बढ़ता प्रदूषण (Pollution) अपने आप में एक बहुत बड़ी समस्या बन गया है। समय बीतने के साथ ही भारत में प्रदूषण और तेजी से बढ़ता जा रहा है। कई शहरों की हवा इतनी दूषित हो चुकी है, जिसमें सांस लेना भी मुश्किल होता जा रहा है। ग्रीनपीस के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 में वायु प्रदूषण (Air pollution) की वजह से करीब 1.2 मिलियन से ज्यादा भारतीयों ने वक्त से पहले ही दुनिया को अलविदा कह दिया। ये आंकड़े प्रदूषण की भयावहता का प्रमाण हैं। मगर प्रदूषण न केवल जानलेवा है, बल्कि ये आपके मस्तिष्क स्वास्थ्य (Pollution effect on mental health) को भी प्रभावित करता है। आइए जानते हैं कैसे।
हमारे पर्यावरण में जब कुछ अनचाहे तत्वों का प्रवेश होता है जिसकी वजह से पर्यावरण में काफी बदलाव आ जातें हैं। जो हमारे लिए हानिकारक होते है। ऐसी स्थित को प्रदूषण कहा जाता है। प्रदूषण का प्रभाव सिर्फ इंसान ही नहीं, बल्कि जीव-जंतुओं पर भी होता है। इससे सिर्फ लंग्स, हार्ट और स्किन को ही नुकसान नहीं होता, बल्कि यह आपके मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। जिससे कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं।
डॉ. ज्योति कपूर, सीनियर मनोचिकित्सक और संस्थापक (Senior Psychiatrist and Founder) मनस्थली कहती हैं कि, शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली कोई भी चीज मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण के साथ, कई अध्ययन किए गए हैं जो मानसिक स्वास्थ्य पर प्रदूषण के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव को दर्शाते हैं।
अमेरिका की येल और चीन की पेकिंग यूनिवर्सिटी द्वारा वर्ष 2010 से 2014 के बीच लगभग 32 हजार लोगों पर रिसर्च की गयी और पाया कि वायु प्रदूषण से उनके शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की सेहत प्रभावित (Pollution effect on mental health) हुई। हालांकि प्रदूषण का प्रभाव महिलाओं की तुलना में पुरुषों और सबसे अधिक बुजुर्गों पर देखा गया।
डॉ. कपूर आगे कहती हैं कि श्वसन संबंधी समस्याओं, नींद में गड़बड़ी, हवा में छाने वाली धुंध जिसकी वजह से प्रकाश की कमी होती है। जो मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर स्राव को प्रभावित करती है। यह नर्वस सिस्टम को भी प्रभावित करता है। इसके साथ ही यह एंग्जाइटी, डिप्रेशन, पर्सनालिटी डिसऑर्डर और कम सहनशीलता जैसे विकारों को बढ़ाता है।
एक्सपर्ट कहती हैं कि यदि प्रदूषण बहुत अधिक होता है तो यह हमारी नींद को भी प्रभावित करता है। यदि सोते वक़्त हमारे आसपास के माहौल में प्रदूषण का स्तर काफी अधिक होता है, तो हमें सांस लेने में परेशानी होती है। जिसके कारण बॉडी में ऑक्सीजन लेवल डाउन होने लगता है और दिमाग एक्टिव हो जाता है। जब मस्तिष्क सक्रिय होता है, तो हमें नींद नहीं आती है या बार-बार नींद टूटती रहती है।
जब दिमाग में ऑक्सीजन का लेवल कम होता है। तो यह आपके मूड को प्रभावित करता है, जिससे आप डिप्रेशन महसूस करते हैं।
जब नींद पूरी नहीं होती है, तो पूरे दिन नींद आती रहती है। जिसकी वजह से शरीर में होर्मोनल डिसबैलेंस बना रहता है, जिसकी वजह से अक्सर मूड स्विंग्स की समस्या भी होती है।
द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन में किये गए एक शोध के मुताबिक, वायु प्रदूषण और मानसिक स्वास्थ्य का सीधा संबंध होता है। यह शोध 2021 में 13 हजार लोगों पर यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के रिसर्चर (researchers) द्वारा की गयी थी। रिसर्च में पाया गया कि प्रदूषित हवा में मौजूद नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड के संपर्क में आने पर मानसिक स्वास्थ्य से ग्रस्त लोगों में लगभग 32 प्रतिशत लोगों को उपचार की आवश्यकता पड़ी, वहीं 18 फीसदी लोगों को हॉस्पिटल में एडमिट किया गया।
इसके साथ ही रिसर्चरस ने यह भी बताया कि प्रदूषण बढ़ने से अवसाद और एंजाइटी के मामलों में बढ़ रहे हैं। यह मेन्टल हेल्थ को इतना प्रभावित करता है कि कुछ लोग सुसाइड भी कर लेते हैं। अधिक प्रदूषित जगहों पर रहने वाले लोगों में मेंटल डिसऑर्डर होने का जोखिम काफी अधिक होता है। पॉल्यूशन डिमेंशिया जैसी खतरनाक बीमारी का भी कारण बन सकता है।
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