इससे पहले हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य और डिप्रेशन को लेकर इस तरह बात नहीं हुई जिस तरह पिछले कुछ महीनों में हुई है। यह जरूरी भी था। आखिरकार हम सभी एक महामारी के बीच हैं, जहां विशेषज्ञों का मानना है कि मानसिक स्वास्थ्य की सबसे अधिक हानि हुई है। डिप्रेशन और एंग्जायटी के केसेस में इस दौरान बहुत बढ़ोतरी देखी गई है।
मिलेनियल्स की जंग अब ज्यादातर ट्विटर पर लड़ी जाती है। इसका मकसद जागरुकता फैलाना कम और सनसनी फैलाना अधिक महसूस होता है। कभी-कभी तो ट्विटर बेबीज लड़ते हुए वहां पहुंच जाते हैं, कि यह समझ ही नहीं आता कि असल मुद्दा क्या था। पिछले दिनों अवसाद को लेकर भी कुछ ऐसे ट्विटर योद्धा मैदान में उतर आए थे।
लोकप्रिय बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह की आत्महत्या ने डिप्रेशन को लेकर बातचीत को बढ़ावा दिया है। लेकिन अगर देखा जाए तो जिस दिशा में जो बात हो रही है, वह सही नहीं है। पर एक जिम्मेदार व्यक्ति यह जानता है कि यह लड़ने की नहीं संभालने की स्थिति है। इसके बारे में कोई भी बात करने से पहले आपको उसकी तथ्यात्मकता जांच लेनी चाहिए।
क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता फैलाने के बजाय उससे जुड़े असत्य और रूढ़िवादी धारणा को ही बढ़ावा दिया जा रहा है।
डिप्रेशन एक तरह की मानसिक स्थिति है, इसे ड्रग्स से जोड़ना मूर्खता है। चित्र: शटरस्टॉक
ड्रग्स से डिप्रेशन होता है या अमीर और सफल लोग डिप्रेशन का शिकार नहीं होते। इस तरह के दावे जब बड़े स्तर पर दिखाई पड़ते हैं, तो डिप्रेशन से जुड़ी भ्रांतियां ही फैलती हैं। यह साक्ष्य है कि किस तरह सही जानकारी के बजाय इस वक्त झूठ और कॉन्ट्रोवर्सी फैल रही है।
इसलिए यह हमारा दायित्व है कि हम उन सभी मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों का पक्ष लें और अवसाद से जुड़ी इन भ्रांतियों का खंडन करें।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि नशीले पदार्थों की लत डिप्रेशन और अन्य मानसिक रोगों का जोखिम बढ़ाती है। लेकिन अगर हाल ही में चल रही कॉन्ट्रोवर्सी के कारण आप यह समझ रहे हैं कि सिर्फ ड्रग्स लेने से ही डिप्रेशन होता है, तो आप गलत समझ रहे हैं।
डिप्रेशन के कई कारण हो सकते हैं जिसमें जेनेटिक्स, तनावपूर्ण जीवनशैली, ट्रॉमा, वातावरण, समाजिक तनाव और कई बीमारियां भी हो सकती हैं। इतना ही नहीं, हार्वर्ड हेल्थ पब्लिशिंग में प्रकाशित आर्टिकल के अनुसार डिप्रेशन दिमाग के किसी केमिकल असंतुलन से कहीं अधिक है। इसके पीछे कई कारक होते हैं।
बहुत से लोग यह दावा करते हैं कि डिप्रेशन को यदि आप नजरअंदाज करें तो आप इससे मुक्त हो सकते हैं। और इससे फिजूल कोई तर्क नहीं हो सकता है।
डिप्रेशन से जूझ रहे किसी भी व्यक्ति से बात करें तो आपको स्पष्ट हो जाएगा कि उन्होंने इस बीमारी को चुना नहीं है। यदि उनके बस में होता, तो वह कब का इस बीमारी को छोड़ कर सामान्य खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे होते।
इस तरह की अवधारणा मरीजों की उम्मीद की किरण को भी खत्म कर देती हैं। यह बीमारी नजरअंदाज करने से नहीं इलाज करने से सही होगी। दवा, ट्रीटमेंट और जीवनशैली में बदलाव करना ही डिप्रेशन से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय है।
यह जानना आपके लिए जरूरी है- सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति जीवन मे खुश है, यह मतलब नहीं कि वह अवसाद ग्रस्त नहीं हो सकता। जो भी डिप्रेस्ड है वह हर वक्त दुखी, निराश या असहाय महसूस करे यह आवश्यक नहीं है। हर व्यक्ति के लिए डिप्रेशन अलग होता है। डिप्रेशन कितने गंभीर स्तर पर है यह भी बहुत मायने रखता है।
ऐसे में जहां एक ओर एक व्यक्ति अपनी दिनचर्या में व्यस्त होते हुए भी डिप्रेस्ड हो सकता है, कोई अन्य व्यक्ति शायद बिस्तर से उठने की भी हिम्मत न जुटा सके।
क्या आप जानती हैं कि तनाव और अवसाद बहुत करीब से संबंधित हैं। कई वैज्ञानिक शोधों में पाया गया कि तनाव में कॉर्टिसोल का स्तर बढ़ जाता है और डोपामीन कम हो जाता है- जो डिप्रेशन का कारण बनता है।
सफलता बिना तनाव के नहीं मिलती। इस तर्क के अनुसार यह आसानी से समझा जा सकता है कि सफल लोगों को डिप्रेशन होना बहुत सामान्य है।
और यह भी याद रखें कि आपका वातावरण, आसपास का माहौल, ट्रॉमा और जेनेटिक्स भी डिप्रेशन के जोखिम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
कई दशकों से मनोवैज्ञानिक और चिकित्सक डिप्रेशन को पढ़ रहे हैं। सभी मनोवैज्ञानिक एक बात को मानते हैं- डिप्रेशन बहुत जटिल है। इसके पीछे कोई एक कारण नहीं होता। यह हर व्यक्ति के लिए अलग होता है। तो इससे जुड़ी गलत अवधारणाओं को फैलाना बन्द करते हैं और जागरूकता फैलाते हैं।
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