खुशहाल परिवार और मजबूत रिलेशनशिप के लिए फैमिली प्लानिंग भी जरूरी है। फैमिली प्लानिंग में मदद करता है कंडोम। कंडोम फैमिली प्लानिंग में मदद करने के साथ-साथ सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज (STD) से भी बचाव करता है। कुल मिलाकर अनसेफ सेक्स से बचाव करता है कंडोम। पर इंटिमेट हेल्थ को मजबूती देने वाले फीमेल कंडोम (Female Condom) के इस्तेमाल के प्रति महिलाओं में जागरुकता कम है। भारत में तो इसका इस्तेमाल और भी कम होता है। क्या है वजह, आइये इस आलेख में जानते हैं।
महिला कंडोम की बनावट और उपयोगिता पर क्यूरेशन जर्नल में एक शोध आलेख प्रकाशित हुआ। यह शोध आलेख पबमेड सेंट्रल में भी शामिल हुआ। शोधकर्ता एम मोक्गेटसे और एम. रामुकुम्बा ने बोत्सवाना में युवा महिलाओं के बीच महिला कंडोम की स्वीकार्यता और उपयोग पर स्टडी की। शोधकर्ताओं के अनुसार गर्भनिरोधक के रूप में महिलाएं कंडोम का इस्तेमाल करती तो हैं, लेकिन उतना नहीं जितना होना चाहिए ।
कंडोम मुख्य रूप से 4 प्रकार का होता है।
1लेटेक्स, प्लास्टिक या लैम्ब स्किन से तैयार कंडोम
2 चिकनाई युक्त लुब्रिकेंट कंडोम। इस पर फ्लूइड की एक पतली परत होती है।
3 स्पर्मीसाइड कंडोम। इस पर नॉनऑक्सिनॉल-9 केमिकल लगा होता है। इससे शुक्राणु खत्म हो जाते हैं।
4 रिब्ड और स्टडेड बनावट वाले कंडोम भी होते हैं। लेकिन ज्यादातर ज्यादातर महिलाएं लेटेक्स से तैयार कंडोम का इस्तेमाल करती हैं।.
चारों कंडोम को 2 भागों में बांटा जा सकता है- एफ सी 1 (FC1) और एफ सी 2(FC2) । एफ सी 1 महिला कंडोम नरम पतले प्लास्टिक से बना होता है। इसे पॉलीयुरेथेन कहा जाता है। इसका इस्तेमाल बंद कर दिया गया है। इसे एफ सी 2 (FC2) महिला कंडोम से बदल दिया गया है। यह सिंथेटिक लेटेक्स से बना होता है।
कंडोम योनि के अंदर पहना जाता है। यह स्पर्म को गर्भ में जाने से रोकने के लिए एक बाधा के रूप में कार्य करता है। यह लगभग 75% – 82% तक प्रभावी होता है। शोधकर्ता बताते हैं कि यदि सही तरीके से उपयोग किया जाता है, तो महिला कंडोम 95% तक प्रभावी हो सकते हैं। सिंथेटिक लेटेक्स से तैयार कंडोम का अधिक इस्तेमाल होता है। इसकी प्रभावशीलता के बावजूद महिला कंडोम का उपयोग उतना अधिक नहीं हो पाता है, जितना होना चाहिए।
महिला कंडोम गर्भनिरोधक के प्रमुख तरीके के रूप में कितना अधिक पसंद किया जाता है, शोधकर्ताओं ने बोत्सवाना में 15 से 34 वर्ष के बीच की फीमेल को रैंडम सैंपलिंग के लिए शामिल किया। इसके लिए महिलाओं से कंडोम पर आधारित प्रश्नावली तैयार की गई। इसके अलावा स्वास्थ्य सेवाओं से भी डेटा इकठ्ठा किया गया।
फैक्ट पर आधारित निष्कर्ष महिला कंडोम के कम उपयोग को दर्शाते हैं। स्टडी के निष्कर्ष में यह बात सामने आयी कि महिला कंडोम की स्वीकार्यता में महिलाओं की स्थिति और रिश्ते में निर्णय लेने की क्षमता बहुत अधिक मायने रखती है। यदि महिला निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होती है, तो फीमेल कंडोम का इस्तेमाल नहीं हो पाता है।
कंडोम के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं होना और उनका दृष्टिकोण भी उपयोग में अहम भूमिका निभाता है। कई बार महिलाएं यह मान लेती हैं कि कंडोम का प्रयोग करना कठिन है, इसलिए इसका उपयोग नहीं हो पाता है।
जर्नल ऑफ़ हेल्थ साइकोलॉजी में प्रकाशित जेसमिन बॉलिंग, ब्रायन डॉज की टीम के शोध आलेख के अनुसार, शहरी भारत जैसे कि चेन्नई और नई दिल्ली में महिला कंडोम की स्वीकार्यता की जांच की गई। इसमें 50 महिलाओं और 19 पुरुषों को एक साथ बैठाकर कंडोम के बारे में सवाल पूछा गया। साथ ही कई महिलाओं के साथ व्यक्तिगत साक्षात्कार भी किये गये। साक्षात्कार के दौरान उन्हें बताया गया कि महिला कंडोम के इस्तेमाल से अनपेक्षित गर्भावस्था, यौन संचारित संक्रमणों से सुरक्षा, महिलाओं के लिए सशक्तिकरण की भावना में वृद्धि और साफ़-सफाई के भी फायदे मिलते हैं।
लेकिन प्रतिभागियों ने बताया कि सेक्स के दौरान सेंसेशन की कमी के कारण फीमेल कंडोम का इस्तेमाल कम होता है। प्रतिभागियों ने उपयोग को आसान बनाने के लिए महिला कंडोम में संरचनात्मक परिवर्तन का भी सुझाव दिया।
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