न जानें पिछले कितने वर्षों से ‘बर्थ कंट्रोल’ की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाएं ही निभा रहीं हैं। समय-समय पर महिलाओं के लिए ही तमाम तरह के ‘कॉन्ट्रासेप्टिव’ सामने आते हैं। कंडोम के बावजूद, गर्भ निरोध की जिम्मेदारी महिलाओं पर ही है। पिछले कई वर्षों से ‘परिवार नियोजन और जनसंख्या वृद्धि’ को रोकने के लिए एक तरह से महिलाओं को ही जिम्मेदारी उठानी पड़ी है। 2019 में आई भारतीय परिवार कल्याण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2018 से 2019 के 1 साल के वक़्त में भारत में लगभग साढ़े 5 करोड़ लोगों ने गर्भनिरोध का स्थायी तरीका अपनाया, जिसमें महिलाओं में ‘ट्यूबेक्टॉमी’ और पुरुषों में ‘नसबंदी’ शामिल है।
लेकिन इन आंकड़ों के अनुसार बीते 1 वर्ष के समय में 97 फीसदी महिलाओं ने ‘ट्यूबेक्टॉमी’ कराई और मात्र 3 फीसदी पुरुषों ने ‘नसबंदी’ करवाई। अधिकतर पुरुष ‘नसबंदी’ को नपुसंकता से भी जोड़ते हैं, इसलिए भारत में यह आंकड़ा बेहद कम है।
अब गर्भनिरोधक और जन्म नियंत्रण के क्षेत्र में भारत ने एक बड़ी सफलता हासिल की है। दरअसल, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने दुनिया के पहले इंजेक्टेबल पुरुष गर्भनिरोधक का सफलतम क्लिनिकल परीक्षण पूरा कर लिया है। क्लिनिकल परीक्षण से पता चला कि यह विधि बिना किसी गंभीर दुष्प्रभाव के सुरक्षित और अत्यधिक प्रभावकारी है।
आईसीएमआर ने बताया कि पुरुषों पर गर्भ निरोधक ‘रिवर्स इन्हिबीशन ऑफ स्पर्म इंजेक्शन’ लगाया गया, जिसे ‘रिसुग’ यानी ‘रिवर्स इन्हिबीशन ऑफ स्पर्म अंडर गाइडेंस’ (RISUG) कहा गया। साथ ही इस परीक्षण को करने के लिए आईसीएमआर को 7 साल का लंबा समय लगा। आईसीएमआर के अनुसार, यह इंजेक्टेबल गर्भ निरोधक एक सुरक्षित और प्रभावशाली तरीका है।
इस क्लिनिकल परीक्षण में 25-40 वर्ष की आयु के यौन रूप से सक्रिय 303 पुरुषों ने प्रतिभाग किया। ‘गर्भनिरोधक’ के इस क्लिनिकल परीक्षण को देश के पांच अलग-अलग स्थानों पर किया गया, जिसमें नई दिल्ली, उधमपुर, लुधियाना, जयपुर और खड़गपुर में शामिल थे और अंत में इसे आईसीएमआर, नई दिल्ली में को-ऑर्डिनेट किया गया।
आईसीएमआर ने 303 स्वस्थ, विवाहित और सेक्सुअली एक्टिव पुरुषों को 60 मिलीग्राम ‘RISUG’ दिया, जिसके बाद उसके परिणाम में यह पाया गया कि यह इंजेक्शन प्रेग्नेंसी रोकने में 99 फीसद कारगर है। आईसीएमआर परीक्षणों ने संकेत दिया कि ‘रिसुग’ विधि पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए अन्य सभी गर्भ निरोधकों की तुलना में सबसे अधिक प्रभावशाली है।
आईसीएमआर के मुताबिक़, यह गर्भनिरोधक इंजेक्शन 13 साल तक अपना असर दिखा सकता है। यानी इस इंजेक्शन को लेने के बाद अगले 13 वर्ष तक प्रेग्नेंसी का खतरा कम हो सकता है। इसीलिए आईसीएमआर ने यह दावा भी किया है कि अनचाही प्रेग्नेंसी को रोकने के लिए यह तरीका अन्य किसी तरीके से ज्यादा सुरक्षित और असरदार साबित होगा।
आईसीएमआर ने अपने इस सफल ट्रायल की जानकारी देते हुए यह भी सुनिश्चित किया कि इस परीक्षण में प्रतिभाग करने वाले 303 पुरुषों में से किसी को भी इस इंजेक्शन से साइड इफेक्ट देखने को नहीं मिलें। साथ ही आईसीएमआर ने इन सभी पुरुषों के साथ संबंध बनाने वाली उनकी पत्नियों का भी चेकअप किया, जिसमें उनपर भी किसी प्रकार का साइड इफेक्ट देखने को नहीं मिला।
आईसीएमआर के इस परीक्षण को इंटरनेशनली ओपन एक्सेस जर्नल में प्रकाशित किया गया। साथ ही इसमें इसके प्रयोग के बारे में लिखा कि RISUG को पेनिस तक स्पर्म लाने वाले स्पर्म डक्ट में एक के बाद एक इंजेक्ट किया जाता है।
जिसके बाद इंजेक्शन के जरिये दिए जाने वाला पॉजिटिव चार्ज्ड पॉलिमर स्पर्म डक्ट की अंदरूनी दीवार पर चिपक जाता है। उसके बाद जब पॉलिमर निगेटिव चार्ज्ड स्पर्म के संपर्क में आता है, तो यह उसे नष्ट कर देता है। जिसके कारण जब यह ‘न्यूट्रल स्पर्म’ महिला के ‘एग्स’ के साथ मिलता हैं, तो उसे फर्टिलाइज़ करने में नाकाम रहना है। जिससे बर्थ कंट्रोल में सहायता मिलती है।
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