पैप स्मीयर का इस्तेमाल सर्वाइकल कैंसर के स्क्रीनिंग टेस्ट (Cervical cancer screening test) के तौर पर की जाने वाली सबसे सामान्य जांच है। यह टेस्ट 95-98% तक सेंसिटिव पाया गया है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि ओन्कोलॉजी के क्षेत्र में यह सबसे बड़ी खोजों में से एक है। यह टेस्ट न सिर्फ काफी आसान है, बल्कि सस्ता भी होता है। इसकी ये खूबियां ही इसे और भी उपयोगी/आकर्षक बनाती हैं। मगर एक महिला को पैप स्मीयर टेस्ट (Pap smear test) कब और क्यों करवाना चाहिए, आज इसी पर बात करते हैं।
सर्वाइकल कैंसर भारत में महिलाओं की कैंसर से होने वाली मौतों में दूसरा सबसे प्रमुख कारण है। दुनियाभर में सर्वाइकल कैंसर की वजह से होने वाली कुल मौतों में करीब 25% अकेले भारत में दर्ज की जाती हैं। यानि, भारत इस घातक रोग का ‘गढ़’ बन चुका है।
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि यह उन कैंसर रोगों में से है जिसका रूटीन स्क्रीनिंग टेस्ट के जरिए आसानी से पता लगाया जा सकता है। साथ ही समय पर निदान होने पर इसका कारगर तरीके से उपचार भी मुमकिन है। यही कारण है कि पैप स्मीयर महिलाओं के रूटीन हेल्थ चेक-अप का हिस्सा है।
पैप स्मीयर को नियमित ओपीडी में किया जा सकता है। यहां गाइनीकोलॉजिस्ट आपकी सर्विक्स (गर्भाशय का निचला हिस्सा जिसे गर्भ ग्रीवा भी कहा जाता है) से खुरचकर सैंपल लेकर उसे जांच के लिए लैब में भेजते हैं। अलग-अलग लैब्स का रिपोर्टिंग समय फर्क होता है। यह नॉन-इन्वेसिव, आसान प्रक्रिया है जिसे रूटीन ओपीडी में किया जा सकता है।
गाइडलाइंस के मुताबिक, पैप स्मीयर को 21 साल की उम्र से करवाया जा सकता है, या फिर यौन सक्रियता शुरू होने के बाद करवा सकते हैं। आमतौर से 21 से 65 वर्ष की आयुवर्ग की महिलाओं को यह टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है। यदि पिछली रिपोर्ट नेगेटिव हो, तो टेस्ट 3 साल में केवल एक बार करवाना चाहिए। अगर किसी तरह की एब्नॉर्मेलिटी का पता चलता है, तो आपके डॉक्टर बेहतर डायग्नॉसिस के लिए कुछ अन्य टेस्ट करवाने की सलाह भी दे सकते हैं।
65 साल की उम्र के बाद भी लगातार स्क्रीनिंग की सलाह केवल उन मरीजों को दी जाती है, जिनके साथ सीआईएन या एडिनोकार्सिनोमा की हिस्ट्री जुड़ी हो। अन्य मामलों में, स्क्रीनिंग की जरूरत नहीं होती।
कमजोर इम्युनिटी (जैसे कि एचआईवी पीड़ित) वाले मरीजों को लगातर 3 पैप स्मीयर नेगेटिव आने तक हर साल पैप स्मीयर करवाने की सलाह दी जाती है।
यह टेस्ट प्रेग्नेंसी के दौरान भी करवाया जा सकता है। सच तो यह है कि डॉक्टर इस दौरान महिलाओं में ऐसे रोगों का पता लगाने के लिए इस प्रकार की स्क्रीनिंग करते हैं। खासतौर से समाज के उस कमजोर आर्थिक तबके की महिलाओं की जांच की जाती है, जिनकी पहुंच अच्छी मेडिकल सुविधाओं तक नहीं होती या काफी सीमित होती है।
हालांकि यह टेस्ट कभी भी कराया जा सकता है, लेकिन डॉक्टरों की सलाह है कि टेस्ट से पहले वैजाइनल डाउचिंग (योनि को धोने), वैजाइनल पेसेरीज़, और 24-48 घंटे पहले टैम्पून्स का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। मासिक धर्म रुकने के करीब 24-48 घंटे बाद टेस्ट करवाना चाहिए।
जिन महिलाओं की हिस्टरक्टॅमी (गर्भाशय को निकालने की सर्जरी) हो चुकी हो और कारण बिनाइन (गैर-कैंसरकारी) रहा हो, उन्हें भी इस टेस्ट की जरूरत नहीं होती।
हमारे देश में, इस रोग के बढ़ते बोझ के मद्देनजर, पैप स्मीयर आज के समय में लगातार महत्वपूर्ण बनता जा रहा है। यह टेस्ट ऐसे अधिकांश सेंटर्स पर उपलब्ध है जहां गाइनीकोलॉजिकल सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। आम जनता को इस रोग के बोझ से बचाने के लिए जागरूकता कार्यक्रमों को चलाने की आवश्यकता है। याद रखें, शीघ्र निदान ही कैंसर रोगों के उपचार की पहली सीढ़ी है।
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