भी तरह की शारीरिक गतिविधयों से दूर रहते है, जिसके कारण उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर भी काफी प्रभाव पड़ता है।
रूटलेज पब्लिशर की ‘अंडरस्टैंडिंग योर चाइल्डस ब्रेन’ नाम की किताब में छपी एक रिसर्च के अनुसार ज्यादा फोन प्रयोग करने वाले बच्चे काफी कमजोर हो जाते है और इसके अत्यधिक प्रयोग से उनके मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ सामजिक जीवन पर भी प्रभाव पड़ता है। इस रिसर्च में आगे बताया गया कि ज्यादा फोन चलाने से बच्चे चिड़चिड़े होने लगते हैं और सामजिक चीज़ों से दूर जाने लगते है।
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