सेक्स पर हमारे समाज में बहुत दबा-छुपाकर बात की जाती है। सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि यहां लोग सेक्स में शामिल पहले हाेते हैं, उसके बारे में जानना बाद में शुरू करते हैं। वह भी तब जब किसी तरह की समस्या आती है। वरना ज्यादातर लोगों की गृहस्थी बिना सेक्स एजुकेशन के भी चलती रहती है। यही वजह है कि सेक्स के बारे में बहुत सारी भ्रांतियां अथवा भ्रामक अवधारणाएं हमें घेरे रहती हैं। चलिए आज ऐसे ही 10 यौन भ्रांतियों (Myths about sex) के बारे में बात करें। जाे पूरी तरह गलत हैं। हेल्दी सेक्स लाइफ के लिए इनसे जितनी जल्दी हो सके पीछा छुड़ा लेना अच्छा है।
यौन संचारित संक्रमण (STI) आमतौर पर विभिन्न लक्षण पैदा करते हैं यथा जननांगों में दर्द, असामान्य डिस्चार्ज, रक्त आना, मूत्र त्याग में दर्द , सेक्स में दर्द, घाव चकत्ते या बुखार आदि। लेकिन मेयो क्लिनिक के अनुसार, एसटीआई के लक्षणों को प्रकट होने में वर्षों लग सकते हैं और कुछ मामलों में तो ये ताउम्र बिना लक्षण हो सकते हैं।
क्लैमाइडिया एक ऐसा संक्रमण है, जो नए साथी के साथ यौन संबंध रखने या एक से अधिक यौन साथी वालों के लिए परीक्षण विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। एक वार्षिक परीक्षा के दौरान नियमित रूप से सभी महिलाओं का परीक्षण आवश्यक होता है। ताकि उपचार हो सके। यानी बिना लक्षण वाले लोगों के लिए भी जांच जरुरी होती है।
सामाजिक मानदंड अक्सर हमें यह धारणा देते हैं कि महिलाएं सेक्स में बहुत कम रुचि रखती हैं। इंडियाना यूनिवर्सिटी में किन्से इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक, पीएचडी, सेक्स शोधकर्ता जस्टिन आर गार्सिया के अनुसार, यह एक सेक्सिस्ट मिथक है। इनसाइडर के साथ एक साक्षात्कार में, गार्सिया ने शोध के बाद बताया कि कामेच्छा का अनुभव पुरुष और महिलाओं में समान स्तर पर पाया गया है।
महिलाओं की सेक्स ड्राइव गर्भावस्था, स्तनपान और रजोनिवृत्ति जैसे कारणों से प्रभावित हो सकती है। इसका यह मतलब नहीं है कि महिलाओं में स्वाभाविक रूप से पुरुषों की तुलना में कम सेक्स ड्राइव (Low sex drive) होती है। महिला व पुरुषों में सेक्स ड्राइव को प्रभावित करने वाले अन्य कारण उम्र, शारीरिक गतिविधि का स्तर, तनाव और मानसिक स्वास्थ्य, आहार, नींद की गुणवत्ता और मात्रा, वजन, बीमारी और अन्य शामिल हैं।
यह एक पुराना मिथक है, जो सच नहीं है। मेयो क्लिनिक के अनुसार योनि “स्वत: सफाई” अंग है, और सामान्य स्नान के अलावा किसी भी सफाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसके उलट डूशिंग योनि के प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ सकती है और बैक्टीरियल वेजिनोसिस जैसे संक्रमणों के जोखिम को बढ़ा सकती है।
एक प्रकार की योनि की सूजन जो एनारोबिक बैक्टीरिया की अतिवृद्धि से उत्पन्न होती है, जो स्वाभाविक रूप से योनि में मौजूद होती है। डूशिंग से आमतौर पर भलाई की जगह अधिक नुकसान होता है।
बार-बार सेक्स या यहां तक कि बच्चे के जन्म से योनि स्थायी रूप से खिंच जाएगी, ऐसा सोचना गलत है। बच्चे को जन्म देने के दौरान योनि में परिवर्तन होता है, लेकिन शरीर के इस हिस्से में बहुत अधिक लोच है और यह कुछ समय के बाद अपनी मूल स्थिति में वापस आ जाती है।.
बच्चे को जन्म देने के बाद पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों में कुछ टोन खो सकता है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि स्थायी हो। पेल्विक फ्लोर फिजिकल थेरेपी इन दोनों और लेवेटर एनी मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करेगी। हां उम्र बढ़ने और हार्मोनल परिवर्तन अंततः योनि की लोच को प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन यह विचार कि योनि वास्तव में फैलती है, गलत है।”
आंकड़े बताते हैं कि यौन रोग अनुमानित 43% महिलाओं और 31% पुरुषों को प्रभावित करते हैं। पुरुषों में इरेक्शन प्राप्त करने या बनाए रखने में कठिनाई या विलंबित स्खलन। महिलाओं में अपर्याप्त योनि स्नेहन और महिलाओं में संभोग सुख प्राप्त करने में असमर्थता जैसे लक्षण हैं। एक आम धारणा यह है कि ये स्थितियां विशेष रूप से टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन जैसे हार्मोन के असंतुलन के कारण होती हैं।
लेकिन यौन रोग अनेक अन्य शारीरिक रोगों की एक विस्तृत श्रृंखला का परिणाम हो सकते हैं। यथा मधुमेह, हृदय रोग, विभिन्न तंत्रिका संबंधी विकार और शराब और नशीली दवाओं के दुरुपयोग या तनाव, चिंता, सम्बन्धों की समस्याओं, यौन प्रदर्शन पर चिंताओं का परिणाम हो सकता है। कई दवाओं के साइड इफेक्ट यथा ब्लड प्रेशर दवाएं, मूत्रवर्धक और कुछ ओवर-द-काउंटर एंटीहिस्टामाइन और डीकॉन्गेस्टेंट भी शामिल हैं। नशीली दवाएं भी दोषी हो सकती हैं .
कंडोम का उपयोग एसटीआई और गर्भावस्था को रोकने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है, लेकिन वे 100% या 99% प्रभावी भी नहीं हैं। सीडीसी के अनुसार, पुरुष कंडोम की विफलता दर लगभग 13% है, जबकि महिला कंडोम की विफलता दर 21% है।
गर्भावस्था को रोकने में हार्मोन आधारित महिला गर्भ निरोधकों की सफलता दर कहीं अधिक है, लेकिन वे एसटीआई से कोई सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं।
कंडोम हों या मौखिक गर्भ निरोधक “गोली” जिसमें एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टिन होते हैं, की सामान्य विफलता दर 7% होती है। इसी तरह, जन्म नियंत्रण पैच और योनि गर्भनिरोधक रिंग (दोनों हार्मोन प्रोजेस्टिन और एस्ट्रोजन को छोड़ते हैं की विफलता दर भी 7% है।
सबसे प्रभावी गर्भनिरोधक उपकरण (“कॉइल” या कॉपर टी हैं, जिनकी विफलता दर 0.1-0.8% के बीच है, और प्रत्यारोपण, जिसमें 0.1% की सामान्य विफलता दर है। मगर, ये तरीके एसटीआई होने से नहीं रोक सकते।
दूसरी ओर, “प्रजनन जागरूकता-आधारित विधियों” की तुलना में गर्भावस्था को रोकने में अधिक प्रभावी हैं, जिसमें मासिक धर्म चक्र के दिनों पर नज़र रखना शामिल है। जिसके दौरान किसी के गर्भवती होने की संभावना कम होती है। सीडीसी के अनुसार, इन विधियों में विफलता दर 23% तक होती है।
यह सच है कि आम तौर पर पीरियड्स के दौरान यौन सम्बन्धों से गर्भ धारण की सम्भावना नगण्य होती है, लेकिन कई स्थितियों में यह संभव भी है। पीरियड्स के प्रारम्भ में (प्यूबर्टी के शुरुआती दिनों में) अक्सर पीरियड्स अनियमित होने के कारण ऐसा संभव हो जाता है। असल में माहवारी 24 से 40 दिन कभी भी हो सकती है तथा महिलाओं में यह अवधि अलग-अलग हो सकती है।
एक अन्य अवस्था है, जिसमें ओवेरी में एक से अधिक अंडे अलग-अलग समय परिपक्व (mature) होने से भी गर्भ हो सकता है।
अब तो यह सर्वविदित तथ्य है कि बांझपन हेतु महिला एवं पुरुष दोनों 33 %प्रतिशत दोषी होते हैं। साथ ही यह भी सच है कि 33 % युगलों में कोई भी मेडिकली अनफिट नहीं होता, लेकिन उनके बच्चे नहीं होते।
यह भी पढ़ें – आपके वेजाइना को ड्राई बनाकर ऑर्गेज़्म को प्रभावित कर सकती है शराब, जानिए ज्यादा पार्टी करने के नुकसान