मासिक धर्म अधिकांश महिलाओं के जीवन का एक सामान्य और स्वस्थ हिस्सा है। इस वक्त वैश्विक आबादी में लगभग आधी आबादी महिलाओं की है और इस आबादी का लगभग 26 प्रतिशत प्रजनन आयु की हैं। यानी वे मासिक धर्म अवस्था में हैं। ज्यादातर महिलाओं को हर महीने लगभग दो से सात दिनों तक पीरियड्स आते हैं। यह एक सामान्य व स्वस्थ प्रक्रिया है। फिर भी दुनिया भर में मासिक धर्म को कलंकित किया जाता है।
मासिक धर्म के बारे में जानकारी की कमी और गलत धारणाओं के कारण लड़कियों से भेदभाव किया जाता है। जिसके कारण, लड़कियों की मानसिकता पर ही नहीं, लड़कों की मानसिकता पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। लड़कियां हीन भावना से ग्रस्त हो जाती हैं और लड़के भी उन्हे कमतर समझने लगते हैं।
पीरियड्स आने से पहले ही लड़की आशंकित हो सकती है और यह आशंका उसके हाव भाव से उजागर हो जाती है, जिससे न केवल उसकी कार्यक्षमता में कमी आती है, अपितु कई बार उपहास की पात्र भी बन जाती है। ये भ्रम, कलंक, वर्जनाएं और पीरियड्स के अजीबो गरीब मिथ्स किशोर लड़कियों और लड़कों को मासिक धर्म के बारे में जानने और स्वस्थ आदतों को विकसित करने के अवसर से रोकते हैं।
अपने पहले पीरियड् से लेकर रजोनिवृत्ति तक, औसत अमेरिकी महिला अपने जीवन काल में लगभग 450 बार माहवारी से गुजरती है। इनको जोड़ कर देखें तो यह 10 वर्षों के बराबर या लगभग 3500 दिन मासिक धर्म में व्यतीत होंते हैं। कमोबेश यही सारी दुनिया के आंकड़े हैं।
इस आकलन के अनुसार तो महिला को अपनी युवा अवस्था यानी लगभग 14 साल की उम्र में प्यूर्ब्टी से लेकर 45 साल रजोनिवृत्ति तक के बीच के एक तिहाई (10 साल) समय कुंठा में गुजारने पड़ते हैं। जबकि इसका कोई वाजिब कारण नहीं हैं।
हम एक ऐसी दुनिया की कल्पना करते हैं, जहां हर लड़की मासिक धर्म के दौरान तनाव, शर्म से बचे व सही ज्ञान प्राप्त कर अनावश्यक बाधाओं का सामना किए बिना, खेल व अन्य सामाजिक गतिविधियों में निसंकोच भाग ले सके। साथ ही एक गरिमा पूर्ण जीवन जी सके।
एक स्वस्थ समाज हेतु हमें मासिक चक्र के प्रति घृण या हीन भावना विकसित होने को रोकना होगा। यूनिसेफ स्थानीय समुदायों, स्कूलों और सरकारों के साथ शोध करने और मासिक धर्म के बारे में जानकारी प्रदान करने, सकारात्मक स्वच्छता की आदतों को बढ़ावा देने और वर्जनाओं को तोड़ने के लिए काम कर रहा है।
यूनिसेफ कुछ सबसे गरीब क्षेत्रों के स्कूलों में शौचालय, साबुन और पानी सहित पर्याप्त सुविधाएं और आपूर्ति भी प्रदान करता है।
1. विश्व स्तर पर 2.3 बिलियन यानी 230 करोड़ लोगों के पास बुनियादी स्वच्छता सेवाओं की कमी है और कम विकसित देशों में केवल 27 प्रतिशत आबादी के पास घर पर पानी और साबुन से हाथ धोने की सुविधा है। घर पर पीरियड्स को मैनेज करना उन महिलाओं और किशोरियों के लिए एक बड़ी चुनौती है, जिनके घर में इन बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
2. कम आय वाले देशों में लगभग आधे स्कूलों में पीने के पानी और स्वच्छता की कमी है, जो लड़कियों और महिला शिक्षकों के लिए पीरियड्स के दिनों में एक चुनौती बन जाता है। अपर्याप्त सुविधाएं लड़कियों के स्कूल के अनुभव को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे वे अपनी पीरियड्स के दौरान स्कूल जाना छोड़ सकती हैं। सभी स्कूलों को किशोरियों के लिए पानी के साथ-साथ सुरक्षित और स्वच्छ शौचालय उपलब्ध कराना चाहिए।
लेकिन अकेले सरकार या यूनिसेफ इस कमी को पूरा करने में समर्थ नहीं है। इसके लिए परिवार व समाज को भी अपनी भूमिका समझनी व निभानी होगी।
पहला कदम – पीरियड को भय या चिंता के स्थान पर एक उत्सव में बदलना होगा, जिससे लड़की को लगे कि पीरियड उसे संपूर्णता की ओर ले जा रहे हैं।
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इसे एक पार्टी यथा शिशु जन्म पार्टी जैसा बनाना होगा जिससे उनमे आत्मविश्वास जगे यह परिवार और दोस्तों के समर्थन से ही हो सकता है। कुछ आदिवासी कबीलों में यह प्रथा रही है आज भी है। दक्षिण भारत में इसे ऋतु काल, पुष्पावती, साड़ी उत्सव जैसे नामों से सेलिब्रेट किया जाता है।
दूसरा कदम – लड़कियों को उनकी पहली माहवारी से पहले और महत्वपूर्ण रूप से, लड़कों को भी मासिक धर्म पर शिक्षित करना, न केवल लड़कियों का आत्मविश्वास बढ़ाता है, अपितु सामाजिक एकजुटता में योगदान देकर एक स्वस्थ समाज के निर्माण में सहायक होगा। ऐसी जानकारी और उत्सव का आयोजन न केवल घर परिवार, बल्कि स्कूल में भी उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
3. खराब मेंस्ट्रुअल हाइजीन यानी माहवारी अस्वच्छता स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकती है। इसे प्रजनन और मूत्र पथ के संक्रमण से जोड़ा जाता है। पानी और सुरक्षित मासिक धर्म सामग्री यथा सेनिट्री पेड की उपलब्धता तक पहुंच प्रदान करने से मूत्र जननांगी रोग कम हो सकते हैं।
4. विकलांग और विशेष जरूरतों वाली लड़कियों और महिलाओं को मासिक धर्म स्वच्छता के साथ अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उनके पीरियड प्रबंधन करने के लिए पानी और सामग्री के साथ शौचालय तक पहुंच की कमी के कारण असमान रूप से प्रभावित होते हैं। इस हेतु भी कदम उठाने होंगे।
क्या आपको लगता है कि आप पीरियड्स के बारे में सब कुछ जानती हैं? तो यह आपका भ्रम है। आइये इस बारे में कुछ तथ्यों पर रोशनी डालते हैं –
कुछ माता-पिता इस बात से परेशान हो जाते हैं कि बेटी को जल्द पीरियड्स आ गए। वे शक करने लगते हैं टीवी, इंटरनेट पर उत्तेजक कार्यक्र्म देखने या किसी अन्य गलत कदम के कारण हुए हैं। क्या आप जानती हैं कि पिछली कुछ शताब्दियों में, एक लड़की की मासिक धर्म शुरू होने की औसत उम्र बदल गई है?
1800 के आसपास लड़कियों के पीरियड्स आरंभ होने की औसत आयु लगभग 17 वर्ष थी। आजकल, मासिक धर्म शुरू करने की औसत आयु 12 वर्ष है। अर्थात पूरे पांच साल कम।
वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके कुछ प्रमुख कारण हैं :
बेहतर पोषण
हम कुछ सौ साल पहले हमारे पूर्वजों की तुलना में बेहतर और अधिक खा रहे हैं। वसा कोशिकाएं (Fat cells) एस्ट्रोजन बनाती हैं। शरीर में जितनी अधिक वसा कोशिकाएं होंगी, उतना ही अधिक एस्ट्रोजन होगा। यह स्थिति लड़की के मासिक धर्म की शुरुआत को गति प्रदान कर सकती है।
तनाव
शोध बताते हैं कि उच्च तनाव में कोर्टिसोल हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है। इससे पीरियड्स की शुरुआत जल्द हो सकती है।
यह निश्चित रूप से एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि ठंड का मौसम पीरियड्स को प्रभावित कर सकता है, यह सामान्य से अधिक स्रोव और अधिक दिनों तक रह सकता है। सर्दियों के महीनों में पीरियड में दर्द का स्तर भी गर्मियों की तुलना में अधिक व अधिक दिनों तक होता है। यह पैटर्न उन महिलाओं में भी देखा गया जो ठंडे मौसम वाले इलाकों में रहती हैं।
मौसम पीएमटी (Premenstrual Tension)
मूड के साथ-साथ महिला प्रजनन हार्मोन के स्तर पर भी प्रभाव डाल सकता है। दिन छोटे व रात लंबी मूड पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। ऐसा धूप की कमी के कारण माना जाता है, जो हमारे शरीर को विटामिन डी और डोपामाइन का उत्पादन करने में मदद करता है। विटामिन डी हमारे मूड, खुशी, एकाग्रता और संपूर्ण स्वास्थ्य के स्तर को बढ़ाता है।
बहुत से लोगों की मान्यता है कि पीरियड्स के दौरान यौन संबंध से गर्भ नहीं होता। शायद यह अनेक महिलाओं को अविश्वीनीय लगे कि पीरयड के दौरान भी आप गर्भवती हो सकती हैं। हालांकि मासिक धर्म के दौरान आपके गर्भवती होने की अधिक संभावना नहीं होती, लेकिन यह असंभव भी नहीं है।
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शुक्राणु शरीर में पांच या छह दिनों तक जीवित रह सकते हैं। इसलिए यदि पीरियड्स की अवधि अपेक्षाकृत छोटी है और आप पीरियड्स के अंत में सेक्स करते हैं, तो हो सकता है की आप पीरियड्स के बंद होते ही ओव्यूलेट करें और गर्भ ठहर जाए।
अक्सर महिलाओं को लगता है कि पीरियड्स के दौरान उन्हें बहुत सारा ब्लड लॉस होता है। पर यह उतना ज्यादा नहीं है, जिनता आप सोच रहीं हैं। औसत महिला शरीर वास्तव में सामान्य पीरियड्स में एक चम्मच से लेकर एक छोटे कप तक ब्लीड करती है।
लगभग तीन टेबल स्पून रक्त पीरियड्स के स्राव में रक्त के साथ-साथ गर्भाशय की अंदरूनी परत जिसे एंडोमेट्रियम कहते हैं, से निकलता है। पीरियड्स से पहले इस आशा में कि यहां भ्रूण आएगा वह विकसित हो जाती है और अगर गर्भ नहीं होता है, तो वह ऊपरी परत उतार फेंकती है।
लेकिन कभी-कभी, जब अधिक स्राव हो, तो चिकित्सीय सलाह भी लेनी चाहिए। क्योंकि ज्यादा ब्लीडिंग से एनीमिया का खतरा बढ़ सकता है। जिसमें चक्कर आना, थकान सांस फूलना जैसे लक्षण हो सकते हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार, मासिक धर्म के दौरान महिलाओं की आवाज़ थोड़ी बदल सकती है, क्योंकि प्रजनन हार्मोन वोकल कॉर्ड को प्रभावित करते हैं। इसका मतलब है कि पीरियड्स के दौरान महिला की आवाज बदल सकती है, जो उसे अजीब लग सकता है।
साथ ही प्रजनन हार्मोन प्राकृतिक गंध को भी प्रभावित कर सकती हैं, जिसका अर्थ है कि पीरियड्स के दौरान महिला में अजीब गंध आ सकती है। यह बहुत महीन लक्षण है, इसको समझने के लिए मनुष्य के गुफावासी दिनों में वापस जाना होगा जब पुरुष उन महिलाओं के प्रति अधिक आकर्षित होंते थे, जो ओवुलेट कर रही होती थीं।
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