संविधान की धारा 377 के विषय पर आए फैसले के बाद समाज में सेक्सुअलिटी को लेकर बातचीत के दरवाजे खुले हैं। अब हम आसानी से बैठकर इस विषय पर बात कर सकते हैं। होमोसेक्सयूएलिटी से लेकर और भी कई विषयों पर हम बात तो कर रहे हैं, लेकिन अभी भी इस विषय पर जानकारी की कमी है।
हम एक ऐसे समाज में रहते हैं, जहां सेक्स से जुड़ी कोई भी बात करना टैबू है। समाज की इस स्थिति के कारण ही एसेक्सुअल लोग अपनी सेक्सुअलिटी और अपनी पहचान को लेकर खुल के बात नहीं कर पाते हैं।
इस सवाल का सटीक जवाब जानने के लिए हमने बात की क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट डॉ कामना छिब्बर से। डॉ छिब्बर फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के डिपार्टमेंट ऑफ मेन्टल हेल्थ और बिहेवियर साइंस की हेड हैं।
वह बताती हैं, “किसी भी व्यक्ति की सेक्सुअलिटी उसकी बीमारी नहीं है, जिसे लोग ठीक करने की कोशिश करते हैं। एसेक्सुअल होने का अर्थ है किसी भी जेंडर के प्रति शारीरिक इच्छाएं या आकर्षण ना होना और यह कोई समस्या नहीं है।”
हेट्रोसेक्सुअल यानी दूसरे जेंडर के प्रति आकर्षित होना और होमोसेक्सुअल मतलब अपने ही जेंडर के प्रति आकर्षित होना, उसी प्रकार एसेक्सुअल होने का अर्थ है किसी भी जेंडर के प्रति आकर्षित ना होना। शारीरिक रूप से आकर्षित न होने का यह अर्थ नहीं कि वे प्यार नहीं कर सकते या प्यार पाने की इच्छा नहीं होती। लोगों ने हाल ही में आगे बढ़कर खुद को अपनाया है और यही कारण है कि इस विषय में जानकारी बहुत सीमित है।
सेक्सुअलिटी एक ऐसा विषय है, जो हर व्यक्ति के लिए अलग होता है और एसेक्सुअलिटी में भी ऐसा ही होता है। यह जानना जरूरी है कि किसी भी प्रेम संबंध में दो भाग होते हैं-
1. सेक्सुअल यानी शारीरिक
2. इमोशनल यानी भावनात्मक
“सभी मानवों की तरह एसेक्सुअल व्यक्ति भी भावनात्मक लगाव चाहते हैं। इस प्यार की जरूरत को वह किस तरह पूरा करते हैं यह हर व्यक्ति पर निर्भर करता है। कुछ प्रेम संबंध बनाते हैं, तो कुछ अच्छे दोस्तों के माध्यम से ही इस जरूरत को पूरा कर लेते हैं। कुछ लोगों में लिबिडो भी हो सकता है बस उसे जाहिर करने या उसके अनुसार कदम उठाने की इच्छा नहीं होती और यह बिल्कुल सामान्य है।” कहती हैं डॉ छिब्बर।
यह ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका इलाज किया जाए, यह प्राकृतिक है और सही है।
जानकारी के अभाव में लोग अक्सर बहुत से अन्य विषयों को एसेक्सुअल होना ही समझ लेते हैं। इसलिए यह जानना भी जरूरी है कि एसेक्सुअल होने के अंतर्गत क्या-क्या नहीं शामिल है।
सबसे महत्वपूर्ण, एसेक्सुअलिटी ब्रम्हचर्य नहीं है। ब्रह्मचर्य एक निर्णय है, जो व्यक्ति अपनी इच्छा और पसंद से लेता है। जबकि एसेक्सुअलिटी कोई चुनता नहीं है, यह आपके अंदर प्राकृतिक रूप से होती है।
दूसरा सबसे आम अंतर जो लोगों को जानना जरूरी है, वह ये कि एसेक्सुअलिटी शारीरिक संबंध बनाने का डर या लिबिडो की कमी नहीं है। यह बिल्कुल सामान्य है।
छिब्बर कहती हैं, “कई बार एसेक्सुअल व्यक्ति खुद को ही समझ नहीं पाता, जिसका जिम्मेदार यह समाज है। उस व्यक्ति को लगता है कि सेक्स ड्राइव की कमी होना कोई समस्या है या उनमें ही कोई कमी है। लेकिन ऐसी स्थिति में अपने मन की बात सुननी चाहिए और जरूरत पड़ने पर मदद भी लेनी चाहिए।
“एसेक्सुअलिटी के कोई संकेत या निशानी नहीं है जिससे आपको पता चले कि आप एसेक्सुअल हैं। यहां आपको सिर्फ अपनी अंतरात्मा की बात सुननी है। आपका मन क्या चाहता है, यह सुनेंगे तो आपको अपना जवाब मिल जाएगा।”, कहतीं हैं छिब्बर।
अगर आपको किसी भी व्यक्ति के प्रति सेक्सुअल भावनाएं महसूस नहीं होती, तो सम्भावना है कि आप एसेक्सुअल हैं।
“जरूरी है कि हम सेक्स से जुड़ी बातों को खुलकर डिस्कस करें। इस विषय में आज भी लोग बात करने में कतराते हैं, जिसके कारण लोग अपनी ही सेक्सुअलिटी नहीं समझ पाते। सबसे पहला कदम यही होना चाहिए कि आप सेक्स के विषय में खुलकर बात करें।” कहती हैं डॉ छिब्बर।
एसेक्सुअलिटी बिल्कुल सामान्य है, यह जानना बेहद जरूरी है।