डिप्रेशन सभी आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित करता है। कुछ साल पहले ये सामने आया है कि अवसाद अब छोटी उम्र से ही बच्चों में शुरू हो रहा है। जिसकी वजह से बच्चों और किशोरों को भी डिप्रेशन का सामना करना पड़ रहा है।
किशोरों में अवसाद एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या है, जो लगातार उदासी की भावना के साथ-साथ कई गतिविधियों में रुचि के नुकसान का कारण बनती है। यह प्रभावित करता है कि वे कैसे सोचते हैं, महसूस करते हैं और व्यवहार करते हैं। साथ ही यह उनमें भावनात्मक, कार्यात्मक और शारीरिक स्वास्थ्याओं का कारण भी बन सकता है। भले ही अवसाद किसी भी उम्र और समय में हो, लेकिन इसके लक्षण किशोरों और वयस्कों में भिन्न होते हैं।
अवसाद के मामले में, यह दोनों जेंडर में होता है, लेकिन किशोरावस्था तक, लड़कियों को लड़कों की तुलना में बहुत अधिक खतरा होता है। यौवन से पहले, लड़कों और लड़कियों में मनोदशा संबंधी विकारों की व्यापकता लगभग 3 से 5 प्रतिशत तक होती है। मगर, किशोरावस्था के मध्य तक, लड़कियों में मनोदशा संबंधी विकारों के निदान की संभावना दोगुनी होती है।
लड़कियां अपनी भावनात्मक पहचान के मामले में लड़कों की तुलना में बेहतर और तेज होती हैं। यह उनका संवेदनशील स्वभाव है जो उन्हें अवसाद और चिंता के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है।
टीनएज डिप्रेशन का पहला लक्षण है कि जब लड़के – लड़कियां वो सब करना बंद कर देते हैं जो कभी उन्हें पसंद हुआ करता था। इसके अलावा उनके मूड में अन्य बदलाव भी हो सकते हैं, जिसमें उदासी, चिड़चिड़ापन, ऊर्जा में कमी,, नींद के पैटर्न में बदलाव और एकैडेमिक प्रदर्शन शामिल है।
किशोर लड़कियों में अवसाद के लिए सेल्फ एस्टीम और बॉडी इमेज इशूज जैसे कुछ लक्षण देखने को मिलते हैं। टीनएज डिप्रेशन और अन्य मनोदशा संबंधी विकार भी शरीर में परिवर्तन के तनाव से जुड़े होते हैं, जिसमें प्यूबर्टी भी शामिल है। इसकी वजह से माता-पिता, पार्टनर और अन्य लोगों के साथ उनके संबंधों पर भी असर पड़ सकता है।
अवसाद पर्यावरणीय तनाव की वजह से भी हो सकता है जिसमें मौखिक, शारीरिक या यौन शोषण, किसी प्रियजन की मृत्यु, स्कूल की समस्याएं, या साथियों के दबाव का शिकार होना जैसी समस्याएं शामिल हैं।
लगातार नैगेटिव मूड
स्कूल में समस्या
एक्टिविटी में रुचि खोना
लो सेल्फ एस्टीम
स्मार्टफोन या सोशल मीडिया की लत
लापरवाह व्यवहार
चीजों से भागना
क्रोध करना
नशीले पदार्थ या शराब का सेवन
छोटी लड़कियां जल्दी बड़ी हो जाती हैं जिसकी वजह से हार्मोन में बदलाव आता है। हार्मोन में बदलाव से कुछ लड़कियों को अवसाद का अनुभव होने का खतरा बढ़ सकता है। टीनएज से संबंधित मूड स्विंग होना सामान्य है। हालांकि, ये परिवर्तन अकेले अवसाद का कारण नहीं बनते हैं।
लड़कियों को दूसरों की राय के प्रति अधिक संवेदनशील होना सिखाया जाता है। वे रोने और संवेदनशील व्यवहार दिखाने के माध्यम से खुद को व्यक्त कर सकती हैं।
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कस्टमाइज़ करेंलड़कियों को ऐसे काम दिये जाते हैं दी जाती हैं जिन्हें कमतर आंका जाता है।
लड़कियां हर चीज़ को इमोशनल होकर सोचती हैं, दिमाग की बजाय ज़्यादातर दिल की सुनती हैं। दूसरी ओर लड़के समस्याओं को भुलाने पर ज़्यादा ज़ोर देते हैं। वे चीजों से बहुत जल्दी प्रभावित नहीं होते हैं और अपना ध्यान वहां से हटा लेते हैं।
साक्ष्य बताते हैं कि, अपने पूरे जीवनकाल में, महिलाओं/लड़कियों को ज़्यादा तनावपूर्ण जीवन की का अनुभव हो सकता है। वे पुरुषों/लड़कों की तुलना में अधिक संवेदनशील होती हैं।
अगर आपको डिप्रेशन के कोई लक्षण हैं तो मदद लें। उपचार किशोर के अवसाद के लक्षणों के प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करता है। अवसाद से पीड़ित अधिकांश किशोरों के लिए टॉक थेरेपी (परामर्श और मनोचिकित्सा) और दवा का कॉम्बिनेशन बहुत प्रभावी हो सकता है।
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