Breakthebias : सोशल टैबू और डर बढ़ा रहे हैं समलैंगिक जोड़ों में एंग्जाइटी, अवसाद और आत्महत्या का जोखिम

'बिग फैट इंडियन वेडिंग्स' में बहुत सारे पूर्वाग्रह मौजूद हैं। जेंडर, उम्र, लुक, कास्ट, सब कास्ट और स्टेटस। यानी सिवाए प्यार के यहां कुछ भी परखा जा सकता है। यही वजह है कि समलैंगिक जोड़े अपने प्यार के अधिकार के लिए तनाव, एंग्जाइटी और अवसाद से गुजरने को मजबूर हैं।
social taboos ke karan LGBTQ community ko mental health issue ka samna karna padta hai
सामाजिक स्वीकृति न मिलने के कारण समलैंगिक जोड़ों को अपने रिश्तों को छुपा कर रखना पडृता है। चित्र : अडोबी स्टॉक
Updated On: 23 Oct 2023, 09:17 am IST
  • 190

सुप्रीम कोर्ट में आज जब समलैंगिक विवाह (Same sex marriages) पर सुनवाई हो रही थी, ठीक उसी समय ट्विटर पर एलजीबीटीक्यू+ समुदाय (LGBTQAI+ Community) और उनका समर्थन करने वाले लोग #अबकीबारप्यार (#Abkibaarpyaar) हैशटैग के साथ स्वीकृति की दुआ कर रहे थे। हाल ही में हुए एक ऑनलाइन सर्वे में भी यह सामने आया है कि सामाजिक स्वीकृति न मिलने के कारण ज्यादातर समलैंगिक जोड़े तनाव और अवसाद के शिकार रहते हैं। सामाजिक और पारीवारिक तनाव से ये जोड़े आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाने को भी मजबूर हो जाते हैं। जबकि यदि इन संबंधों को स्वीकृति दी जाए तो मानसिक स्वास्थ्य (benefits of same-sex marriage in mental health) में सुधार हो सकता है।

दीपांशु रिसर्च साइंटिस्ट हैं और समलैंगिक विवाह का समर्थन करते हैं। पूर्वाग्रहों और समलैंगिक समुदाय के संघर्ष के बारे में बात करते हुए वे कहते हैं, “जब भी किसी समलैंगिक जोड़े के बारे में बात होती है, तो लोगों के दिमाग में सिर्फ यौन गतिविधियां आने लगती हैं।

जबकि समलैंगिक जोड़ा सिर्फ यौनिकता के स्तर पर ही नहीं, बल्कि भावनात्मक रूप से भी एक-दूसरे से बंधा होता है। यह मूल मानव स्वभाव है कि आप जिसे प्यार करते हैं, उसके साथ रहना चाहते हैं। मेरी नजर में शादी करना किसी का भी निजी चुनाव होना चाहिए। इस पर किसी तरह की पाबंदी नहीं होनी चाहिए। अभी तक समलैंगिक समुदाय को ऐसे लोगों के तौर पर जज किया जाता है, जैसे वह कोई अपराधी है।”

पसंद अलग होना अंधेरों में धकेल देता है

दीपांशु आगे चुनौतियों पर बात करते हुए हैं, “समाज के स्वीकार्य बंधनों से अलग होना एक तरह के डार्क स्पेस में चले जाना है। हालांकि मेरा स्कूल और कॉलेज बहुत अच्छा रहा है। मेरा कॅरियर भी बहुत अच्छा रहा है। पर मैं उन लोगों को भी जानता हूं जिन्हें अपने पार्टनर के लिए ऐसे डार्क स्पेस में जाना पड़ता है।”

anxiety apke sochne ki chamta ko kam kar sakta hai
एंग्जाइटी किसी को भी मानसिक और शारीरिक तौर पर प्रभावित कर सकती है।चित्र : अडोबी स्टॉक

सोशल टैबू पर बात करते हुए वे कहते हैं, “हमारे समाज में सेक्स अपने आप में बहुत बड़ा टैबू है। सेम सेक्स को लेकर तो लोग और भी अहसजह हो जाते हैं। जब भी कोई व्यक्ति अपनी सेक्सुअल ऑरिएंटेशन के बारे में अपने परिवार या दोस्तों को बताता है, तो वह इसे असामान्य मानने लगते हैं और ऐसे ट्रीट करते हैं जैसे यह कोई बीमारी है। जिसे छुपाया जाना चाहिए और जल्द से जल्द इलाज करवाया जाना चाहिए।”

“हालात ये हो जाते हैं कि धीरे-धीरे आपका बाहर निकलना, अपनी पसंद के काम करना, प्रोफेशन में आना मुश्किल होने लगता है। इतना ज्यादा कि कभी-कभी सांस लेना भी दूभर हो जाता है। क्योंकि हर व्यक्ति आपको जज कर रहा है। इससे पहले तक सब कुछ ठीक था, पर अपनी यौन अभिरुचि के बारे में बात करते ही वह व्यक्ति पूरी तरह ऑड हो जाता है। जबकि यह बहुत स्वभाविक है, सिर्फ अपनी-अपनी पसंद का मामला है। जैसे मुझे वनिला आइसक्रीम पसंद है और किसी दूसरे को चॉकलेट।”

सोशल प्रेशर बढ़ा देता है मानसिक तनाव

फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में क्लिनिलक साइकोलॉजिस्ट कामना छिब्बर कहती हैं, “मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं किसी के साथ भी पेश आ सकती हैं, चाहें वह कोई भी हो। ये जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारकों के चलते ये समस्याएं उत्पन्न होती हैं। कोई भी व्यक्ति जो रिश्तों, अपने आसपास के माहौल, पारिवारिक या सामाजिक परिदृश्यों के कारण असहज महसूस कर रहा हो, उसके मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से घिरने का जोखिम ज्यादा रहता है।”

पोल

स्ट्रेस से उबरने का आपका अपना क्विक फॉर्मूला क्या है?

वे आगे कहती हैं, “खासतौर से जब व्यक्ति किसी तरह के टैबू, पूर्वाग्रह या भेदभाव का अनुभव करता है, तो यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को और ज्यादा प्रभावित करता है। यह अपने बारे में उनके विचारों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। वे कितना सुरक्षित महसूस करते हैं, उनके रिश्तों की प्रकृति कैसी है, वे कैसे बातचीत करते हैं और शामिल होते हैं, उनके मूड और सोच सभी पर नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं।

कुल मिलाकर, ऐसे परिदृश्य में लोग लो मूड, चिड़चिड़ेपन, परेशान या क्रोधित, चिंतित और ओवरथिंकिंग से ग्रस्त हो सकते हैं। उनकी नींद और भूख का पैटर्न भी गड़बड़ हो सकता है। साथ ही वे असहाय, निराश या खुद को बेकार महसूस करते हैं। हालांकि सभी में इनका एक सा स्तर हो यह जरूरी नहीं है।”

इन रिश्तों की स्वीकृति करेगी मानसिक स्वास्थ्य में सुधार

हाल ही में 6 शोधकर्ताओं ने एक ऑनलाइन सर्वे किया। जिसमें LGBTQIA + विवाह समानता कानून के प्रत्याशित प्रभाव (The Anticipated Impact of LGBTQIA+ Marriage Equality Legislation on Indian Society and Mental Health) के बारे में समझने का प्रयास किया गया।

शोध में शामिल 5,825 लोगों में से 95 फीसदी ने यह माना कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 377 को गैर अपराधीकरण करने के बाद से समुदाय के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। इसी तरह से अगर विवाह को समर्थन दिया जाता है, तो उनके मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार होगा। शोध के परिणाम यह संकेत करते हैं कि समलैंगिक विवाह काे समर्थन मिलने के बाद कानूनी अधिकारों, सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होगा।

न्यूरोसाइंटिस्ट और शोध की सहलेखिका मेघा शारदा भी मानती हैं,”क्वीर जोड़ों और उनके परिवारों में तनाव, अवसाद और आत्महत्या जैसे मामले बहुत ज्यादा हैं। जिसका कारण सोशल टैबू हैं। हालांकि समलैंगिक विवाह का समर्थन सामाजिक स्वीकृति की गारंटी नहीं है। पर यह काफी हद तक उनमें भावनात्मक सुरक्षा को बल देगा। इसके बाद क्वीर जोड़े गरिमा के साथ अपने पार्टनर के साथ रह पाएंगे।”

समलैंगिक संबंधों और विवाह का समर्थन करते हुए दीपांशु कहते हैं, “उच्च शिक्षण संस्थानों जैसे IIT, MIT और प्रिंसटन हार्वर्ड से पढ़ाई कर रहे युवाओं को भी इस भेदभाव के कारण जटिल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। अगर एक ऐसी दुनिया का निर्माण हम कर सके, जहां समलैंगिक होना कोई मुद्दा न हो, तो हम एक महत्वपूर्ण मानव संसाधन को खोने से बचा सकते हैं।”

पहले समझिए कि यह कोई बीमारी नहीं है

मनोचिकित्सक, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और कंटेंट क्रिएटर डॉ राशि अग्रवाल कहती हैं, “मैंने कई पेरेंट्स को अपने किशोर और युवा बच्चों को इस उद्देश्य से इलाज के लिए आते देखा है, जो चाहते हैं कि किन्हीं दवाओं या थेरेपी की मदद से उनका बच्चा सामान्य ‘straight’ हो जाएं। जैसे कि यह कोई बीमारी है, जिसे दवाओं और उपचार से ठीक किया जा सकता है।

Logo ko ye samajhna higa ki ye koi disease nahi hai
लोगों को यह समझना होगा कि यह कोई बीमारी नहीं है । चित्र: अडोबी स्टॉक

उन पेरेंट्स को यह बताने और समझाने में बहुत सारी ऊर्जा, समय और साइको एजुकेशन की जरूरत होती है कि यह भी सामान्य है। इसे भी उन्हें स्वीकार करना चाहिए।”

“मुझे सचमुच तकलीफ होती है इस समुदाय के लोगों के लिए, जिन्हें सोशल टैबू और दबावों के कारण अपने अधिकारों की इतनी जटिल लड़ाई लड़नी पड़ रही है कि वे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के शिकार हो रहे हैं। उनमें अवसाद, एंग्जाइटी डिसऑर्डर, अनिद्रा और पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर जैसी समस्याएं बहुत कॉमन हैं।

हालांकि दवा और थेरेपी उनकी मदद करती हैं। पर जब तक उन्हें सामाजिक स्वीकृति और समर्थन नहीं मिलता, उनकी चुनौतियां खत्म होने वाली नहीं हैं।

समझिए कि इस तनाव को कम करने के लिए आप क्या कर सकते हैं

सबसे पहली और सबसे बड़ी जरूरत है कि उन्हें जज न करें। उनके बारे में जल्दबाजी में कोई भी राय न बनाएं। क्योंकि ज्यादातर लोग ऐसा ही करते हैं, इसलिए वे भावनात्मक रुप से बहुत बार चोटिल हो चुके होते हैं। उन्हें अपनी बात कहने, खुद को अभिव्यक्त करने का स्पेस दें। उनसे उनकी चुनौतियों के बारे में बात करें और समझें कि वे उन्हें किस तरह प्रभावित कर रहीं हैं।

अगर आप ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं कि आप उन्हें कैसे सपोर्ट कर सकते हैं, तो उनसे इस बारे में बात करें। अगर ऐसा लगता है कि उन्हें किसी प्रोफेशनल हेल्प की जरूरत है, तो इसमें उनकी मदद करें।

यह भी पढ़ें – लिवइन रिलेशनशिप में हैं, तो इन 6 गोल्डन रूल्स को फॉलो कर बनाएं अपने रिश्ते को स्ट्रेस फ्री और स्ट्रॉन्ग

लेखक के बारे में
योगिता यादव
योगिता यादव

कंटेंट हेड, हेल्थ शॉट्स हिंदी। वर्ष 2003 से पत्रकारिता में सक्रिय।

अगला लेख