डिमेंशिया का संबंध उम्र बढ़ने से नहीं है, जानिए क्यों जरूरी है समय रहते इसके लक्षणें को पहचानना

डिमेंशिया के संकेतों को पता लगाना महत्वपूर्ण है, ताकि इनका जल्द से जल्द इलाज किया जा सके। विश्व अल्जाइमर दिवस पर विशेषज्ञ से जानिए इसके बारे में सब कुछ!
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इस बीमारी में मेमोरी की हानि होने के साथ निर्णय लेने की क्षमता में भी कमी आती है। चित्र : शटरस्टॉक
टीम हेल्‍थ शॉट्स Updated: 21 Sep 2021, 17:03 pm IST
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इस सितंबर में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मनोभ्रंश के प्रति सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया पर एक रिपोर्ट जारी की। जिसमें इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित किया गया कि दुनिया भर में डिमेंशिया (Dementia) के साथ रहने वाले 55 मिलियन से अधिक लोग हैं। हर 3 सेकंड में एक नया मामला विकसित हो रहा है। दुर्भाग्य से, यह मृत्यु का सातवां प्रमुख कारण है और बुजुर्गों में निर्भरता का एक प्रमुख कारण होने के बावजूद, डिमेंशिया के शुरुआती लक्षणों के बारे में जागरूकता बहुत कम है।

वैश्विक आबादी की उम्र बढ़ने और डिमेंशिया की संख्या 2030 तक बढ़कर 78 मिलियन होने की उम्मीद है। विडंबना यह है कि भूलने की बीमारी, भ्रम और व्यवहार में बदलाव को अक्सर सामान्य समस्याओं के रूप में खारिज कर दिया जाता है, जो उम्र बढ़ने का एक हिस्सा है।

अल्जाइमर रोग और डिमेंशिया (Alzheimer’s Disease and Dementia)

अल्जाइमर एंड रिलेटेड डिसॉर्डर्स सोसाइटी ऑफ इंडिया (Alzheimer’s and Related Disorders’ Society of India) की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में 90% में से सिर्फ कुछ ही लोग इसका इलाज करने में सक्षम हैं। जबकि अन्य डिमेंशिया (Dementia) को नजरंदाज कर देते हैं या उनकी आर्थिक स्थिति इतनी ठीक नहीं होती कि वे इसका उपचार करवा सकें।

डिमेंशिया का इलाज और इससे जुड़ी चुनौतियां (Dementia Treatment and challenges)

डिमेंशिया एक सिंड्रोम, या संकेतों का एक समूह है। जो मस्तिष्क में बीमारियों या चोट लगने के परिणामस्वरूप होता है और यह उम्र बढ़ने का एक सामान्य हिस्सा नहीं है। डिमेंशिया (Dementia symptoms) के सबसे आम लक्षणों में शामिल हैं:

संज्ञानात्मक क्षमताओं में गिरावट, जिसमें मेमोरी लॉस, भाषा को समझने और स्वयं को व्यक्त करने में समस्या, योजना बनाने या परिचित कार्यों को करने में कठिनाई, भटकाव और निर्णय लेने में दिक्कत शामिल है। मूड और व्यवहार में बदलाव भी आम हैं।

डिमेंशिया का प्रभाव

इन समस्याओं के परिणामस्वरूप, प्रारंभिक अवस्था में, मनोभ्रंश से पीड़ित लोग अक्सर काम करने में मन नहीं लगता है और वे धीरे-धीरे सामाजिक गतिविधियों से बचना शुरू कर देते हैं।

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क्या अपके माता-पिता भी चीज़ें भूलने लगे हैं। चित्र : शटरस्टॉक

यह उस व्यक्ति के लिए शर्मनाक हो सकता है जो इन परिवर्तनों से गुजर रहा है। वे अक्सर अपनी कठिनाइयों को छिपाते या तुच्छ समझते हैं जिससे परिवार के सदस्यों के लिए शुरुआती लक्षणों को पहचानना मुश्किल हो जाता है।

अफसोस की बात है कि 30 से अधिक वर्षों के डिमेंशिया रिसर्च के बावजूद, चिकित्सा विज्ञान इस बीमारी के इलाज की पहचान नहीं कर पाया है। मस्तिष्क में अपक्षयी प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप, मनोभ्रंश के रोगी धीरे-धीरे सभी बुनियादी जरूरतों के लिए निर्भर हो जाते हैं, उदाहरण के लिए, भोजन और शौचालय, जिसमें 24 घंटे देखभाल की आवश्यकता होती है।

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क्या हो अगर डिमेंशिया के शुरुआती लक्षणों की पहचान जल्दी कर ली जाए?

कई अध्ययनों से पता चलता है कि मनोभ्रंश के निदान के बाद औसत जीवनकाल लगभग 10 वर्ष है। भले ही वर्तमान में मनोभ्रंश का कोई इलाज नहीं है, लेकिन लक्षणों का जल्दी पता चलने से इसकी गति को रोकने में मदद मिल सकती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परिवारों के पास वित्तीय नियोजन के लिए समय बच जाएगा।

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देरी करने पर डिमेंशिया का इलाज करना महंगा पड़ सकता है। अल्जाइमर डिजीज इंटरनेशनल द्वारा किए गए एक विश्लेषण में डिमेंशिया की वैश्विक आर्थिक लागत 818 अरब डॉलर होने का अनुमान लगाया गया है। भारत में इसके इलाज में लाखों खर्च हो सकते हैं।

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ऐसे लोगों की देखभाल करना ज़रूरी है। चित्र : शटरस्टॉक

विश्व डिमेंशिया जागरुकता माह

सितंबर विश्व डिमेंशिया जागरूकता माह (World Dementia Awareness Month September) है, और इस वर्ष दुनिया भर के संगठन मनोभ्रंश का शीघ्र पता लगाने और निदान के बारे में बहुत आवश्यक जागरूकता पैदा करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

चूंकि भारत में मनोभ्रंश से पीड़ित लोगों की संख्या अगले 10 वर्षों के भीतर 7.6 मिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है, इसलिए जल्दी पता लगाना एक अत्यंत आवश्यक कदम है।

इस महत्वपूर्ण मोड़ पर जब विश्व स्तर पर डिमेंशिया की संख्या बढ़ रही है, इस मिथ को तोड़ना आवश्यक है कि डिमेंशिया उम्र बढ़ने का एक सामान्य हिस्सा है। यह सामान्य नहीं है और इसका इलाज करना महत्वपूर्ण है।

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