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पेरेंट्स का सख्त रवैया बच्चों के मानसिक स्वास्थ के लिए हो सकता है खतरनाक, जानिए कैसे

ज्यादातर पेरेंट्स चाहते हैं कि उनके बच्चे अनुशासित और आज्ञाकारी हों। पर ऐसा होता नहीं है। इस अनुशासन को लागू करने के लिए जो पेरेंट्स बहुत सख्त रवैया अपनाते हैं, उनके बच्चों में कई तरह की व्यवहारगत समस्याएं देखने को मिलती हैं।
Published On: 18 Jul 2023, 05:10 pm IST
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strict parents hone ke nuksaan

हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा किसी भी गलत संगत या किसी गलत आदत में न पड़े। इसके लिए वे उन पर बहुत ज्यादा सख्ती करते हैं और बहुत से पाबंदियां लगाते हैं। हालांकि ज्यादातर पेरेंट्स को लगता है कि इस तरह वे बच्चे को बेहतर भविष्य के लिए तैयार कर रहे हैं। जबकि मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि जरूरत से ज्यादा सख्ती बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य एवं व्यवहारगत समस्याओं का कारण बनती है। आइए इसे विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं।

हाल ही में हुई एक रिसर्च में सामने आया है कि जिन बच्चों को बहुत ज्यादा अनुशासन में रखा जाता है, आगे चलकर उन्हें मानसिक स्वास्थ से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। रिसर्च में कहा गया है कि परवरिश में छोटे बच्चों पर बार-बार चिल्लाना, अलग-थलग करना और शारीरिक रूप से दंडित करने जैसी चीजें करना बच्चों को गुस्सैल, जिद्दी और नकारात्मक व्यवहार वाला बनाता है।

दुर्भाग्यवश ये समस्याएं 9 साल की उम्र के बच्चे में भी शुरू हो जाती हैं। खराब मानसिक स्वास्थ्य विकसित होने का “उच्च जोखिम” होने की संभावना 1.5 गुना अधिक हो जाती है।\

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सख्ती से लो सेल्फ एस्टीम की भावना विकसित होती है। चित्र शटरस्टॉक।

कहां और कैसे किया गया अध्ययन

यह निष्कर्ष 7,500 से अधिक आयरिश बच्चों के अध्ययन में सामने आया है, जिनके मानसिक स्वास्थ्य लक्षण कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन (यूसीडी) के शोधकर्ताओं द्वारा तीन, पांच और नौ साल की उम्र में दर्ज किए गए थे।

7,500 बच्चों में से, लगभग 10% खराब मानसिक स्वास्थ्य के उच्च जोखिम वाले समूह में पाए गए, जिनमें चिंता, आक्रामकता और सामाजिक अलगाव के लक्षण शामिल थे।

इस बारे में ज्यादा जानने के लिए हमने बात की सीनियर क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. आशुतोष श्रीवास्तव से। डॉ. आशुतोष श्रीवास्तव ने कहा कि हां सख्ती से बच्चों का पालन पोषण करने से उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।

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1 बच्चे भावनात्मक रूप से दब्बू हो जाते हैं

डॉ. आशुतोष श्रीवास्तव बताते है कि सख्त पालन-पोषण के कारण भावनात्मक अभिव्यक्ति को दिखाए बिना नियम और अपेक्षाएं की जाती है। बच्चे अपनी भावनाओं को दबाने के लिए मजबूर हो सकते हैं, जिससे बाद में जीवन में भावनात्मक संकट और अपनी भावनाओं को प्रबंधित करने में कठिनाई हो सकती है।

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2 हमेशा सजा के डर में रहते हैं

सख्ती से पेश आने वाले माता पिता से बच्चे हमेशा डरे हुए रह सकते हैं। क्योंकि सख्त माता-पिता सजा और अनुशासन पर बहुत अधिक भरोसा करते हैं। जिससे बच्चे के लिए डर और चिंता का माहौल बन जाता है। यह डर दीर्घकालिक तनाव और चिंता को जन्म दे सकता है, जो मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का एक बड़ा कारण बन सकता है।

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सख्त पालन-पोषण बच्चों में सामाजिक और भावनात्मक कौशल के विकास में बाधा बन सकता है। चित्र- अडोबी स्टॉक

3 बच्चों का आत्मसम्मान कम होने लगता है

जो भी माता-पिता बच्चे में अनुशासन लाने के लिए बहुत ज्यादा सख्ती करते हैं, तो इससे उनमें लो सेल्फ एस्टीम की भावना विकसित होती है। लगातार आलोचना और कठोर अनुशासन बच्चों में कम आत्मसम्मान को जन्म दे सकता है। वे ऐसा महसूस करने लगते हैं कि वे कभी भी अपने माता-पिता के मानकों को पूरा नहीं कर सकते। उन्हें अपनी क्षमताओं और योग्यता पर संदेह होने लगता है।

4 सामाजिक और भावनात्मक रिलेशनशिप में कठिनाइयां

सख्त पालन-पोषण बच्चों में सामाजिक और भावनात्मक कौशल के विकास में बाधा बन सकता है। उन्हें स्वस्थ संबंध बनाने में कठिनाई हो सकती है या अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में कठिनाई का अनुभव हो सकता है। सख्ती से पालन पोषण होने वाले बच्चों में अनुशासन की जगह कहीं न कहीं एक डर आ जाता है जिससे वो किसी से भी बात करने से घबराने लगते है और कहीं खुल नही पाते हैं।

5 अंदर ही अंदर गुस्से से भरना

जिन बच्चों का पालन पोषण सख्ती में होता है उन बच्चों के अदंर हर किसी को लेकर एक तरह का गुस्सा भर जाता है। ये इसलिए होता है क्योंंकि वे स्वतंत्रता चाहते हैं, मगर वह उन्हें मिल नहीं पाती। जिसकी वजह से उनके अंदर एक विद्रोही भावना भर जाती है। अपनी स्वतंत्रता को पाने के लिए वे कई तरह की चीजें करने लगते हैं।

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डिस्क्लेमर: हेल्थ शॉट्स पर, हम आपके स्वास्थ्य और कल्याण के लिए सटीक, भरोसेमंद और प्रामाणिक जानकारी प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके बावजूद, वेबसाइट पर प्रस्तुत सामग्री केवल जानकारी देने के उद्देश्य से है। इसे विशेषज्ञ चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए। अपनी विशेष स्वास्थ्य स्थिति और चिंताओं के लिए हमेशा एक योग्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ से व्यक्तिगत सलाह लें।

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लेखक के बारे में
संध्या सिंह
संध्या सिंह

दिल्ली यूनिवर्सिटी से जर्नलिज़्म ग्रेजुएट संध्या सिंह महिलाओं की सेहत, फिटनेस, ब्यूटी और जीवनशैली मुद्दों की अध्येता हैं। विभिन्न विशेषज्ञों और शोध संस्थानों से संपर्क कर वे  शोधपूर्ण-तथ्यात्मक सामग्री पाठकों के लिए मुहैया करवा रहीं हैं। संध्या बॉडी पॉजिटिविटी और महिला अधिकारों की समर्थक हैं।

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