असल में हमारे देश के अधिकांश हिस्सों में पीरियड्स को अक्सर शर्मनाक या फिर छिपाने वाली चीज की तरह माना जाता हैं और जिन महिलाओं को माहवारी हो रही होती है, उनसे इसे छिपाने की उम्मीद की जाती है। जिसकी वजह से उन्हें बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
संकोच और शर्म के कारण वे माहवारी स्वच्छता और योनि स्वच्छता के बारे में भी जागरुक नहीं हो पातीं। जिससे उन्हें कई तरह के गंभीर संक्रमणों का सामना करना पड़ता है।
समाज में अलग-अलग जगहों पर माहवारी से जुड़ी बहुत सी गलत धारणाएं और परम्पराएं भी पायी जाती हैं जो आज के समय के हिसाब से बिल्कुल भी सही नहीं हैं। इसलिए मासिक धर्म के बारे में लोगों को सही जानकारी देकर ‘जागरूक और संवेदनशील’ बनाने के लिए, 5 फरवरी को भारत के लिए मासिक धर्म और जागरूकता दिवस के रूप में चिह्नित किया गया है। ताकि समाज में माहवारी से जुड़े अंधविश्वासों और नकारात्मक सोच को खत्म किया जा सके और इस से जुड़े संकोच या स्टिग्मा को दूर किया जा सके।
दरअसल इस दिन को पहली बार 5 February 2019 को भारत के कई समाज सेवी संस्थाओं ने एक साथ मिलकर मनाया था। जिसमें एक बहुत बड़ी पैड यात्रा (Pad Yatra) का आयोजन कर माहवारी को एक त्यौहार के रूप में सेलिब्रेट किया था। जिससे कि सभी लोगों को खुले तौर पर माहवारी जैसे sensitive and stigmatized issue के बारे में जागरुक किया जा सके। इस आयोजन में करीब 6000 स्कूली बच्चे, 500 शिक्षक और अन्य समुदाय के लोग शामिल हुए थे।
5 फरवरी को ही मासिक धर्म स्वास्थ्य एवं जागरुकता दिवस (Menstrual Health & Awareness Day) मनाए जाने का एक विशेष कारण भी है। साधारणतयः पीरियड्स में ब्लीडिंग पांच दिनों की होती है और अधिकांश महिलाओं का मासिक धर्म चक्र 28 दिनों का होता है। इसलिए 28 दिनों वाले फरवरी महीने की पांचवी तारीख़ को ही विशेष रूप से यह दिन मनाने के लिए चुना गया।
इसलिए, इस साल माहवारी से जुड़ी शर्म को गर्व और खुशी के साथ बदलने के लिए भारत इस दिन को ‘हैप्पी पीरियड्स डे’ के रूप में मनाएगा।
किशोरावस्था एक बेहद महत्वपूर्ण दौर होता है जब लड़कियों के शरीर में तेजी से परिवर्तन हो रहे होते हैं। इसी उम्र में लड़कियों में माहवारी की शुरुआत होती है। हालांकि माहवारी एक प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया है, लेकिन समाज में मौजूदा भ्रामक अवधारणाएं, शर्म और संकोच के कारण लोग माहवारी के बारे में बातचीत करने से हिचकिचाते हैं।
यहां तक की घर के अंदर और बाहर भी मासिक और प्रजनन स्वास्थ्य के मुद्दे पर कोई खास ध्यान नहीं दिया जाता। स्कूल में भी मासिक और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़े अध्यायों को शर्म की वजह से अक्सर शिक्षक अनदेखा करते हैं और पढ़ाते नहीं हैं।
भारत में महिलाओं और लड़कियों की संख्या 355 मिलियन से अधिक है। इसके बावजूद देश भर में लाखों महिलाएं और लड़किया अभी भी माहवारी से जुड़ी तमाम बाधाओं का सामना करती हैं। जैसे कि पवित्र स्थानों पर जाने, रसोई घर में प्रवेश, स्नान, अचार और तुलसी के पौधों को छूना और प्रार्थनाओं में शामिल होने आदि पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है।
जिनकी वजह से या तो वे सामाजिक रूप से अपने आप को अपमानित महसूस करती है। साथ ही अपनी दिनचर्या में उनको काफी परेशानी भी उठानी पड़ती है। कभी-कभी तो सही जानकारी के अभाव में परिणाम भयानक भी हो जाते हैं। इसलिए माहवारी पर शर्म और चुप्पी को तोड़ना बहुत जरुरी है।
सच्ची सहेली नयी दिल्ली के मयूर विहार में स्थित एक समाजसेवी संस्था है। जो पिछले पांच वर्षों से माहवारी स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में जागरुकता पर काम कर रहीं हैं। जिसमें हर साल कई स्कूलों, कॉलेजों और अन्य स्थानों पर वर्कशॉप भी शामिल हैं।
पिछले साल भी सच्ची सहेली ने Red spot campaign और Happy periods day के रूप में इस दिन को मनाया था। इस साल इस दिन को मनाने के लिए एक ख़ास थीम भी रखी गयी है, जिसका नाम है “अब पता चलने दो”।
आप भी इस अभियान में सहयोग कर सकती हैं। अपने घर के लोगों के साथ या फिर ऑनलाइन photo/videos/messages के जरिये अपने दोस्तों, परिवार, रिश्तेदार या किसी के भी साथ इस विषय पर खुल कर बात करें। आप अपनी हथेली पर रेड डॉट बनाकर अपने सोशल मीडिया पेज से भी इस कैंपेन में हिस्सा ले सकती हैं।
तो लेडीज, चुप्पी तोडिए! क्योंकि पीरियड्स पर फुसफुसाने की नहीं, खुल कर बात करने की जरूरत है।
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