भारत में मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) 130/100,000 है। एमएमआर का 8% हिस्सा असुरक्षित गर्भपात से जुड़ा है। जो महिलाएं इन प्रोसीजर्स के बाद जीवित रहती हैं, उनमें से कई को अक्सर क्रोनिक, डेबिलिटेटिंग बीमारियों का सामना करना पड़ता है। जिसके कारण आगे जाकर महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य (Reproductive health) पर असर पड़ता है। इसलिए यह जरूरी है कि आप गर्भपात (Abortion) के बारे में कुछ जरूरी तथ्य जानती हों। इसके लिए हमने फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग में वरिष्ठ सलाहकार एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ.उमा वैद्यनाथन से बात की। सेफ अबॉर्शन के बारे में डॉ.उमा को सुनना जरूरी है।
सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि अबॉर्शन कहीं से भी कोई पाप या अपराध नहीं है। पर हां, ये आपकी सेहत से जुड़ा गंभीर मसला है। गर्भापात करवाने के बारे में सोच रही प्रत्येक महिला को काउंसलिंग ज़रूर लेनी चाहिए। काउंसलिंग के दौरान स्वास्थ्यकर्मी महिला से विभिन्न विषयों पर बात करते हैं।
इन विषयों में गर्भपात करवाने की वजह, महिला के पास उपलब्ध गर्भपात के विकल्पों ( जो कि गर्भावस्था की अवधि पर निर्भर करता है), उसकी पिछली मेडिकल हिस्ट्री, किसी दवा से एलर्जी, महिला की अपनी इच्छा, महिला कीगर्भापत को लेकर स्वीकृति, गर्भपात के बाद सामने आने वाले अपेक्षित परिणाम और गर्भनिरोध से जुड़ी सलाह शामिल है।
अगर काउंसलिंग के दौरान महिला का साथी भी मौजूद हो, तो निर्णय लेना आसान हो जाता है, हालांकि ऐसा होना ज़रूरी नहीं है। महिला के लिए यह पक्का करना ज़रूरी है कि वह जिस केंद्र में जा रही है वह एमटीपी अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड हो। इसके साथ ही उस केंद्र के पास हर तरह की मुश्किल हालात से निपटने के लिए ज़रूरी सुविधाएं और जरूरत पड़ने पर डॉक्टरों की आसान उपलब्धता होनी चाहिए।
आपके स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है कि आप खुद या फार्मासिस्ट के पास जाकर काउंटर से दवा न लें। बिना पूरी जानकारी लिए दवा का ऑनलाइन ऑर्डर भी न करें।
भारतीय कानून के अनुसार 18 वर्ष से अधिक उम्र की महिला अपनी सहमति देकर रजिस्टर्ड सेन्टर पर गर्भपात करवा सकती है। यदि वह नाबालिग है, तो माता-पिता/कानूनी अभिभावक की सहमति आवश्यक है। एमटीपी अधिनियम 2021 में नवीनतम संशोधन के अनुसार किसी रजिस्टर्ड मेडिकल फैसिलिटी में 24 सप्ताह तक के गर्भ का गर्भपात किया जा सकता है।
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महिला की प्रारंभिक जांच, खून की सामान्य रिपोर्ट और अल्ट्रासाउंड से गर्भावस्था की जगह और समय अवधि की पुष्टि होने पर गोलियों (गर्भावस्था के 9 सप्ताह तक) के ज़रिए मेडिकली मैनेजिंग टर्मिनेशनल या सर्जरी के ज़रिए गर्भपात का विकल्प दिया जाता है।
अगर महिला मेडिकल मैनेजमेंट का चुनाव करती है, तो एमटीपी केंद्र इसके लिए महिला की सहमति लेता है। इसके बाद दवाएं दी जाती हैं।
दवाएं देते समय महिलाओं को पूरी सलाह दी जाती है कि उन्हें दवाएं कैसे लेनी हैं, दवाओं से कितना रक्तस्राव हो सकता है, उसे अस्पताल में कब रिपोर्ट करना चाहिए (यदि थक्के के साथ बहुत ज़्यादा रक्तस्राव, तेज दर्द, बुखार, ब्लड प्रेशन में कमी, बेहोशी आने पर)।
इसके साथ ही उन्हें दवाओं के संभावित दुष्प्रभाव के बारे में भी बताया जाता है। टेबलेट लेने के बाद 2-3 बार मेडिकल सेंटर जाने की ज़रूरत पड़ सकती है। दवा लेने के बाद शुरू में काफी ज़्यादा रक्तस्राव हो सकता है जो कुछ सप्ताह में ठीक हो जाता है। आमतौर पर 2 सप्ताह के बाद फिर से अल्ट्रासाउंड किया जाता है।
यदि महिला सर्जरी का विकल्प चुनती है, तो उसे बुनियादी जांच करवाने की सलाह दी जा सकती है। उसके बाद एनेस्थेसिया देकर सर्जरी की जाती है। सर्जरी अल्ट्रासाउंड के साथ या उसके बिना की जाती है। यह इस पर निर्भर करता है कि किस केंद्र पर सर्जरी की जा रही है।
अल्ट्रासाउंड के साथ सर्जरी करना बेहतर रहता है क्योंकि इससे उसी समय पता चल जाता है कि सर्जरी पूरी तरह सही हुई है और उसके बाद फिर से विजिट करने की ज़रूरत नहीं रहती। दोनों ही स्थितियों में एंटीबायोटिक्स और दर्द निवारक दवाओं का कोर्स दिया जाता है।
गर्भपात के बाद महिला को बताया जाता है कि गर्भनिरोधक का उपयोग नहीं करने पर गर्भपात के दो से छह सप्ताह के भीतर 75% महिलाएं ओवुलेट करने लगती हैं और 6% महिलाएं गर्भधारण कर लेती हैं।
गर्भनिरोध के विकल्प के तौर पर बैरियर मेथड (कंडोम), गर्भपात की प्रक्रिया पूरी होने के 2 सप्ताह के भीतर इंट्रायूटेरिन डिवाइस का इंसर्शन, हार्मोनल गर्भनिरोधक लेना (ओरल या इंजेक्शन से) और गर्भनिरोध के स्थायी तरीके जैसे महिलाओं में ट्यूबल लिगेशन या पुरुषों में नसबंदी का इस्तेमाल किया जा सकता है।
इसके साथ ही एनीमिया से बचाव के लिए सही खान-पान के बारे में सलाह दी जाती है। महिला की स्थिति के आधार पर कुछ हफ्तों के लिए आयरन और कैल्शियम की अतिरिक्त खुराक लेने की सलाह दी जा सकती है।
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