किसी भी व्यक्ति के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा ‘विद्यार्थी जीवन’ ही होता है। इस दौरान व्यक्ति अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण ‘लर्निंग ईयर्स’ स्कूल में बिताता है, और तमाम अच्छाइयों और बुराइयों की परख करना सीखता है। बच्चों को जब पढ़ाई करने या स्कूल जाने को कहा जाता है, तो उनका मुंह जरूर बन जाता है, लेकिन यह पढ़ाई ही बच्चों को बेहतर भविष्य बनाने और समाज में उनकी समझ बढ़ाने के काम आती है।
वहीं, विद्यार्थी जीवन के तमाम चरणों में परीक्षा का चरण एक बेहद अहम हिस्सा होता है, जिसमें अधिकतर बच्चों को कई तरह के दबावों, समस्याओं, महत्वकांक्षाओं और उम्मीदों के भंवर से होकर गुज़रना पड़ता है। जिसके कारण बच्चे मानसिक तनाव में चले जाते हैं, और उनके शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। इसीलिए पढाई करने और खासकर परीक्षाओं के समय माता-पिता की भूमिका भी बेहद अहम होती है। इस समय उन्हें किसी ‘शाषक’ की तरह नहीं बल्कि बच्चों के ‘दोस्त’ की तरह व्यवहार करना चाहिए।
वहीं, 2015 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बिहेवियर एंड साइकोलॉजी में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में परीक्षा के समय अधिकतर पैरेंट्स बच्चों पर अच्छे नंबर लाने का दबाव डालते है। जिसके कारण बच्चों की मानसिक स्थिति पर काफी गहरा प्रभाव पड़ता है। रिसर्च के अनुसार, इस शोध को 13 से 16 वर्ष की आयु वाले बच्चों के साथ किया गया, जिसमें लगभग 66 प्रतिशत छात्रों का मानना था कि परीक्षा के समय उनके माता-पिता का व्यवहार काफी ‘स्ट्रिक्ट’ हो जाता है।
यदि आप भी अपने बच्चों को एग्जाम के समय ज्यादा दबाव नहीं देना चाहती, तो अच्छी पैरेंटिंग करके आप उनके इस मुश्किल सफर को काफी आसान कर सकतीं हैं।
एग्जाम के समय बच्चों के दिमाग में वैसे भी कई तरह की समस्याएं और जटिलताएं होती है। ऐसे में बच्चों के दबाव को कम करने के लिए छोटी-छोटी बातों पर भी उनकी प्रशंसा करें, इससे वे प्रोत्साहित होंगे और उनको ज्यादा पढ़ाई करने का जोश आएगा।
चाहे आप फोन पर अपने किसी सगे-संबंधी से बातें कर रहीं हो या आपके घर में कोई मेहमान आए, आप सबके सामने अपने बच्चे की तारीफ करें, इससे आपके बच्चे को आत्म-बोध होगा, जिससे भविष्य में और तारीफ पाने के लिए वो और मेहनत करेगा।
सकरात्मकता का विद्यार्थी जीवन में बहुत महत्व है। यदि बच्चा सकारात्मक रहता है, तो उसको पढ़ाई में होने वाली सभी समस्याओं से बाहर निकाला जा सकता है। वहीं, अक्सर एग्जाम्स के समय अधिकतर बच्चे नकारात्मक हो जाते है। ऐसे में पैरेंट्स को सकारात्मकता बनाए रखने के लिए बच्चों से सकारत्मक बात करनी चाहिए।
सकारात्मक शब्दों का उपयोग करके आप बच्चों के मनोबल को बढ़ा सकते हैं और ‘तुम यह कर सकते हो’, ‘तुम ने पूरी कोशिश की है’, ‘तुम बहुत होशियार हो’ जैसी बाते बोल कर उन्हें आत्म-संवाद और आत्म-प्रशंसा की ओर प्रेरित कर सकते हैं।
विद्यार्थी जीवन का सबसे कठिन समय परीक्षा ही होता है, ऐसे में इस समय बच्चों के पास बहुत कम समय होता है। इसी कम समय में उन्हें पहाड़ जितना कोर्स कंप्लीट करना होता है, जिसके कारण उनके लिए तनाव की स्थिति पैदा होती है।
ऐसे में बच्चे के साथ उसकी मदद करें और कुछ चैप्टर्स को मिला के छोटे-छोटे टारगेट बनाएं। वहीं, जब बच्चे इन टारगेट्स को पूरा कर लें, तो उसे सेलिब्रेट करें और उनको कुछ देर के लिए उनकी मनपसंद चीज़ जैसे मनपसंद गेम्स, मनपसंद कॉमिक्स जैसी एक्टिविटी करने दें।
टाइम मैनेजमेंट से बच्चों के परीक्षा के समय का दबाव कम किया जा सकता है। यह बच्चों को सही तरीके से पढ़ाई करने और परीक्षा के समय तैयार रहने में मदद करता है। बच्चों के साथ एक समय सारणी तैयार करें जिसमें पढ़ाई, छुट्टी, और विश्राम का उचित समय हो।
यह उनके दिन को आयोजित करने में मदद करेगा और उनके दबाव को कम करेगा। साथ ही बच्चों को पढ़ाई के लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से निर्धारित करने में मदद करें। एक स्पष्ट लक्ष्य उन्हें पढ़ाई के समय उनके समय का सदुपयोग करने में मदद करेगा।
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