चाइल्ड बर्थ के बाद मां की देखभाल बहुत जरूरी है। प्रसव के बाद उनकी देखभाल ठीक उसी तरह होनी चाहिए, जो महिला को गर्भावस्था, प्रसव और जन्म के दौरान मिली है। इसमें महिला की व्यक्तिगत जरूरतों और प्राथमिकताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। प्रसवोत्तर अवधि या प्री नेटल पीरियड एक खास समय होता है, जब महिलाएं मातृत्व परिवर्तन से गुजरती हैं। इस दौरान डॉक्टर के पास जाना यानी प्री नेटल विजिट भी जरूरी है। प्री नेटल विजिट के दौरान महिलाएं शारीरिक के साथ-साथ मानसिक समस्याओं का भी निदान पाती हैं। इसके बारे में सभी महिलाओं को जानकारी होनी चाहिए। प्री नेटल विजिट (Postnatal Care) के बारे में जानने से पहले जानें क्या है पोस्ट नेटल पीरियड?
बच्चे के जन्म के बाद पहले 6-8 सप्ताह को पोस्ट नेटल पीरियड या प्रसवोत्तर अवधि के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसका उद्देश्य प्रसव के बाद मां के लिए एक हेल्पफुल वातावरण (Postnatal Care) बनाना होता है। इसमें परिवार के साथ-साथ मां और बच्चे की केयर करने के लिए हेल्थ प्रोफेशनल के सलाह की भी जरूरत पड़ती है। इसके तहत किसी भी तरह की शारीरिक, भावनात्मक, सामाजिक या मनोवैज्ञानिक कॉम्प्लिकेशन होने पर तुरंत उपचार की व्यवस्था की जाती है।
पोस्ट नेटल विजिट्स पोस्ट नेटल केयर के अंतर्गत आती है। यह शिशु के जन्म के बाद की अवधि में होती है। प्रसव के बाद देखभाल का तात्पर्य जन्म से लेकर 6 सप्ताह तक मां और बच्चे से संबंधित मुद्दों से है। इसमें महिला और उसके बच्चे की नियमित क्लिनिकल टेस्ट और निगरानी (clinical examination and observation ) शामिल है। प्रसव के बाद देखभाल के लिए बच्चे के साथ अपने नजदीकी क्लिनिक ( पोस्ट नेटल विजिट्स) पर जाना चाहिए।
इन दिनों ज्यादातर डिलीवरी हॉस्पिटल्स या क्लिनिक में होती है। यदि किसी कारणवश बच्चे का जन्म घर पर हुआ है, तो डॉक्टर के साथ पहला पोस्टनेटल कांटेक्ट जन्म के 24 घंटों के भीतर हो जाना चाहिए। सभी मांओं और नवजात शिशुओं के लिए कम से कम तीन एक्स्ट्रा पोस्टनेटल कॉन्टैक्ट की सिफारिश की जाती है। तीसरे दिन (48-72 घंटे), जन्म के बाद 7-14 दिनों के बीच और जन्म के छह सप्ताह बाद डॉक्टर के यहां जरूर विजिट करना चाहिए।
पोस्ट नेटल विजिट्स में प्रसव के बाद डॉक्टर और हेल्थकेयर एक्सपर्ट द्वारा पूरी देखभाल की जाती है, जो पोस्टनेटल केयर कहलाती है। प्रसव के बाद महिला को ब्लीडिंग या फिर एनीमिया जैसी समस्या भी हुई है, इसका आकलन किया जाता है।
किसी प्रकार के संक्रमण को मॉनिटर करना और उसके उपचार की व्यवस्था की जाती है। यह देखभाल किसी भी प्रकार के सेक्सुअली ट्रांसमिट डिजीज से पीड़ित महिला के प्रति बढ़ जाती है। कुछ महिलाओं में प्रसवोत्तर अवसाद भी देखा जाता है। उसकी पहचान कर उसका प्रबंधन करना प्रमुख है। साथ ही, स्तनपान और जरूरी पोषण के लिए भी मदद दी जाती है।
डिलिवरी के बाद प्रीवेंशन, एलिमिनेशन, हेल्थ कॉम्प्लिकेशन (health complications ) का अर्ली डिटेक्शन बहुत जरूरी है। प्रसव के बाद किसी महिला को ब्रेस्टफीडिंग, मेन्टल हेल्थ या अन्य समस्याएं हो सकती हैं।
स्त्री रोग विशेषज्ञ ब्रेस्टफीडिंग, दो बच्चे के जन्म के बीच क्यों अंतर (birth spacing) जरूरी है और डिलीवरी के बाद क्यों सेक्स नहीं करना चाहिए, इसके बारे में बताती हैं।
बच्चे को होने वाली स्वास्थ्य समस्या, टीकाकरण (postnatal visits) के बारे में बाल रोग विशेषज्ञ (Pediatrics) बताता है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन से निपटने के लिए साइकोलॉजिस्ट सायको थेरेपी के जरिये महिला को सहायता प्रदान करते हैं।
पोस्ट नेटल विजिट (Postnatal Care) के अंतर्गत डायटीशियन या न्यूट्रिसनिष्ट मां के साथ मैटरनल न्यूट्रिशन के महत्व पर इंटरैक्टिव सेशन आयोजित कर सकती हैं।
इस दौरान फिटनेस विशेषज्ञ प्रसव के बाद (Postnatal Care) किये जाने वाले व्यायाम के बारे में भी जानकारी देते हैं। वे प्रसव के बाद पहले कुछ सप्ताह तक वाकिंग, पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज, डीप एब्डॉमिनल या कोर ट्रेनिंग के बारे में भी बताते हैं।
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