शेयरिंग, बॉन्डिंग और टीमवर्क की पाठशाला हैं भाई–बहन, जानिए सिब्लिंग रिलेशनशिप के फायदे

सिब्लिंग रिलेशनशिप से बच्चे के व्यवहार में कई प्रकार के सकारात्मक बदलाव देखने को मिलते हैं। बच्चा अपनी भावानाओं को नियंत्रित करने में सक्षम होता है। साथ ही बच्चा दोस्ती करना सीखता है और शेयरिंग के महत्व को भी समझता है।
Siblings ka hona kyu hai jaruri
सिब्लिंग होने से बच्चा दोस्ती करना सीखता है और इस बात को जान पाता है कि कौन सा व्यवहार उसके लिए उचित है और कौन सा अनुचित। चित्र- अडोबीस्टॉक
Published On: 7 Nov 2024, 07:00 pm IST
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Dr. Yuvraj pant
इनपुट फ्राॅम

छोटे बच्चे की किलकारियां जब गूंजती हैं, तो पूरा परिवार खुशी से झूम उठता है। मगर इन दिनों संयुक्त परिवारों की तादाद कम होती जा रही है। जिस प्रकार संयुक्त परिवारों का चलन दिनों दिन कम हो रहा है और लोग एकल परिवारों को ही बेहतरीन विकल्प मानने लगे हैं। ठीक उसी प्रकार से दो की जगह एक बच्चे को माता पिता अपनी दुनिया मान लेते हैं। दरअसल, कामकाजी होने के चलते बच्चों के लिए समय निकाल पाना बेहद मुश्किल कार्य है। मगर इस जोड़ तोड़ में वे इस बात को भूल जाते हैं कि उनके नन्हे मुन्ने को किसी सिब्लिंग की आवश्यकता है। वो भाई या बहन जो बड़े बच्चे से न केवल बहुत कुछ सीख सकता है बल्कि उससे कहीं ज्यादा सिखा भी सकता है। जानते हैं सिब्लिंग होना क्यों है ज़रूरी (Sibling benefits)

यूएनएम हेल्थ साइंस की रिपोर्ट के अनुसार बच्चों में अपने भाई बहनों को ऐसी बातें बताने की संभावना अधिक होती है जो वे अपने माता पिता को नहीं बता सकते हैं। सिब्लिंग रिलेशनशिप से उनका किसी दुविधा में फंसने का जोखिम कम हो जाता है। सिब्लिंग होने से बच्चा दोस्ती करना सीखता है और इस बात को जान पाता है कि कौन सा व्यवहार उसके लिए उचित है और कौन सा अनुचित।

सिब्लिंग रिलेशनशिप (Sibling relationship)

इस बारे में मनोचिकित्सक डॉ युवराज पंत बताते हैं कि बच्चे के अकेलेपन को दूर करने और उसके मानसिक व शारीरिक विकास के लिए सिब्लिंग रिलेशन बेहद ज़रूरी है। इससे बच्चे में इमोशनल बॉडिंग बिल्ड होती है, जिससे बच्चा अपनी भावानाओं को नियंत्रित करने में सक्षम होता है। साथ ही अन्य लोगों के इमोशंस को भी समझता है। सिब्लिंग रिलेशनशिप (sibling relationship) से बच्चे के व्यवहार में भी कई प्रकार के सकारात्मक बदलाव देखने को मिलते हैं।

Sibling relationship ke fayde
सिब्लिंग रिलेशनशिप से बच्चे के व्यवहार में भी कई प्रकार के सकारात्मक बदलाव देखने को मिलते हैं। चित्र- अडोबीस्टॉक

सिब्लिंग होना क्यों है ज़रूरी (Why sibling relationships matter so much)

1. शेयरिंग सीखते हैं

अकेले रहने वाले बच्चे शेयरिंग को नहीं समझ पाते हैं। उनके अनुसार हर चीज़ पर उनका अधिकार होता है, जिससे बच्चे में देखते ही देखते स्वार्थ की भावना पनपने लगती है। इससे बच्चे की डिमांड बढ़ने लगती है और चीजों के प्रति लगाव बढ़ जाता है। सिब्लिंग रिलेशनशिप में वे बच्चे जिनके पास छोटे भाई या बहन हैं, वे कम उम्र में शेयरिंग करना सीख लेते हैं। इससे उनका व्यवहार निस्वार्थ होने लगता है।

2. आदर की भावना

संस्कारों की शुरूआत परिवार से होती है, मगर छोटे बड़े का आदर और सम्मान करना अक्सर बच्चे अपने हम उम्र भाई बहनों के व्यवहार से सीखने लगते हैं। सिब्लिंग रिलेशनशिप से बच्चों में बात करने की समझ बढ़ती है और वो परिवार के सदस्यों की रिस्पेक्ट करने लगते हैं।

3. टीमवर्क सीखने लगते हैं

चाहे स्कूल का कोई प्रोजेक्ट हो या त्योहार। बच्चे हर काम को मिलकर करने में खुशी का अनुभव करते है, जिससे उन्हें एक साथ काम करने की आदत हो जाती है। सिब्लिंग रिलेशनशिप से व्यवहार में एकजुटता बढ़ने लगती है और इससे आपसी अंडरस्टैडिंग बढ़ने लगती है। ऐसे में बच्चे स्कूल में भी आसानी से एडजस्ट होने लगते हैं।

Siblings ka vyavhar par asar
चाहे स्कूल का कोई प्रोजेक्ट हो या त्योहार। बच्चे हर काम को मिलकर करने में खुशी का अनुभव करते है, जिससे उन्हें एक साथ काम करने की आदत हो जाती है। चित्र :शटरकॉक

4. ज्यादा जिद्दी होते हैं सिंगल चाइल्ड

अकेला बच्चा हर काम के लिए पेरेंटस को खोजने लगता है। वे हर जगह साथ जानें और हर चीज़ के लिए अपनी जिद मनवाता है। सिब्लिंग रिलेशनशिप में जब दो बच्चे एक साथ रहते हैं, तो वे एक दूसरे की कंपनी को पसंद करते है और अधिकतर समय साथ गुज़ारने के चलते हर समय पेरेंटस का पीछा नहीं करते हैं।

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5. सीखने और सिखाने की प्रक्रिया जारी रहती है

जहां छोटा बच्चा सीखने का इच्छुक रहता है, तो वहीं बड़े भाई बहन सिखाने में गर्व महसूस करते है। ऐसे में बड़ा बच्चा अपने आप जिम्मेदार बनने लगता है और छोटे बच्चे को अपनी जिम्मेदारी मानने लगता है। सिब्लिंग रिलेशनशिप में छोटा बच्चा आज्ञाकारी हो जाता है और बड़े बच्चे की बात को सुनने लगता है।

6. सकारात्मक प्रतिस्पर्द्धा सीखते हैं

दो बच्चों में आपसी प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा होने लगती है। इससे बच्चे एक दूसरे से आगे निकलने की कोशिश में रहते है। इससे उनके मन में जीवन में कुछ पाने की इच्छा तीव्र होने लगती है और रोज़मर्रा के जीवन में मिलने वाली छोटी जीत भी उनके लिए बेहद अह्म होती है।

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दो बच्चों में आपसी प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा होने लगती है। इससे बच्चे एक दूसरे से आगे निकलने की कोशिश में रहते है। चित्र:शटरस्टॉक

7. बना रहता है इमोशनल सपोर्ट

कभी टीचर, तो कभी पेरेंट्स से मिलने वाली डांट के बाद सिब्लिंग का साथ इमोशनल सपोर्ट का काम करता है। इससे बच्चे मानसिक तनाव का शिकार नहीं होते हैं और अपनी गलती से सीखकर आगे बढ़ते हैं। सिब्लिंग रिलेशनशिप में बच्चे खुद को अकेला नहीं समझते हैं। उनके पास अपनी बात कहने के लिए किसी का साथ मौजूद होता है।

लेखक के बारे में
ज्योति सोही
ज्योति सोही

लंबे समय तक प्रिंट और टीवी के लिए काम कर चुकी ज्योति सोही अब डिजिटल कंटेंट राइटिंग में सक्रिय हैं। ब्यूटी, फूड्स, वेलनेस और रिलेशनशिप उनके पसंदीदा ज़ोनर हैं।

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