को-पेरेन्टिंग एक ऐसा दायित्व है जिसे पेरेंट्स अपने बच्चों के पालन-पोषण, सोशलाइज़ेशन, केयर जैसी जिम्मेदारियों का समान रूप से निर्वहन करते हुए निभाते हैं। अब यह जानना जरूरी है कि को-पेरेंट रिलेशनशिप वास्तव में, दो वयस्कों के बीच अंतरंग रिश्ते से इस मायने में अलग होती है कि इसमें केंद्र में बच्चा होता है।
यह एक-दूसरे के साथ मधुरता से पेश आने की दरकार रखता है। ताकि बच्चे या बच्चों को दोनों पेरेन्ट्स के साथ स्वस्थ और नज़दीकी संबंध बनाए रखने में सहजता महसूस हो। बेशक, ऐसा करना आसान नहीं होता है, मगर नामुमकिन भी नहीं है।
बेशक, स्वस्थ को-पेरेन्टिंग का रिश्ता कायम करना और निभाना आसान नहीं होता, लेकिन होता फायदेमंद है
परवरिश में साझेदारी अर्थात को-पेरेन्टिंग बच्चे/बच्चों की खुशहाली के लिए एक अच्छी व्यवस्था है। खासतौर से उन अभिभावकों के बच्चे/बच्चों के लिए जो तलाक की प्रक्रिया से गुजर चुके हैं या गुजर रहे हैं। जब पेरेन्ट्स किसी भी वजह से को-पेरेन्टिंग की जिम्मेदारी नहीं निभा पाते, तो यह तनाव बढ़ाने वाली स्थितियों को जन्म देता है और बच्चा, जो कि पहले से ही चिंताग्रस्त होता है, और भी परेशान हो जाता है।
1. बच्चे/बच्चों का दोनों पेरेन्ट्स के साथ रिश्ता बेहतर होता है।
2. बच्चों को ‘आपस के झगड़ों/विवादों’ से दूर रखने से वे घर-परिवार से बाहर बेहतर कर पाते हैं।
3. बच्चे अच्छा जीवन बिताने की परिस्थितियां बनाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं न कि सिर्फ सड़े-गले रिश्तों को निभाने की मजबूरियों से गुजरते हैं।
4. जो बच्चे अपने पेरेन्ट्स को आपस में एक-दूसरे की इज्जत करते हुए तथा परस्पर महत्वपूर्ण मानते हुए देखते हैं वे अधिक आत्म-विश्वास से भरपूर होने के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर परिपक्वता भी सीखते हैं।
5. पेरेन्ट्स को आपस में स्वस्थ तरीके से संवाद करते हुए तथा परस्पर सहयोग करते हुए देखकर बच्चों को भी अच्छे सामाजिक कौशल सीखने का मौका मिलता है जिन्हें वे आगे चलकर अपने जीवन में उतार सकते हैं।
अगर बच्चे/बच्चों को यह पता होता है कि उन्हें अपने पेरेन्ट्स के साथ संबंधों को निभाने के लिए कोई जोड़-तोड़ या समझौते की जरूरत नहीं है, तो वह खुद इन दो पाटों के बीच पिसने से बच जाता/जाती है।
को-पेरेन्टिंग की जिम्मेदारी यदि सही तरीके से निभाई जाए, तो यह काफी हद तक सुनिश्चित करता है कि आपके बच्चे/बच्चों को आप दोनों के रिश्तों के बीच पिसने की जरूरत नहीं होगी।
दूसरे पेरेन्ट के साथ सहयोग कर आप अपने बच्चे/बच्चों को भी जीवन का एक ऐसा महत्वपूर्ण सबक देते हैं, जिसे वे भविष्य अपनी जिंदगी में आजमाकर मजबूत संबंधों का निर्वाह कर सकते हैं।
जिन बच्चों की खुद को-पेरेन्टिंग हुई होती है, यानी उनकी परवरिश दोनों अभिभावकों ने मिलकर मगर अलग-अलग रहते हुए की होती है, वे हमेशा इस बात को समझते हैं कि उनकी मां और पिता के मन में उनकी भलाई होती है। और वे खुद भी अपने पेरेन्टिंग के सफर में सदा एक समान बने रहते हैं।
इस तरह, रिश्तों में सुरक्षा बोध बच्चे/बच्चों को यह अहसास दिलाता है कि उसे प्यार किया जाता है और यह भी कि वह महत्वपूर्ण है।
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आपसी संघर्ष/विवाद कम
भावनात्मक सहयोग
तो इसलिए इसे समझें, क्योंकि आपके कॅरियर, रिश्तों के तनाव और बहुत सारी परेशानियों के साथ बच्चा भी आपके लिए महत्वपूर्ण है। और उसका भावनात्मक विकास आप दोनों की जिम्मेदारी है।
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