दिन भर दूसरों के बारे में सोचने, विचारने और उनके कामों को करने में ही बीत जाता है। कुछ भी कार्य करने या खाने से पहले भी हम दूसरों के बारे में ही सोचते हैं। इस तरह का व्यवहार हमें अंदर ही अंदर डिस्टर्ब करने लगता है। सेल्फ लव की भावना को भूलकर हमारी सारी एनर्जी और वक्त दूसरों की ज़रूरतों पर निर्भर रहने लगता है। इसके चलते हमारे अंदर कई प्रकार के बदलाव पैदा होने लगते हैं। हम अंदर ही अंदर खुद से परेशान होने लगते हैं, जिसके चलते कभी दूसरों की बातें शोर लगती हैं, तो कभी कोई छोटी सी बात रोने का कारण बन जाती है। जानते हैं कि आप किस तरह से जान सकते हैं कि आपकी बॉडी को मी टाइम की आवश्यकता (When body needs me time) है।
मी टाइम वो समय होता है, जब हम अपने लिए कुछ देसा खास करते है, जिससे हमें खुशी मिलती है। फिर चाहे वो कोई एक्टिविटी हो या कोई अन्य काम । इस बारे में राजकीय मेडिकल कालेज हल्दवानी में मनोवैज्ञानिक डॉ युवराज पंत बताते हैं कि इसका सबसे पहला प्रभाव आपकी नींद पर पड़ने लगता है। स्लीप डिस्टर्ब होना एक सामान्य लक्षण है। आपकी नींद की गुणवत्ता घटने लगती है और आप उठकर फ्रेश फील नहीं करते हैं।
इसके बाद आप अपने डे टू डे वर्क से भी उब जाते हैं। उसका प्रभाव आपकी प्रोडक्टिविटी पर दिखने लगता है। इसके अलावा आपको अपनी जिंदगी मोनोटोनस लगने लगती है। कुछ नयापन नहीं होता है। डॉ युवराज बताते हैं कि इसी स्थिति से बचने के लिए वीकेण्ड का कॉसेप्ट इंटरोडयूज़ किया गया, ताकि हमारी मेंटल हेल्थ सही प्रकार से बनी रहे।
कई बार हम घंटों दूसरों से बातें करते हैं और खूब खुश होते हैं। वहीं बहुत बार ऐसा भी देखा गया है कि किसी से 2 से 3 मिनट बात करना हमारे लिए मुश्किल हो जाता है। हमें घबराहट महसूस होने लगती है और धीरे धीरे आस पास के लोगों की आवाज़ भी शोर लगने लगती है। इसके अलावा सराउंडिग्स में बजने वाला हमारा पसंदीदा म्यूजिक भी हमें सिरदर्द लगने लगता है। ये सब लक्षण इस बात की ओर इशारा करते हैं कि आपका दिमाग थक चुका है और वो आपसे अकेले रहने के लिए कुछ वक्त मांग रहा है।
काम करने के बाद हमारा दिमाग इतना टायर्ड हो जाता है कि उसे खुद को रिफ्रेश करने के लिए वक्त की जरूरत पड़ती है। ऐसे में एकांत की तलाश करना या अकेले कमरे में घंटों बिताना अच्छा लगने लगता है। डॉ युवराज के मुताबिक इससे आप आत्म मंथन कर पाते हैं। अपने बारे में विचार विमर्श कर पाते हैं। कमरे में बंद हो जाने से हम अपनी सेन्सिज़ पर फोकस कर पाते है और इससे हमारी प्रोडक्टिरविटी भी बढ़ने लगती है।
बहुत से लोगों का ध्यान हर वक्त खाने की ओर रहता है। अगर आप बिना सोचे समझे खाने लगती है, तो ये न केवल आपकी हेल्थ को खराब करेगा बल्कि मेंटल स्टेस का भी एक कारण है। वे लोग जो तनाव का शिकार होते है, वे दिनभर खाने में वक्त गुज़ारते हैं। अगर आपका ध्यान भी हर वक्त खाने की चीजों में रहने लगता है, तो सतर्क हो जाएं। ये बात इस ओर इशारा करती है कि आपको मी टाइम की आवश्यकता है। मेडिटेशन और खाली वक्त बिताने से आपका दिमाग दोबारा से उसी प्रकार से काम करने लगता है।
तनाव किसी भी तरह से शरीर से रिलीज़ हो सकता है। फिर चाहे, वो गुस्सा हो या आंसू। अगर आप बेवजह रोने लगती है, तो ये इस बात की ओर इशारा करता है कि आप किसी बड़ी परेशानी में हैं। समस्या से बाहर आने के लिए प्रयास तो कर रही है, मगर वो विफल हो रहे है। मेंटल हेल्थ से जुड़े मामलों में खुद पर नियंत्रण खोना एक आम बात है। जब हम तनाव में रहते हैं, तो कोई छोटी से छोटी बात भी हमारी परेशानी का कारण साबित हो सकती है। बिना किसी बात के अगर आप रो रही हैं, तो ये इस बात की ओर इशारा करता है कि आपको खुद के लिए वक्त की आवश्यकता है।
जब हम मानसिक रूप से परेशान होते हैं, तो ऐसे में किसी का कुछ भी कहना हमें उसका आदेश यानि कमाण्ड लगने लगता है। हमें ऐसा लगने लगता है कि कोई हमें ऑर्डर दे रहा है। मन में उठने वाले भाव हमें परेशान करने लगते है। नतीजन गुस्सा और मन मुटाव का बढ़ना शुरू हो जाता है। ये सब लक्षण इस ओर इशारा करते हैं कि आपको खुद को समय देना बहुत ज़रूरी है। अपने आप के बारे में सोचें, अपनी खुशी को महत्व दें और मेंटन हेल्थ को बनाए रखने के लिए अलग अलग तरीके अपनाएं।
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