छोटी छोटी बातें अगर आपकी आंखों में भी आंसूओं के बहने का कारण बनने लगती हैं, तो ज़रा सतर्क हो जाएं। तेज़ आवाज़, नकारात्मक विचार और खुद को कमतर आंकना रोने का कारण बन जाता है। ऐसे में व्यक्ति खुद को कमज़ोर और असहाय महसूस करने लगते है। क्रोध, ईर्ष्या और कई शारीरिक बदलाव पल भर में भावुक होने की प्रवृति के कारण बनने लगते हैं। हांलाकि आंसू आंखों को रिफ्रेश करने में मदद करते हैं। मगर साथ ही इससे व्यक्ति दूसरों के समक्ष खुद को कमज़ोर महसूस करने लगता है। जानते हैं कि लोग क्यों खुद को बार बार रोने से नहीं रोक पाते हैं।
इस बारे में मनोवैज्ञानिक डॉ ज्योति कपूर बताती हैं कि कई बार कुछ सवालों के जवाब न दे पाना और खुद को अन्य लोगों की तुलना में कम आंकना चिंता या तनाव का कारण बनता है। इससे वे खुद को कमज़ोर महसूस करने लगते हैं। अन्य लोगों का रूड नेचर हाइली सेंसिटिव लोगों को इमोशनली कमज़ोर बना देता है। जो उनके रोने का कारण बन जाता है। इसका असर उनके मन-मस्तिष्क पर पड़ने लगता है। जो उनके अंदर तनाव की समस्या को बढ़ावा देता है और आंसूओं का कारण भी बन जाता है।
जर्नल ब्रेन एंड बिहेवियर में प्रकाशित 2014 के एक रिसर्च में पाया गया कि अत्यधिक संवेदनशील लोगों में कुछ क्षेत्रों में अधिक मस्तिष्क गतिविधि थी क्योंकि वे अपने प्रियजनों की तस्वीरों को देखते थे। शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों के दिमाग को स्कैन करने के लिए फंक्शनल मेगनेटिक रेसोनेंन इमेजिंग यानि एफएमआरआ का इस्तेमाल किया। उसमें पाया गया कि ऐसे लोग अपने साथी और अजनबियों की तस्वीरों को खुश या उदास होकर देखते हैं। इससे सहानुभूति और अवेयरनेस दोनों ही बढ़ने लगते हैं।
अगर आप डिप्रेशन में हैं, तो बार बार रोना बेहद सामान्य है। दरअसल, अवसाद एक ऐसा मेंटल हेलथ डिसऑर्डर है जिसमें व्यक्ति में उदासी की लगातार भावनाएं बढ़ने लगती है। वो विचार लंबे वक्त तक व्यक्ति के ज़हन में कैद रहते हैं। डिप्रेशन से जूझ रहे लोग हर पल होप लेस, परेशान, चीजों को समझने में दिक्कत और लो एनर्जी का सामना करते हैं।
वे लोग जो सालों बाद भी अपने पास्ट में ही जीते हैं और उन्ही बातों को याद करके परेशान होते रहते हैं। वे अन्य लोगों से ज्यादा जल्दी रोने लगते है। ऐसे लोग वर्तमान को निर्थक मानकर पुरानी यादों और बातों में ही अपना अधिकतर समय बिताते हैं। ये प्रक्रिया धीरे धीरे उनके माइंड को प्रभावित करने लगती है। जो उन्हें इमोशनली कमज़ोर बना देती है।
सहानुभूति पूर्ण व्यक्ति अक्सर अपने आस.पास के लोगों की भावनाओं को देखकर खुद भी भावुक हो उठते हैं। इस बढ़ी हुई सहानुभूति के परिणामस्वरूप भावनाओं का एक झरना बहने लगता है जो आँसू के रूप में प्रकट होता है। ऐसे लोग जब दूसरों के संघर्ष या पीड़ा को सुनते हैं, तो खुद को रोक नही पाते हैं।
हार्मोनल उतार.चढ़ाव जैसे बायोलॉजिकल फैक्टर्स बार बार रोने की आदत का मुख्य कारण साबित होता हैं। हार्मोनल बदलाव के चलते महिलाओं को खासतौर से मासिक धर्म चक्र, गर्भावस्था या मेनोपॉज जैसे कुछ खास चरणों के दौरान बार बार रोने की समस्या से होकर गुज़रना पड़ता है।
कई बार सामने वाला व्यक्ति हम से उस भावना में बात नहीं करता, जिसमें हम उसे समझ लेते है और फिर कई दिनों तक चिंतन मनन करते हैं। इससे आपके दिलों दिमाग पर उसका गहरा असर होने लगता है। ऐसे में अगर कोई दुविधा या समस्या है, तो बातचीत से सुलझाएं और दूसरे लोगों की बातों को ज्यादा तवज्जो देने से भी बचें
खुद के खानपान से लेकर रहन सहन और आने जाने का पूरा ख्याल रखें। अगर आप अपने आप को स्वस्थ रखेंगे, तो उससे अन्य लोगों की बातें आप पर ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाएंगी। सेल्फ केयर से आपके अंदर आत्म विश्वास और खुद के लिए सेल्फ लव की भावना बढ़ने लगती है। इससे आप सेल्फ क्रिटिसिज्म से बच जाते हैं।
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