दिल्ली में हाल ही में सामने आई एक युवती की वीभत्स हत्या ने हमारी सोच पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया है, जिससे हम एक साथ भ्रमित, क्रोधित, दुखी और डरे हुआ महसूस कर रहे हैं। यह शायद थोड़ा ठहरने और उन दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकताओं पर विचार करने का क्षण है, जो ऐसी स्थिति का कारण बनती हैं। यह घरेलू हिंसा का एक अनकन्वेंशनल और वीभत्स उदाहरण है। मई, 2022 में एनएफएचएस-5 के नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि 30% भारतीय महिलाएं किसी न किसी रूप में घरेलू हिंसा का सामना करती हैं। मगर इनमें से ज्यादातर इसे ठीक से समझ नहीं पातीं और शेष इससे बाहर निकलने के रास्ते (How to get rid of Domestic violence) नहीं खोज पातीं। इसलिए यह जरूरी है कि हम घरेलू हिंसा (what is domestic violence) की छिपी हुई दस्तक को पहचानकर उससे समय रहते बाहर निकल सकें।
परिभाषा के आधार पर देखें तो किशोरावस्था या वयस्कता के शुरुआती वर्ष हमारे जीवन का एक ऐसा पड़ाव हैं, जिस दौरान खुद को, अपने रिश्तों को, परिवार को और दुनिया में अपनी मौजूदगी को लेकर हमारी सोच तेजी से बदल रही होती है। सोच में इन बदलावों के साथ शारीरिक एवं मानसिक परिपक्वता से हमारी स्वायत्तता, व्यक्तित्व, अभिभावकों के साथ अधिक समान या समतावादी संबंध की आवश्यकता बढ़ती है। इससे संघर्ष की स्थिति बनती है।
युवाओं में अपने उठाए गए कदमों के जोखिम और परिणाम के आकलन की सीमित क्षमता होती है। ऐसे में सोशल मीडिया के माध्यम से बनने वाली इंस्टैंट कनेक्टिविटी से एक तूफान जैसा बन जाता है। बताया जा रहा है कि श्रद्धा और आफताब की दोस्ती एक डेटिंग एप के जरिये हुई थी। यह भी सामने आ रहा है कि इसी तरह के एप्स के माध्यम से आफताब से जुड़ी कई अन्य लड़कियां भी हत्या के बाद उसके अपार्टमेंट में आई थीं। निश्चित तौर पर उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि कुछ दिन पहले उस स्थान पर क्या हुआ था या अभी भी फ्रीजर में क्या पड़ा है।
सहस्राब्दियों से विभिन्न संस्कृतियों में परिवार व्यवस्था ने युवाओं में इन आवेगों को संभालने और कई अनपेक्षित परिणामों को रोकने में बड़ी भूमिका निभाई है। जैसे-जैसे हमारी दुनिया विकास कर रही है, हमें भी इसके साथ बदलना होगा। माता-पिता और बच्चों के बीच अधिक खुले संवाद की आवश्यकता है। ऐसा माहौल बनाने की आवश्यकता है, जहां युवा सुरक्षित तरीके से अपनी बात रख सकें और असहमति पर खुलकर चर्चा हो।
माता-पिता अक्सर सोचते हैं कि उन्हें अपने किशोर बच्चों की नकारात्मक भावनाओं को दबा देना चाहिए और उनकी सकारात्मक भावनाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए या असहमति की स्थिति में अपनी नकारात्मक भावनाओं को व्यक्त करने से बचना चाहिए। असल में किशोरावस्था में इस तरह के संवाद में कई भावनाएं जुड़ी होती हैं। माता-पिता को किशोरों को सकारात्मक और नकारात्मक भावनाओं को व्यक्त करने, साझा करने और नियंत्रित करने के लिए मार्गदर्शन करने का प्रयास करना चाहिए।
श्रद्धा और आफताब की कहानी काफी अलग भी हो सकती है। जानकारी सामने आ रही है कि कैसे परिवार, दोस्तों, सहकर्मियों आदि से उन्होंने अपने संबंध के बारे में बात की और उन्हें बहुत सीमित प्रतिक्रिया मिली। इन प्रतिक्रियाओं ने उनके बीच खतरे को बढ़ाया।
उनके युवा मन में अपनी समस्याओं को सुलझाने की सीमित क्षमता थी और उसके परिणामस्वरूप एक हिंसक, दुर्भाग्यपूर्ण, दुखद और पूरी तरह से अनावश्यक घटना सामने आई। परिवार और समाज के रूप में हमें ऐसा माहौल बनाने की आवश्यकता है, जहां हमारे युवा सुरक्षित तरीके से अपने भय, क्रोध, इच्छाओं और कमजोरियों को व्यक्त कर सकें और बेहतर वयस्क बनने में सक्षम हो पाएं।
प्यार करने और प्यार पाने की क्षमता ही हमें इंसान बनाती है। अपने साथी के प्रति गुस्सा, निराशा, परेशान होना भावनाओं का उतना ही हिस्सा है जितना खुश रहना, देखभाल करना, प्यार करना और आनंदित होना। हमें मानवीय रिश्तों की ऐसी जटिलताओं को जानने और अंतरंग साथी या घरेलू हिंसा से बचने के लिए इनके बारे में सीखने की आवश्यकता है।
घरेलू हिंसा के अपराधियों में कुछ ऐसे लक्षण होते हैं, जिन्हें ‘रेड फ्लैग’ या सोशियोपैथिक टेंडेंसी कह सकते हैं, जैसे:
श्रद्धा और आफताब के रिश्ते के मामले में कुछ ऐसा ही नजर आता था। ऐसी स्थिति में पीड़ित के लिए “छोड़ देना” बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। विवाह या लिव-इन या रोमांटिक रिश्तों में भी कई भावनाएं होती हैं, जिनमें साहचर्य, बाहरी दुनिया से सुरक्षा, साथ रहना, वित्तीय सहायता, बच्चों को पालना और अलग होने की स्थिति में कलंक लगने का डर भी शामिल है।
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कस्टमाइज़ करेंमई, 2022 में एनएफएचएस-5 के नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि 30% भारतीय महिलाएं किसी न किसी रूप में घरेलू हिंसा का सामना करती हैं। अगर हम इस तरह की एक और दुर्भाग्यपूर्ण घटना से बचना चाहते हैं, तो यह महत्वपूर्ण है कि हम समाज में, अपने परिवार एवं दोस्तों से बिना डर के इन बातों पर चर्चा करें।
1. अपेक्षित व्यवहारों और मानदंडों की स्पष्ट सीमाएं बनाएं।
2. हिंसा से बचाव के लिए अपनी योजना बनाकर रखें। एक बैग रखें, जिसमें कुछ अतिरिक्त पैसे, कपड़े, ज्यादा समय तक खाए जा सकने वाले खाद्य पदार्थ, किसी परिचित का नाम/नंबर, घर से भागने के लिए जरूरी चीजें हों।
3. रसोई/बाथरूम जैसी जगहों पर साथी से किसी तरह के टकराव से बचें, जहां ऐसी वस्तुएं होती हैं जिन्हें हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
4. यदि दोनों में से कोई भी नशे में है, तो तनावपूर्ण बातचीत से बचें।
5. रेड फ्लैग्स की पहचान करें जैसे- आपको गाली देना, आपका अपमान करना या आपको नीचा दिखाना, आपको काम या स्कूल जाने से रोकना या हतोत्साहित करना या परिवार के सदस्यों या दोस्तों से मिलने से रोकना, आपके खर्च के तरीकों को नियंत्रित करने का प्रयास करना, आपके कहीं आने-जाने पर नियंत्रण का प्रयास करना, आपकी दवाओं, आपके पहनावे पर सवाल करना, ईर्ष्या या स्वामित्व दिखाना, लगातार आप पर बेवफा होने का आरोप लगाना, शराब या नशीली दवाओं के सेवन के बाद गुस्सा होना, आपको हिंसा या हथियार से धमकाना, मारना, पैरों से मारना, धक्का देना, थप्पड़ मारना, गला दबाने कोशिश करना या आपको, बच्चों को या पालूत जानवरों को चोट पहुंचाना, आपकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करना, अपने हिंसक व्यवहार के लिए आपको दोषी ठहराना या यह कहना कि आपके साथ ऐसा ही होना चाहिए।
6. जरूरत पड़ने पर आपातकालीन नंबर – 112 या घरेलू हिंसा हेल्पलाइन: 1800 212 9131 पर संपर्क कर आप अपने लिए सुरक्षा मांग सकती हैं।
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