हमारा शरीर स्वस्थ दिखता है, लेकिन हमारा मन बीमार हो सकता है। मेंटल हेल्थ प्रभावित होने पर हम अवसाद में जीने लगते हैं। अवसाद दुनिया भर में एक आम बीमारी है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (WHO) के मुताबिक इससे 3.8% आबादी प्रभावित है। दुनिया में लगभग 280 मिलियन लोगों को डिप्रेशन है। हम इसे बीमारी नहीं मानते हैं। लेकिन इसका सही समय पर इलाज होना यानी साइकोथेरेपी लेना बहुत जरूरी है। क्या है साइकोथेरेपी (Psychotherapy) और कब इसकी जरूरत पड़ती है, इसके लिए हमने बात की पारस अस्पताल, गुरुग्राम में सायकियेट्री के सीनियर कंसलटेंट डॉ. आरसी जिलोहा से।
डॉ. आरसी जिलोहा बताते हैं, ‘मनोचिकित्सा(Psychotherapy) , जिसे अक्सर टॉक थेरेपी के रूप में जाना जाता है। यह केवल बात करना नहीं है, बल्कि उन लोगों का समर्थन करने का माध्यम है, जो भावनात्मक समस्याओं और मानसिक विकारों का सामना कर रहे हैं। मनोचिकित्सा परेशान करने वाले लक्षणों को कम करने या प्रबंधित करने में मदद करती है। इससे व्यक्ति को अधिक प्रभावी ढंग से संचालित करने और उपचार को बढ़ावा देने में मदद मिलती है।
प्रसिद्ध मनोचिकित्सक वोलबर्ग (1967) मनोचिकित्सा को भावनात्मक प्रकृति की समस्याओं के मनोवैज्ञानिक तरीकों से उपचार पर बल दिया। इसमें प्रशिक्षित व्यक्ति जानबूझकर रोगी के साथ एक पेशेवर संबंध स्थापित करता है। इसका उद्देश्य रोगी के लक्षणों को खत्म कर व्यक्तित्व और विकास को सही करना होता है।’
किसी भी व्यक्ति को दुर्घटना के कारण आघात (trauma), बीमारी, या किसी प्रकार की हानि से कि पैसे या किसी प्रियजन की हानि हो सकती है। उसे समायोजन की समस्याएं(adjustment problems), वैवाहिक कलह (marital discord) , यौन हमला(sexual assault) या मानसिक समस्या(mental health problems) जैसे अवसाद (Depression) या चिंता (Anxiety) आदि जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। इसके कारण व्यक्ति अवसादग्रस्त हो सकता है। व्यक्ति लगभग हर दिन उदास, चिड़चिड़ा और खाली महसूस करने लग सकता है। वह आनंद या गतिविधियों में रुचि की कमी का अनुभव करने लगता है।
एकाग्रता की कमी, अत्यधिक अपराधबोध या सेल्फ कॉन्फिडेंस की अत्यधिक कमी, भविष्य के बारे में निराशा, यहां तक कि उसे आत्महत्या के विचार भी आने लगते हैं। व्यक्ति में लगातार नींद नहीं आने, भूख या वजन में बहुत अधिक परिवर्तन और हमेशा थकान महसूस करने के भी लक्षण दिख सकते हैं। यदि आपके परिवार या आस-पास के किसी व्यक्ति में ऐसे लक्षण दिख रहे हैं, तो उन्हें साइकोथेरेपी की जरूरत है। समय पर सायकोथेरेपिस्ट से मिलने पर समस्या का निदान जल्दी हो जाता है।
डॉ. आरसी जिलोहा बताते हैं, ‘मानसिक रोगी को साइकोथेरेपी कई प्रकार से दी जाती है। दवा या अन्य उपचारों को भी मनोचिकित्सा के साथ दिया जा सकता है।’
इसमें व्यक्ति के अनहेल्दी या अप्रभावी विचार और व्यवहार पैटर्न की पहचान की जाती है। इसके स्थान पर अधिक सटीक और उपयोगी व्यवहार से सक्षम बनाया जाता है।
यह क्विक फिक्स की तरह है। यह रोगियों को अपनी और अपने जीवन और व्यक्तित्व की कठिनाइयों को समझने में सहायता करता है। जैसे किसी प्रकार का अनसुलझा दुख, सामाजिक या व्यावसायिक जिम्मेदारियों में परिवर्तन, घनिष्ठ संबंधों के साथ विवाद और दूसरे लोगों से संबंधित मुद्दे होने पर यह थेरेपी कारगर है।
यह सीबीटी(CBT) का ही विशिष्ट रूप है। यह भावनाओं के रेगुलेशन में मदद करता है। बॉर्डरलाइन पर्सनालिटी डिसऑर्डर, ईटिंग डिसऑर्डर और पीटीएसडी वाले लोगों का इलाज इस थेरेपी से किया जाता है। यह व्यक्ति के अवांछित या विघटनकारी व्यवहार पर कार्य करता है। यह व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी लेने में सक्षम बनाता है। इसमें व्यक्तिगत और समूह उपचार (group treatment) भी किया जाता है।
जिन लोगों को बचपन की बुरी घटनाएं परेशान करती हैं। ऐसे विचार या भावनाएं जो अवचेतन में दबी हुई हैं। जो व्यक्ति के व्यवहार और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती हैं। थेरेपिस्ट व्यक्ति में आत्म-जागरूकता (Self Awareness) को बढ़ाने और अंतर्निहित व्यवहारों को बदलने का प्रयास करता है। जीवन को बेहतर ढंग से नियंत्रित करने में मदद की जाती है।
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कस्टमाइज़ करेंसाइकोडायनेमिक थेरेपी का ही यह विस्तृत रूपांतर है। साइको सेक्सुअल डेवलपमेंट के दौरान व्यक्ति के अंतर्मन में जो संघर्ष चलते रहते हैं, यह थेरेपी उस पर काम करता है। यह व्यक्तित्व के मनोवैज्ञानिक विकास के दौरान विकसित होता है। आमतौर पर प्रति सप्ताह तीन या अधिक बार निश्चित समय के लिए सत्र आयोजित किए जाते हैं।
यह थेरेपी रोगियों को अपने संसाधनों को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित और निर्देशित करता है। यह मुकाबला करने के कौशल को बढ़ाता है। आत्म-सम्मान को बढ़ाता है। चिंता कम करता है और सामाजिक और सामुदायिक कार्यप्रणाली को बढ़ाता है। इसमें जीवन की जिन समस्याओं का प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है, उनका प्रबंधन किया जाता है।
कला, नृत्य, रंगमंच, संगीत और कविता के माध्यम से चिकित्सा की जाती है। ये गतिविधियां रचनात्मक तरीकों से परेशान करने वाले विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान करती हैं।
यह थेरेपी बच्चों को अपनी भावनाओं को पहचानने और उन पर चर्चा करने में सहायता करने के लिए प्रयोग में लाई जाती है। प्ले थेरेपी बच्चों में विशेष रूप से सहायक है।
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