केले के फाइबर से बने ये रीयूजेबल सैनिटरी पैड्स हैं आपके लिए ज्‍यादा साफ-सुथरा ईको फ्रेंडली विकल्‍प

भले ही बाजार सैनिटरी पैड्स से भरा हुआ है, लेकिन उनमें से अधिकांश पर्यावरण प्रदूषण का कारण हैं। जबकि सौख्यम रीयूजेबल पैड्स, कृषि अपशिष्ट से बने हैं और इनका दोबारा इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
सोख्‍यम सैनिटरी पैड्स हैं ईको फ्रेंडली विकल्‍प। चित्र: सोख्‍यम पैड्स
सोख्‍यम सैनिटरी पैड्स हैं ईको फ्रेंडली विकल्‍प। चित्र: सोख्‍यम पैड्स
टीम हेल्‍थ शॉट्स Updated: 15 Jan 2021, 21:02 pm IST
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मासिक धर्म या पीरियड्स एक महिला के जीवन का अभिन्न अंग है। फिर भी इस विषय पर बात करना वर्जित है, यहां तक कि देश के शहरी हिस्सों में भी। भारत के ग्रामीण इलाकों में मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में जोखिम और जागरूकता की कमी के कारण स्थिति और भी निराशाजनक है।

कुछ स्‍थानों पर व्यवसायिक रूप से उपलब्ध सैनिटरी नैपकिन की अत्यधिक कीमत के चलते, महिलाएं महीने के उस कठिन समय में सूखे पत्ते या गंदे कपड़े का इस्तेमाल करने तक ही सीमित रह जाती हैं। जिससे उन्हें संक्रमण का अधिक जोखिम होता है। अगर देश भर की सभी महिलाओं को डिस्पोजेबल पैड प्रदान किए जाएं, तो इसका परिणाम पर्यावरणीय आपदा होगा।

क्‍या हैं सोख्‍यम रीयूजेबल पैड 

इन सभी चुनौतियों से पार पाने के लिए सोख्‍यम रीयूजेबल पैड (Saukhyam Reusable Pads) अस्तित्व में आया। यह माता अमृतानंदमयी मठ की एक परियोजना है, जो एक गैर-सरकारी संगठन है। इसे संयुक्त राष्ट्र के ईसीओएसओसी (ECOSOC) के लिए परामर्शदात्री दर्जा प्राप्त है।

जब मठ ने 2013 में भारत के 20 राज्यों में दूरस्थ गांव के समूहों को अपनाया, तो उन्हें स्थायी विकास के रोल मॉडल में बदलने के लक्ष्य के साथ ही, उनके पैड प्रोजेक्ट के नींव भी रखी गई थी।

हेल्थ शॉट्स के साथ एक विशेष बातचीत में, सौख्यम रीयूजेबल पैड की सह-निदेशक अंजू बिष्ट ने इस परियोजना के पीछे की प्रेरणा के बारे में हम सभी को बताया, कि ये सैनिटरी पैड्स बाकी सब से कैसे अलग हैं। साथ ही कि वे कैसे मासिक धर्म के साथ जुड़े टैबू को तोड़ने में मदद कर रहीं हैं।

सोख्यम पैड की आवश्यकता

हालांकि बाजार सैनिटरी पैड से भरा हुआ है, लेकिन यह ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली लड़कियों व महिलाओं की पहुंच से बाहर हैं। बहुत से लोग नहीं जानते, लेकिन ये नैपकिन पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। यही कारण है कि सौख्यम का उद्देश्य अपने कम लागत वाले, स्वच्छ और बायोडिग्रेडेबल पैड के साथ, इस स्थिति को बदलना है।

सैनिटरी नैपकिन्‍स प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। चित्र: शटरस्‍टॉक
सैनिटरी नैपकिन्‍स प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। चित्र: शटरस्‍टॉक

अंजू बताती हैं, नॉन-बायोडिग्रेडेबल पैड्स को फेंकने के बाद यह 500-800 साल तक धरती को प्रदूषित करते रहते हैं। कल हम चले जाएंगे, लेकिन हमारे बच्चे, उनके बच्चे और हमारी कई अन्य पीढ़ियों को भविष्य में इसका सामना करना पड़ेगा। क्योंकि आज हम जिन पैड्स को इस्तेमाल करके फेंक देते हैं, वह भविष्य में भी वातावरण को प्रदूषण करने का काम करेंगे। यहां तक कि अगर पैड्स इनकनेटर्स (incinerators) में भी जलाया जाता है, तो वे फारेन और डाइऑक्सिन जैसे खतरनाक विषाक्त पदार्थ छोड़ते हैं।

सिर्फ इतना ही नहीं, अधिकांश गैर-बायोडिग्रेडेबल पैड्स की कीमत भी बहुत अधिक होती है। अंजू कहती हैं कि औसतन महिलाएं इस तरह के पैड पर प्रति वर्ष 1200 रुपये खर्च करती हैं, और 40 साल के जीवनकाल के लिए यह राशि आधा लाख रुपये तक पहुंच जाती है। वहीं दूसरी ओर, सौख्यम रीयूजेबल पैड्स लागत में बहुत कम हैं, और अधिक स्वच्छ विकल्प के रूप में काम करते हैं।

रीयूजेबल पैड्स की जीवन भर की लागत केवल इस राशि का दसवां हिस्सा है। सौख्यम पैड के लिए 5 दिन के स्टार्टर पैक के लिए सिर्फ 280 रुपये देने होते हैं। अतिरिक्त नाइट पैड के साथ एक वेल्यू पैक और एक पाउच की कीमत 440 रुपये है। उचित देखभाल के साथ, ये पैड 4-5 साल तक चलते हैं। यहां तक ​​कि अगर किसी को इसे आठ बार खरीदने की आवश्यकता है, तो कुल लागत लगभग 3500 रुपये आती है।

सोख्‍यम रीयूजेबल पैड्स ज्‍यादा सुविधाजनक है। चित्र: सोख्‍यम पैड्स
सोख्‍यम रीयूजेबल पैड्स ज्‍यादा सुविधाजनक है। चित्र: सोख्‍यम पैड्स

यह डिस्पोजेबल पैड की संचयी लागत का लगभग आधा है। भले ही कोई जन औषधि भंडार में उपलब्ध 1 रूपये वाले सुविधा पैड (Re 1 Suvidha pads) पर विचार करे।

एक समय में एक ही पैड

सामर्थ्य के अलावा, सुलभता भी सौख्यम के दृष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

अंजू कहती हैं, हमारी टीम लास्‍ट माइल डिलीवरी नेटवर्क (last mile delivery network) बनाने की कोशिश कर रही है, ताकि ये पैड आसानी से उपलब्ध हो सकें और सभी के लिए सुलभ हो सकें। इसके लिए हम सौभाग्यशाली हैं कि कुछ राज्यों में राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन और कई अन्य संगठनों के साथ महिला सूक्ष्म उद्यमियों को इसमें भागीदारी मिली है। वे फिर इससे अन्य महिलाओं को सशक्त कर सकती हैं और अपने समुदायों में बदलाव ला सकते हैं।

ये महिलाएं जागरूकता कार्यशालाएं आयोजित करती हैं जो वितरण और बिक्री के लिए केंद्र के रूप में काम करती हैं। अगले एक वर्ष के दौरान, वे भारत के सबसे दूरस्थ और ग्रामीण हिस्सों तक पहुंचने के लिए अपनी टीम का विस्तार करने की ओर आगे बढ़ रहे हैं।

लोकप्रिय हो जाएंगे रीयूजेबल पैड्स 

अंजू का कहना है कि हम इस दृढ़ विश्वास के साथ आगे बढ़ रहे हैं, कि दोबारा इस्‍तेमाल किए जा सकने वाले (रीयुजेबल) ज्‍यादा लोकप्रिय हो पाएंगे।

सोख्‍यम पैड्स दूर दराज की महिलाओं के लिए भी उपलब्‍ध हो रहे हैं। चित्र: शटरस्‍टॉक
सोख्‍यम पैड्स दूर दराज की महिलाओं के लिए भी उपलब्‍ध हो रहे हैं। चित्र: शटरस्‍टॉक

अंजू कहती हैं, जब पोलैंड में 2018 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में सौख्यम को प्रस्तुत किया गया था, तो हमें AIWC (अखिल भारतीय महिला सम्मेलन) के साथ सहयोग करने का अवसर मिला। संभवत: यह पहली बार था जब डिस्पोजेबल पैड और जलवायु परिवर्तन के बीच लिंक पर खुलकर चर्चा हुई।

आधुनिक, जागरुक महिला आज न सिर्फ अपने स्वास्थ्य को लेकर, बल्कि पर्यावरण को लेकर भी चिंतित है। वह यह अच्छी तरह जानती हैं कि अधिकांश ब्रांड के डिस्पोजेबल पैड्स में रसायन होते हैं। जो उनके लिए हानिकारक होते हैं। इसके अलावा रीयूजेबल पैड एक स्मार्ट विकल्प है, जिसकी कीमत भी बहुत कम है।

महामारी के बाद इस दृष्टिकोण में एक बड़ा बदलाव आया है

लॉकडाउन शुरू होने के बाद, हमने अप्रैल 2020 के तीसरे सप्ताह में शिपिंग और उत्पादन फिर से शुरू किया। तब से, हमें विभिन्‍न समूहों से थोकऑर्डर के रूप में 78% ऑर्डर मिले हैं। शेष 23% ऑनलाइन ऑर्डर थे।

यह, वास्तव में, इस तथ्य का प्रबल प्रमाण है कि हर जगह लोग स्थायी उत्पादों की आवश्यकता को देखने लगे हैं। जो हमारे शारीरिक स्वास्थ्य और हमारे ग्रह के स्वास्थ्य दोनों को सुरक्षित रखते हैं।

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