नींद में अक्सर लोग सपनों की दुनिया में खो जाते हैं। वो सुहावने सपने जहां कुछ लोगों के जीवन का आधार बन जाते हैं, तो वहीं कुछ के लिए परेशानी का सबब साबित होते हैं। दरअसल, कई बार नींद में देखने जाने वाले सपनों की संख्या इस कदर बढ़ जाती है कि नींद पूरी नहीं हो पाती है। इससे दिनभर तनाव, सिरदर्द और मूड स्वि्ांग का सामना करना पड़ता है। इस समस्या को नाइटमेयर डिसऑर्डर कहा जाता है। जानते है ज्यादा सपने आने (excessive dreaming) का कारण और उस समस्या से बाहर आने के उपाय भी।
नाइटमेयर डिसऑर्डर को पैरासोमनिया कहा जाता हैं। इस स्लीप डिसऑर्डर में व्यक्ति को एक के बाद एक सपने आने लगते हैं। व्यक्ति नींद के दौरान डरावने और हानि से जुड़े सपने देखने लगता हैं। ये आमतौर पर नींद के उस चरण के दौरान होते हैं जिसे रैपिड आई मूवमेंट के रूप में जाना जाता है।
मनोचिकित्सक डॉ आरती आंनद बताती हैं कि वे लोग जो चिंतित रहते हैं, उनकी भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक स्थिति इसके लिए जिम्मेदार हो सकती है। इससे मन में नकारात्मकता बढ़ती है और ज्यादा सपने आने लगते हैं। इससे मन में एंग्ज़ाइटी पैदा होती है, जो रोजमर्रा के कार्यों को प्रभावित करती है।
अगर आप इस तरह की स्थिति का सामना कर रही हैं, तो जरूरी है कि जीवन की गुणवत्ता और आनंद पाने पर ध्यान दें। इसके लिए हेल्दी लाइफस्टाल अपनाना सबसे ज्यादा जरूरी है। इससे हार्मोनल इंबैलेंस से बचा जा सकता है। वे लोग जिनकी नींद सपनों के कारण पूरी नहीं हो पाती है। उन्हें किसी भी चीज़ को समझने, याद रखने, कोई फैसला लेने और फोकस करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है।
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार तनाव के कारण बूरे और ज्यादा सपने आने की संभावना बढ़ने लगती है। एक साथ कई चीजों के बार में सोचने से मानसिक थकान बढ़ने लगती है। इसके अलावा तनाव के कारण शरीर में कार्टिसोल हार्मोन का स्तर बढ़ने लगता है। ऐसे में ज्यादा सपने आने लगते हैं।
ये वो स्थिति होती है, जिसमें व्यक्ति किसी दुर्घटना, हिंसा या उत्पीड़न का शिकार होता है। इसके चलते स्लीप साइकिल प्रभावित होती है, जिससे व्यक्ति को एक्सेसिव ड्रिमिंग (excessive dreaming) का सामना करना पड़ता है। लोग अक्सर परेशान रहते हैं और अनजाने सपनों में खोए रहते हैं।
पार्टनर की सनोरिंग या न्यू बॉर्न बेबी के कारण अक्सर महिलाओं में नींद पूरी न होने की समस्या को बढ़ा देती है। इससे नींद में खलल बढ़ने लगती है और एक्सेसिव ड्रिमिंग (excessive dreaming) का सामना करना पड़ता है। इसके चलते सिरदर्द और आंखों के नीचे काले घेरों की भी समस्या बनी रहती है।
वे लोग जो पहले से ही सिज़ोफ्रेनिया, डिप्रेशन और एंग्ज़ाइटी जैसी अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से गुज़र रहे हैं। उनके मन में नकारात्कम विचार बढ़ने लगते है, जो स्लीप डिसऑर्डर और नाइटमेयर डिसऑर्डर का कारण साबित होते हैं। ऐसे में उन्हें सिलसिलेवार ढ़ग से सपने आने की समस्या बनी रहती है।
अधिक मात्रा में मेलाटोनिन सप्लीमेंटस का सेवन करने से शरीर में हार्मोनल परिवर्तन बढ़ने लगती है। इसके चलते नींद में सपने आने लगते है। इसके इलावा दिन में सोने के दौरान भी सपने आने की समस्या का सामना करना पड़ता है।
समय से न सोना और अनियमित खान पान ज्यादा सपने आने की समस्या का कारण बनने लगते है। दरअसल, अनहेल्दी लाइफस्टाइल से बॉडी की क्लॉक डिसटर्ब होने लगती है। इसके चलते शरीर में थकान, कमज़ोरी और मूड स्विंग की समस्या बनी रहती है। ऐसे में आहार में हेल्दी फूड्स को शामिल करें और स्वस्थ दिनचर्या का पालन करें
गर्भावस्था की शुरूआत में शरीर के अंदर हार्मोन के स्तर, नींद के पैटर्न और भावनाओं में बदलाव आने लगता है। ऐसे में प्रेगनेंट महिलाओं को सपने आने लगते हैं और मूड स्वि्ंग की भी समस्या बनी रहती है।
वे लोग जो दिनभर ऐसे लोगों से घिरे रहते है, जो गुस्से में रहते है और हर वक्त अन्य लोगों में खामिया खाजते हैं, तो उनके व्यवहार में भी परिवर्तन आने लगता है। अपने विचारों को पॉज़िटिव बनाए रखें और तनाव से दूरी बनाकर रखना आवश्यक है।
मन को शांत रखने के लिए विचारों को एकत्रित करना आवश्यक है। सपनों से बचने के लिए सुबह उठकर 15 से 20 मिनट मेडिटेशन करें। इसके बाद योगासनों का अभ्यास भी फायदेमंद साबित होता है। नियमित रूप से इसे अपनाने से मानसिक स्वास्थ्य को मजबूती मिलती है।
इससे शरीर में ब्लड का सर्क्ुलेशन बढ़ने लगता है, जिससे तनाव, एंग्ज़ाइटी और डिप्रेशन से राहत मिलती है। साथ ही शरीर में बढ़ने वाली थकान हेल्दी स्लीप में मददगार साबित होती है। सुबह उठकर और रात को सोने से पहले व्यायाम करने से शरीर को फायदा मिलता है।
इस उपचार चिकित्सा की मदद से सपनों को कम किया जा सकता है। ये चिकित्सा किसी व्यक्ति के सपनों की आवृत्ति को कम करने के लिए डिज़ाइन की गई है। खासतौर से उन लोगों के लिए जो डरावने से सपनों से ग्रस्त हैं।