परिवर्तन ही जीवन की एक मात्र सच्चाई है। हर एक के जीवन में निरंतर यह होता रहता है। यह परिवर्तन हमारे रिलेशनशिप के साथ भी होता है। गुजरते वक्त के साथ हमारे रिलेशनशिप की सीमाएं भी बदलती रहती हैं और ये हर एक के साथ होता है। हमारी जरूरत, इच्छा और मांग और यहां तक कि उम्मीद भी बदलती रहती है। गुजरते वक्त के साथ हम जैसे-जैसे परिपक्व होते जाते हैं, हमें अपने रिलेशनशिप को हेल्दी बनाए रखने के लिए अपने भावनात्मक दायरों को बदलने या रीसेट करने की जरुरत भी महसूस करते हैं। इसलिए अगर आप पुराने रिश्तों में नई सीमाएं निर्धारित (Tips to set new boundaries in old relationship) करना चाहती हैं, तो इन टिप्स को फॉलो कर सकती हैं।
न्यूयॉर्क में रह रही मनोवैज्ञानिक डॉ नेहा मिस्त्री ने अपने नवीनतम हालिया इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिए रिलेशनशिप के इस मसले पर लोगों से जानना चाहा, लेकिन उन्होंने देखा कि भावनात्मक जुड़ाव वाले इन रिश्तों के पहलूओं पर कभी कभार ही लोग बातचीत करते हैं।
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सोशल मीडिया पर पोस्ट कर उन्होंने लिखा कि समय के साथ हमारी इच्छाएं और जरूरतें बदलती हैं, हमारी समझ भी हमें वैसा ही बना देती है जैसा चाहते हैं और ठीक वैसे ही रिश्ते भी उसी दिशा में करवट लेने लगते हैं। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है, हम अपने भीतर हो रहे बदलावों को तब तक नहीं पहचानते हैं जब तक कि हमें कुछ हो न जाए।
उन रिश्तों को लेकर डॉ नेहा मिस्त्री लिखती हैं कि हमें पुराने रिलेशनशिप के लिए नए दायरे तय करनी चाहिए। लेकिन कुछ लोग ही शायद ऐसा कभी कुछ कर पाते हैं। दरअसल जो भी है ठीक है, प्यार को अक्सर हल्के में मान लिया जाता है। “जब रिश्तो में सीमा निर्धारण की बात आती है, आम तौर पर ज्यादातर लोग मौजूदा और पुराने रिश्तों को अपनी जरूरतों के अनुसार ध्यान में रखकर व्यवहार करते नजर आते हैं। हम चीजों को छोड़ देते हैं, दायरे से बाहर जाने देते हैं, किनारा कर लेते हैं, आदि। डॉ मिस्त्री पोस्ट साझा करते हुए लिखती हैं कि जैसा हम सोचते हैं वैसा सभी रिश्तों में फूलने-फलने की क्षमता नहीं होती। कई बार उन रिश्तों को लेकर हमारे भीतर काफी झिझक होने लगती है और इस प्रकार हमें अपनी जरूरतों के हिसाब से कुछ चीजों में बदलाव करने लगते हैं।
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जैसे एक रिश्ते की शुरुआत में भावनात्मक सीमाओं को बनाकर रखने की जरुरत होती है वैसे ही आपको बातचीत का सिलसिला आगे भी बनाए रखना चाहिए। साथ ही अगर आपको कुछ और जरुरी बातें महसूस हो रही हों, तो उन पर भी खुल कर बात होनी चाहिए।
अगर आपको बताने में झिझक हो रही है या आप असहज महसूस कर रहे हैं, तो आपके इस डर की वजह से कि चीजें बदल भी सकती हैं। एक्सपर्ट की मानें तो जिसके लिए शुरुआत में हम झिझकते हैं, बाद में वही चीजें कई बार गंभीर मुद्दों का कारण बन जाती हैं।
डॉ नेहा मिस्त्री लोगों को सलाह देती हैं कि जैसा वह सोचती हैं वैसा होने की परिकल्पना भी (visualization practice) करें। भले ही वह कोई चमत्कार हो?
एक्सपर्ट कहते हैं- आप अपनी बातचीत में उसके दिखने, आवाज और बाकी चीजों को लेकर सोच सकती। एक अच्छा तरीका है और इसे अपनाने से आपके शरीर में संवेदनाएं उभरेगी। कभी अच्छा महसूस होगा, कभी कनफ्यूजन और कभी काफी जबरदस्त।”
आपको जरुर ये सबकुछ महसूस करना जाहिए।
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डॉ नेहा मिस्त्री के अनुसार, ये कुछ कथन हैं जो आपके प्रियजन को बिना चोट पहुंचाए, मौजूदा रिलेशनशिप में भावनात्मक सीमाओं को फिर से स्थापित करने के लिए आपको अपनी बात रखने में मदद कर सकते हैं:
1. मुझे पता है कि यह पहले से अलग है, लेकिन अब यह मेरे लिए जरूरी हो गया है …
2. यह कह पाना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन मेरे मेंटल हेल्थ के लिहाज से यह जरुरी है, और इसलिए अब हमें इस तरह सोचना चाहिए …
3. मेरे लिए मेरा यह रिश्ता बहुत खास है, पर कुछ चीजें हैं जिन पर हमें बात करनी चाहिए। मैं इससे ज्यादा कर भी क्या सकती हूं…
4. हमेशा रिश्ते हम खुद तय करते हैं। मेरे लिए यह कह पाना मुश्किल है, लेकिन अब यह मेरे काम का नहीं है। हम कुछ करना भी चाहें तो बस उसकी तारीफ कर सकते हैं
याद रखें कि जरूरी नहीं कि आप समय आने का इंतजार करें, या फिर अपनी भावनात्मक सीमाओं को तभी साझा करें जब आपको अच्छा महसूस हो। एक हेल्दी रिलेशनशिप को बरकरार रखने के लिए अपनी भावनाओं को साझा कर देना ही सही होता है।
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