रोजमर्रा के जीवन में व्यक्ति हर पल तनाव और दुविधा का सामना करता है। इसका असर उसकी कार्यक्षमता और व्यवहार दोनों पर दिखने लगता है। कभी ब्रेकअप, कभी पारिवारिक कलह, तो कभी प्रतिस्पर्धा इस समस्या को बढ़ा देती है। इससे व्यक्ति हताश और निराश होकर अकेलापन महसूस करता है और खुद को आइसोलेट कर लेता है। अकेलेपन (loneliness) से ग्रस्त लोग किसी कार्य पर फोकस नहीं कर पाते हैं और उन्हें मेंटल थकान का भी सामना करना पड़ता है। जानते हैं किन कारणों से जीवन में अकेलापन बढ़ जाता है और इसके जोखिम कारक क्या है।
नेशनल अकेडमी ऑफ साइंस, इंजीनियरिंग एंड मेडिसिन के अनुसार 45 की उम्र के एक तिहाई लोगों में अकेलेपन की भावना बढ़ने लगती है। इसके अलावा 65 वर्षीय एक चौथाई लोग खुद को सोशली आइसोलेट कर लेते हैं। हियरिंग लॉस, क्रानिक डिज़ीज़ और पारिवारिक मसले अकेलेपन का कारण बनने लगते हैं।
इस बारे में डॉ आरती आनंद कहती हैं कि जीवन में आने वाले उतार चढ़ाव के कारण स्वंय को सोशली आइसोलेट कर लेना अकेलापन कहलाता है। असंतुलित भावनाएं और बेवजह चिंतित हो जाना अकेलेपन की समस्या को बढ़ा देता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति मानसिक थकान, अनिद्रा और खुद को कमज़ोर महसूस करने लगता है। कई बार भावनाओं में बढ़ने वाली अस्थिरता से हर बार मूड स्विंग की समस्या का सामना करना पड़ता है, जो डिप्रेस्ड पर्सनैलिटी ट्रेट (depressed personality trait) को दर्शाता हैं। ऐसे लोग बड़ी खुशियों की चाहत में छोटी खुशियों को भी सेलिब्रेट नहीं कर पाते हैं, जिससे जीवन में उदासी बढ़ने लगती है।
लो सेल्फ एस्टीम वाले लोगों का सोशल सर्कल (social circle) वाइड नहीं होता है। ऐसे लोगों को अकेलेपन का सामना करना पड़ता है।
रिश्तों में बढ़ने वाली दूरिया और गलत फहमियां व्यक्ति को अकेला कर देती हैं। इसके चलते अधिकतर लोग मायूसी का शिकार हो जाते हैं।
वे लोग जो किसी मानसिक समस्या यानि साइकॉलोजिकल डिसऑर्डर का शिकार है, उन्हें अकेलेपन से दो चार होना पड़ता है।
मौसम में आने वाले बदलाव सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर की समस्या का बढ़ा देते हैं। इससे मूड स्विंग की समस्या बढ़ जाती है।
फिज़िकली एक्टिव न रहना शारीरिक और मानसिक थकान को बढ़ा देता है। ऐसे में अकेलेवन की समस्या बढ़ जाती है।
सीडीसी की रिपोर्ट के अनुसार अकेलेपन (loneliness) से डिप्रेशन, एंग्जाइटी और आत्महत्या का खतरा बढ़ने लगता है। वे लोग जो खुद को सोशली आइसोलेट कर लेते हैं, वे ओवरथिकिंग का शिकार हो जाते हैं। ज्यादा चिंतन तनाव का कारण बन जाता है। इससे व्यक्ति छोटी छोटी बातों से परेशान होने लगता है।
वे लोग जो अकेलापन (loneliness) महसूस करते हैं, उसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर दिखने लगता है। इसके चलते व्यक्ति को मेमोरी लॉस का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा वे लोगों से बाचतीच करने में कठिनाई का सामना करने लगते हैं। कार्यस्थल पर लोगों से रिलेशनशिप बिल्ड करना भी मुश्किल लगने लगता है।
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कस्टमाइज़ करेंअकेलेपन के चलते व्यक्ति हाईपरटेंशन का शिकार हो जाता है। ऐसे लोगों छोटी छोटी बातों को जहन में बैठा लेते हैं। इसका प्रभाव उनकी ओवरऑल हेल्थ पर दिखने लगता है। सेंटर ऑफ डिज़ीज कंट्रोल एंड प्रिवेशन के रिसर्च के अनुसार सामाजिक रिश्तों की कमी के चलते 29 फीसदी लोगों में हार्ट डिज़ीज़ और 32 फीसदी लोगों में स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
अकेलापन सिडेंटरी लाइफस्टाइल का कारण बनने लगता है। इसके चलते व्यक्ति फिटनेस रूटीन से दूर हो जाता है और इंटिंग डिसऑर्डर का सामना करना पड़ता है। ऐसे में ओवरइटिंग की समस्या मोटापे का कारण बन जाती है।
सबसे पहले इस बात को जानने का प्रयास करें कि किन बातों से मायूसी और अकेलापन महसूस होने लगता है। ब्रेकअप के बाद अगर कोई व्यक्ति खुद को अकेला महसूस करता है, तो उन सब यादों और चीजों से दूर रहें, जो बार बार किसी व्यक्ति की यादों को जीवन में ताज़ा कर देती हैं।
अन्य लोगों को खुश रखने के साथ अपनी खुशी का भी ख्याल रखें। इसके लिए अपने सोने, उठने, खाने और फिटनेस रूटीन को पूरा समय दें। सेल्फ पैंपरिंग से शरीर में हैप्पी हार्मोन रिलीज़ होते हैं। इसके चलते व्यक्ति अकेलेपन से दूर होने लगता है। साथ ही सेल्फ लव की भावना भी बढ़ने लगती है।
खुद को मेंटली हेल्दी रखने के लिए कुछ वक्त खुद के लिए निकालें और दोस्तों के साथ घूमने का प्लान बनाएं। इससे सोशल सर्कल वाइड होने लगता है और व्यक्ति मानसिक तौर पर खुद को स्वस्थ महसूस करता है। इससे कार्यक्षमता में भी सुधार आता है और फोकस बढ़ता है।
अपने आसपास रहने वाले सभी लोगों से मज़बूत रिश्ता बनाएं और उसमें नफा नुकसान न तलाशें। इससे व्यक्ति का सोशल सर्कल मज़बूत बनने लगता है। साथ छोटी छोटी बातें तनाव का कारण नहीं बनती हैं। ऐसे व्यवहार से रिश्तों को भी मज़बूती मिलती है।
अपनी बात कहने से पहने दूसरों को सुनना आवश्यक है। इससे व्यक्ति की ओवरऑल ग्रोथ पर प्रभाव पड़ता है। दूसरों के विचारों को समझकर उसके अनुरूप आगे बढ़ने से रिश्तों में मधुरता और व्यवहार में सकारात्कमता बढ़ने लगती है।
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