अपराधबोध (Guilt) एक तरह का नेगेटिव इमोशन है। अक्सर छोटे और बड़े हो रहे बच्चों के मामले में, अपराधबोध को पॉजिटिव प्रभाव के रूप में भी देखा जाता है। जो उन्हें सही तौर-तरीकों, सामाजिक आचरण की सीख देता है। जहां तक वयस्क होने पर अपराधबोध का सवाल है, तो कुछ हद तक ऐसा होना नॉर्मल होता है। पर लंबे समय तक इस भावना से घिरे रहना और खुद को अपराधी मानना आपको मानसिक रूप से परेशान कर सकता है। यह जरूरी है कि आप किसी भी तरह के गिल्ट में बहुत ज्यादा दिन न रहें। इससे उबरने (how to overcome guilt) में कुछ थेरेपी और बदलाव आपकी मदद कर सकते हैं।
अगर आप लगातार खुद को गिल्ट और ड्रिप्रेशन (अवसाद) में पाते हैं, तो यह जानना जरूरी है कि यह दोतरफा तरीके से काम करता है। यानि अपरोधबोध की वजह से अवसाद पैदा हो सकता है या पहले से ही अवसादग्रस्त होने पर आप स्वयं को अपराधी महसूस करने लगते हैं।
आमतौर पर, लोग अलग-अलग आदतों/व्यवहारों को लेकर गिल्टी महसूस करते हैं। मसलन, कुछ करने को लेकर या न करने के ख्याल को लेकर, किसी विचार या अहसास, अथवा हालात, इरादों, लक्ष्यों आदि को लेकर भी वे खुद को अपराधी महसूस कर सकते हैं।
गिल्ट का एक खास प्रकार होता है अंतरवैयक्तिक (इंटरपर्सनल) गिल्ट। सरवाइवर गिल्ट इसका एक उदाहरण है। यह उस व्यक्ति में पैदा हो सकता है, जो किसी खतरनाक या जीवनघाती स्थिति से जूझने के बाद बच निकला हो। जबकि उसी हालात से सामना होने पर अन्य लोगों की जान न बच पायी हो।
इसके अलावा, किसी नज़दीकी की मृत्यु होने, ट्रॉमा की वजह से, या पैरेन्टल गिल्ट भी होता है। मृत्यु के मामले में इमोशनल रिएक्शन के तौर पर गिल्ट पैदा हो सकता है। ऐसे में व्यक्ति खुद को मृत व्यक्ति की अपेक्षाओं या उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाने की वजह से अपराधी महसूस करता है।
पैरेन्टल गिल्ट उन अभिभावकों को होता है, जो यह महसूस करते हैं कि वे अपने बच्चों के लालन-पालन में खरे नहीं उतरे या उनकी परवरिश में उनसे कुछ कमी रह गई।
ट्रॉमा संबंधी गिल्ट तब होता है जबकि कोई यह महसूस करता है कि किसी खतरनाक, घातक परिस्थिति में जब दूसरों की जान पर बन आयी होती है, तब उसे अलग प्रकार से बर्ताव करना चाहिए था। कोई अलग एक्शन करना चाहिए था। ताकि दुर्घटना के शिकार बने लोगों के बचाव में कोई योगदान किया जा सकता।
लगातार बने रहने वाले दुःख से बाहर आने के लिए, जरूरी है उन मेंटल कंडीशंस से निपटना जो इसे बढ़ाती हैं, जैसे डिप्रेशन या फिर गिल्ट को भूलने के लिए नशीले पदार्थों के सेवन की आदतों को छोड़ना। सबसे पहले तो यह स्वीकार करना होगा कि गिल्ट से बचने के लिए आप इस तरह की आदतों में पड़े हैं।
इसी तरह, अपने बारे में नेगेटिव सेल्फ टॉक से बचें। यह भी संभव है कि अपराधबोध की वजह आपको आसानी से समझ ही न आए। ऐसे में, उसकी जड़ में जाना होगा और अगर ऐसा करना मुमकिन न हो, तो प्रोफेशनल सहायता लेने में देरी नहीं करनी चाहिए।
यह जानना जरूरी है कि हमारे कंट्रोल में क्या है और क्या नहीं है। इससे ही हमें अलग-अलग अपराधबोध से मुक्त होने में मदद मिलेगी। कई बार गिल्ट इस वजह से भी होता है कि आपको अपने किसी बर्ताव पर किसी से माफी मांगने की जरूरत महसूस होती है।
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कस्टमाइज़ करेंकई बार खानपान को लेकर भी अपराधबोध घर कर जाता है, क्योंकि ऐसा व्यक्ति अपने वज़न को लेकर गिल्ट से घिरा होता है। युद्ध के मोर्चे पर सैनिकों को दुश्मन सैनिक को मार गिराने या मासूम नागरिकों को गलती से मार देने का दुःख भी कई बार गिल्ट की शक्ल ले सकता है।
अगर ऐसे में मारे जाने वाले की उम्र कम होती है, तो अपराधबोध का संकट और गहरा सकता है। अक्सर युद्धोपरांत सरवाइवर गिल्ट देखा जाता है, जिसमें युद्ध के मैदान में अपने साथी सैनिक की मृत्यु भी अपराधबोध से भर जाती है।
अलग-अलग अध्ययनों से यह बात सामने आयी है कि अलग-अलग हालात और अलग-अलग प्रकार के गिल्ट के कई कारण हो सकते हैं, जैसे –
इस तरह की सोच से बाहर आना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि एक तो ऐसे ख्याल सही नहीं होते, दूसरे इनसे कोई मदद भी नहीं मिल पाती। ऐसे नकारात्मक और बुरे ख्यालों को दिमाग से निकालकर अपनी विचार प्रक्रिया पर लगातार नज़र रखें तथा अपराधबोध की जगह अधिक तार्किक और व्यावहारिक सोच को तरजीह दें।
पहली बात
जैसा कि हम ऊपर चर्चा कर चुके हैं कि गिल्ट के सही-सही कारणों का पता लगाना बेहद जरूरी होता है। अगर इसका कारण ट्रॉमा है, तो ट्रॉमा-आधारित थेरेपी से मदद मिल सकती है, और अगर यह किसी की मृत्यु की वजह से उपजा सरवाइवर्स गिल्ट है, तो थेरेपी से दुःख और तकलीफ को दूर करने में मदद मिल सकती है।
दूसरी बात
सच पूछा जाए तो अपरोधबोध से मुक्त होने के लिए कोई दवा नहीं बनी है। कोई गोली नहीं है जिसे गटककर गिल्ट की भावना को दिलो-दिमाग से दूर किया जा सके। अलबत्ता, अगर इसका कारण कोई ट्रॉमा, लंबे समय तक बना रहने वाला दुःख, खानपान संबंधी डिसॉर्डर, अवसाद वगैरह है तो दवाओं से निश्चित ही मदद मिलती है।
तीसरी और सबसे जरूरी बात
एक और बात पर ध्यान देने की जरूरत है, कि केवल एक प्रकार की थेरेपी ऐसे में असर नहीं डालती, बल्कि इलाज के लिए अलग-अलग दवाओं और थेरेपी का इस्तेमाल करना अधिक कारगर होता है।
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