क्या आप कभी किसी ऐसे व्यक्ति से मिले हैं जो मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी पॉज़िटिव रहते हैं। आसमान फट जाए, पहाड़ गिर जाए, दुनिया तहस-नहस हो जाये मगर वे शांत और सकारात्मक ही दिखते हैं।
ऐसे लोग असल में साहस और सकारात्मकता का प्रतीक नहीं होते, बल्कि हकीकत से इनकार कर अपनी ही दुनिया में जी रहे होते हैं। वह बाहर से तो मजबूत और शांत नज़र आते हैं, मगर अंदर से पूरी तरह टूट चुके होते हैं।
कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, गुरुग्राम की क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट डॉ श्वेता शर्मा कहती हैं,”टॉक्सिक पॉजिटिविटी या विषाक्त सकारात्मकता एक ऐसी स्थिति है, जब आप खुद को हर परिस्थिति में खुश, सन्तुष्ट या सकारात्मक रखने के लिए वास्तविकता को पीछे छोड़ देते हैं। आप हर हालत में खुश होने के लिए खुद पर दबाव डालते हैं। ताकि आपको किसी बुरी परिस्थिति का सामना ना करना पड़े।”
डॉ शर्मा बताती हैं कि इस सकारात्मकता के पीछे हकीकत से भागने की प्रवृत्ति छुपी होती है। किसी भी चीज की अति ठीक नहीं होती, चाहे वह सकारात्मकता ही क्यों न हो।
जब पॉजिटिविटी मानवीय भावनाओं और संवेदनाओ को दबाने या छुपाने का ज़रिया बने तो वह टॉक्सिक हो जाती है। दर्द, प्रेम, बिछोह और डर जैसी भावनाएं मनुष्य के अंदर होना नॉर्मल है और उन्हें व्यक्त किया जाना चाहिए। डॉ. शर्मा कहती हैं, “कई बार अपनी भावनाओं को छुपाने के चक्कर में हम अपनी मनोस्थिति के साथ खिलवाड़ करने लगते हैं।”
अमूमन हर मानसिक रोग की तरह इसका कारण भी बचपन की सीख में है। बचपन से हमें यदि सिखाया जाता है कि भावनाओं को व्यक्त मत करो, हमेशा मुस्कुराओ और कभी किसी के सामने अपना हाल ज़ाहिर मत करो। तो इन्हीं सब के कारण हम अपनी भावनाओं को व्यक्त करने से कतराते हैं और यही स्थिति बढ़ते-बढ़ते टॉक्सिक पॉजिटिविटी का रूप ले लेती है।
यही नहीं, कई बार यह डर कि हमारी भावनाओं का कोई गलत फायदा उठा सकता है, हमें अपनी भावनाओं को दबाने पर मजबूर कर देता है।
डॉ शर्मा के अनुसार इन लक्षणों का ध्यान देकर आप खुद को या अपने आस-पास के टॉक्सिक पॉजिटिविटी से जूझ रहे व्यक्ति को जान सकती हैं।
1.आप हो सकते हैं अवसादग्रस्त
हर वक्त सकारात्मक सोचने के दबाव के कारण आप असल में मन ही मन और अधिक नकारात्मक हो जाते हैं। इसके कारण आप खुद को डिप्रेशन का शिकार बना लेती हैं।
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कस्टमाइज़ करें2. यह आपकी मानसिक असुरक्षा को बढ़ाता है
ऐसे लोग एक भ्रम में जीते हैं कि सकारात्मक होकर वे सबके लिए प्रेरणा बनने का काम कर रहे हैं और इसलिए हर व्यक्ति उन्हें पसंद करता है। जब सामने से उनकी कल्पना अनुसार बर्ताव नहीं होता तो वे अपने आप पर ही संदेह करने लगते हैं।
इस तरह की मनोस्थिति बहुत खतरनाक हो सकती है।
3. आत्मघाती बर्ताव को देता है बढ़ावा
डॉ शर्मा बताती हैं कि ऐसे व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में भी अपने अनुकूल परिणामों की उम्मीद करते हैं, और ऐसा न होने पर आत्महत्या जैसे गम्भीर कदम उठाने का भी प्रयास करते हैं।
4. आप आजीवन डिनायल में जीने लगते हैं
ऐसे व्यक्ति हकीकत को न अपनाकर अपने काल्पनिक यथार्थ में जीने लगते हैं। इससे कई गम्भीर मनोरोग उन्हें आसानी से शिकार बना सकते हैं
डॉ शर्मा टॉक्सिक पॉजिटिविटी से बचने के लिए सबसे पहले अपनी भावनाओं को अपनाने का सुझाव देती हैं। वह कहती हैं,”डर, दर्द, गुस्सा जैसे भावों को बाहर निकल देना सबसे ज़रूरी है। इन एहसासों को दबाने के बजाय कहने की आदत डालिये। अपने पार्टनर या दोस्तों से अपनी भावनाओं को साझा कीजिये।
यदि आप किसी व्यक्ति को जानती हैं, जो इस समस्या से गुज़र रहा है तो उसके प्रति ख़ास तरह के बर्ताव को अपनाएं। उनकी बातों में हां में हां ना मिलाएं, अपनी बात को उनसे कहें। अगर आपको उनके आसपास रहना असहज लगता है तो उनसे दूरी बना के रखें। अपने मन की शांति आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए।
यह आपका जीवन है जिसे आपको अपनी तरह से जीना है। जिंदगी बहुत खूबसूरत है और इसमें किसी और के नज़रिए को अपनाने के बजाय जो आप महसूस करते हैं, सिर्फ़ उसे प्राथमिकता दें। सुख और दुःख दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसे याद रखें और ज़िन्दगी का भरपूर आनंद लें।
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