कोविड-19: मैं अपने नाना जी के अंतिम दर्शन नहीं कर पाई, अब इस गिल्‍ट से निकलने की कोशिश कर रही हूं

कोविड-19 के कारण आपको सिर्फ संक्रमण का ही डर नहीं है, बल्कि इसने और भी कई तरह से आपके जीवन को प्रभावित किया है। पर इस तनाव और दुख से भी आपको बाहर निकलना ही होगा।
टीम हेल्‍थ शॉट्स Updated: 10 Dec 2020, 11:52 am IST
  • 91

पिछले दो सालों से मेरे नाना जी बिस्‍तर पर ही थे। मुझे याद है नानी का फोन आने के बाद मां कितनी परेशान और तनावग्रस्‍त हो गईं थीं।  नानी के घर से वापस आने के बाद से ही मैंने मां को तनाव से जूझते देखा था।

यह झूठ होगा अगर मैं कहूं कि मां से नाना जी की सेहत के बारे में बात करते हुए मैंने कभी वह तनाव महसूस नहीं किया। और सच कहूं तो पिछले दिनों जिस तरह मां का लगातार वहां जाना बढ़ गया था, मुझे किसी बुरी खबर का अंदेशा होने लगा था।

लेकिन, आखिरकार जब वह दिन आया, तो मुझे अपनी मां को उन दर्दनाक शब्दों के बोलने का भी इंतजार नहीं करना पड़ा, “वे अब नहीं रहे”। उस दिन सुबह उनकी अलग ढंग से सांस लेने के अंदाज से ही मुझे पता चल गया कि कुछ बुरा हुआ है। उस खबर ने मुझे बिल्कुल बेजान बना दिया, मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे शरीर में जान ही नहीं है, मेरा दिल मेरे पेट में चला गया हो जैसे, और मैं लगभग सुन्न हो गई थी।

मैं अपनी बेहोशी से वापस लौटी ही थी कि मां के एक और फोन कॉल ने मुझे फि‍र से स्‍तब्‍ध कर दिया। मां चाहती थीं कि मैं नाना जी के अंतिम संस्‍कार में न जाऊं। मुझमें किसी तरह का सवाल पूछने या तर्क करने की हिम्‍मत नहीं थी। मैंने मां की बात मानी। पर मैं नहीं जानती थी कि उनक यह बात मानकर मैं खुद को कैसे तनाव और अपराध बोध में धकेल रही हूं। इस अपराध बोध ने मेरे मन-मस्तिष्‍क को पूरी तरह अपनी चपेट में ले लिया।

यह फैसला मेरे लिए भावनात्मक रूप से बहुत कठिन था। चित्र : शटरस्टॉक

“ वे एक ग्रेसफुल विदाई के हकदार थे। ज़ूम पर किसी आभासी विदाई के नहीं।”; “मेरी इच्छा थी  कि मैं वहां अपनी मां के साथ खड़ी होती।”; “काश मैं नाना जी को आखिरी बार अपनी आंखों से देख पाती”। ये सारे सवाल मेरे मस्तिष्‍क में गूंज रहे थे। मुझे उनके अंतिम संस्‍कार और बाद की प्रार्थनाओं में शामिल होना चाहिए था। पर सच्‍चाई यह है कि मेरे पास इस समय समझौता करने के अलावा और कोई विकल्‍प नहीं था।

मैं बताती हूं कि मैं कैसे खुद को इस अपराध बोध से बाहर निकाल रही हूं:

नाना जी के अंतिम संस्कार के समय उपस्थित न हो पाने ने मुझे अपराध बोध से भर दिया।  कॉविड-19 महामारी के समय में, हमने अपने मित्रों और शुभचिंतकों से यह अनुरोध किया कि वे सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार ही अपनी सांत्‍वनाएं हम तक प्रेषित करें।” मेरे नाना जी के दुखद निधन पर आपको शोक संदेश की इस अंतिम लाइन पर गौर करना चाहिए।

कोरोनावायरस महामारी के कारण भारत सरकार द्वारा निर्धारित निमय में अंतिम संस्कार में 20-लोगों की सीमा का मतलब था कि मुझे अपने नाना जी को दूर से ही विदाई देनी पड़ेगी। क्योंकि नाना जी की पांच बेटियां और उनके पति के साथ साथ तीन भाइयों और उनकी पत्नियों  के होने के बाद हम उस 20 की सूची से बाहर ही हो जाते हैं।

इसके अतिरिक्त, हाल ही में मैंने जिस ग्रोसरी शॉप से अपने घर की जरूरत का सामान खरीदा था, उसके चार कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव पाए गए। इस खबर ने मुझे भी कोरोनावायरस का एक संभावित वाहक बना दिया। मेरे वहां जाने का अर्थ था कि शोक में डूबी मेरी बूढ़ी नानी के साथ-साथ वहां मौजूद अन्‍य लोगों को भी इस संक्रमण के जोखिम में डालना। मैं यह रिस्‍क कैसे ले सकती थी।

यह बताने की जरूरत नहीं कि मेरे मां-पिताजी दोनों ही 60 वर्ष से अधिक उम्र के हैं और दोनों ही डायबिटिक हैं। ऐसे में नाना जी की शोक सभा में जाने का मतलब था कि मैं उन्‍हें भी संक्रमण के जोखिम में डाल देती। इस बात ने मुझे वहां जाने से और भी ज्‍यादा रोका। और मैं अपने नाना जी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाई।

अपनी रुचि के विषय चुनें और फ़ीड कस्टमाइज़ करें

कस्टमाइज़ करें
forgetfulness in ageing parents
मैं सच में अपने नाना जी को बहुत मिस करती हूं। चित्र : शटरस्टॉक

यानी, यह एक जिम्मेदारी से लिया गया निर्णय था। अचानक से आई कोई भावना नहीं। मेरे इस फैसले ने और 20 लोगों को संक्रमित होने से बचाया।

इस महामारी के समय में किसी अपने का चला जाना दुख पर डबल दुख है

यह मानना कि इस दुख की घड़ी में मैंने अपने किसी प्रियजन का नुकसान नहीं पहुंचाया, मुझे थोड़ी राहत देता है। सोशल डिस्‍टेंसिंग और आर्थिक असुरक्षा के रूप में इस महामारी ने हमारे जीवन को पूरी तरह बदल कर रख दिया है। जिससे मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य बहुत अधिक प्रभावित हुआ है।

अब आप ही अंदाजा लगा सकते हैं कि जब आप पहले से ही इतने ज्यादा तनाव से गुजर रहे हों , तब किसी अपने का इस तरह चले जाना आपको कितना परेशान कर देगा। यह कोविड-19 से संबंधित अन्य दुख हैं, जो हम में से कइयों को उठाने पड़ रहे हैं।

अगर आप भी मेरी वाली स्थिति में हैं, तो आपको फॉलो करनी चाहिए ये बातें

इस बात को समझने की कोशिश कीजिए कि दोहरे दुख की यह स्थिति आपको और ज्यादा मजबूत बनाएगी। और लंबे समय तक आपको खुद पर गर्व होगा कि आपने एक बेहद जटिल और मुश्किल हालात का सामना किया।

बस जो भी हुआ उसके प्रति कृतज्ञ होने की कोशिश करें

मैंने ऐसे बहुत से लोगों को देखा जिन्हें अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार करने के लिए भी सही जगह नहीं मिल पाई, कोविड-19 के कारण। ऐसे भी लोग हैं जो कोविड-19 के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए अपने प्रियजनों के अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाए। मैं ऐसे लोगों के बारे में भी सुन रहीं हूं, जिनका ख्याल रखने वाला कोई नहीं है। और ऐसे लोग भी हैं जो इस जैसी किसी और गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। शुक्र है कि मुझे अपने नाना जी के संदर्भ में ऐसी किसी चीज के बारे में नहीं सुनना पड़ा। मैं इसके लिए भी शुक्रगुजार हूं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ओवरकम होने की कोशिश करें

इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि किसी अपने का चला जाना आपको भावनाओं के झंझावात में डाल देता है। आप में कुछ सोचने-समझने की शक्ति नहीं रह जाती। पर यह भी उतना ही बड़ा सत्यद है कि आपको सिर्फ आप और आप ही संभाल सकते हैं। लगातार कई दिनों तक परेशान रहने और खाना न खाने के बाद आखिर मैंने खाना खाने का फैसला किया। क्योंकि मैं जानती थी कि अगर मैं ऐसा नहीं करूंगी तो मैं बीमार पड़ सकती हूं।

इसके साथ ही मैंने उन शारीरिक गतिविधियों के बारे में भी सोचा जो आपको बेहतर नींद लेने में मदद कर सकती हैं। मुझे कार्टिसोल यानी तनाव हॉर्मोन को कम करके अपने शरीर में एंडोर्फि‍न यानी हैप्पी हार्मोन को बढ़ाने की जरूरत थी।

lifestyle change for summer body
मैंने अपनी भावनाओं को नियंत्रण में लाने के लिए भरपूर नींद लेने की कोशिश की। चित्र : शटरस्टॉक

भावनाओं से बाहर आने की कोशिश करना मेरा एक और समझदारी भरा निर्णय था

यह स्थिति वाकई खतरनाक है। अपने दुख में अकेले डूबे रहना ज्‍यादा ईजी लगता है। पर यह सही नहीं है। दुख से बाहर आना थोड़ा मुश्किल है पर यह जरूरी भी है। अपनी भावनाओं को व्‍यक्‍त करने के लिए हमारे पास कोई ऐसा विश्‍वसनीय साथी होना चाहिए जिसके साथ आप खुलकर बात कर सकें और जो आपको इस अवसाद से बाहर लाने में मदद करे।

नहीं, यह सलाह नहीं है। मैं केवल उस मुश्किल घड़ी के अपने अनुभव साझा कर रही हूं। यदि आप चाहें, तो इसका पालन करने की कोशिश कर सकते हैं। कि यह आपको उस स्थिति से बाहर ला पाता है या नहीं । लेकिन, अगर फि‍र भी आप उस तनाव से बाहर नहीं आ पाते, तो आपको किसी प्रोफेशनल की हेल्‍प लेनी चाहिए। आखिरकार, अपने जिस प्रियजन को आपने अभी खोया है, वह आपको इस दर्द में देखना पसंद नहीं करेगा।

  • 91
लेखक के बारे में

ये हेल्‍थ शॉट्स के विविध लेखकों का समूह हैं, जो आपकी सेहत, सौंदर्य और तंदुरुस्ती के लिए हर बार कुछ खास लेकर आते हैं। ...और पढ़ें

अगला लेख