फिल्म ओएमजी 2 तो आपको याद होगी। जिसमें एक बढ़ता बच्चा एक ऐसी हरकत के लिए स्कूल से निकाल दिया जाता है, जिसकी उसे ठीक से समझ ही नहीं थी। वास्तव में अपने शरीर, यौन संबंध और यौन समस्याओं के बारे में अब भी हमारे समाज में खुलकर बात नहीं की जाती। यहां तक कि स्कूलों में भी उन दो चैप्टर को या तो कटवा दिया जाता है, या बस भागते -भागते पढ़ा दिया जाता है। यही वजह है कि बच्चे और किशोर इंटरनेट पर मौजूद बहुत सारी भ्रामक जानकारियों के शिकार हो रहे हैं। बच्चे किसी तरह की गलत संगत या गलत हरकत के शिकार न हो, इसके लिए जरूरी है कि पेरेंट्स अपने बच्चों से यौन शिक्षा (Sex education) के बारे में खुलकर बात करें।
आज भी सेक्स से जुड़ी बातों को टैबू माना जाता है, लोग इस बारे में खुलकर बात नहीं करते। जबकि इंटरनेट के आ जाने के बाद से इस पर बहुत सारा कंटेंट हम सभी के लिए सुलभ हो गया है। यह इतनी आसानी से इंटरनेट पर उपलब्ध है कि छोटे बच्चे और किशोर भी इस तक आसानी से पहुंच रहे हैं। जबकि सेक्स के बारे में इंटरनेट पर मौजूद बहुत सारा कंटेंट वास्तविकता से कोसों दूर होता है। जिसकी वजह से यौन संबंधों, यौन समस्याओं और अपने शरीर के बारे में जानने की बजाए बढ़ते हुए बच्चे, किशोर और युवा कन्फ्यूज हो जाते हैं।
समाज में चले आ रहे टैबू को तोड़ना बहुत जरूरी है। आजकल बेहद छोटी उम्र में प्रेगनेंसी, एसटीआई जैसी अन्य सेक्सुअल हेल्थ रिलेटेड केसेज देखने को मिल रहे हैं। यही कारण है, कि एक उम्र के बाद पेरेंट्स को अपने बच्चों से सेक्सुअल हेल्थ से जुड़ी जरूरी बातें करनी शुरू कर देनी चाहिए।
इस विषय पर अधिक गंभीरता से समझने के लिए हेल्थ शॉट्स ने विद्या नर्सिंग होम, बिजनौर की अब्स्टेट्रिशन और गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. नीरज शर्मा से बात की। डॉक्टर ने सेक्स एजुकेशन (sex education for teens) के कई महत्वपूर्ण पक्ष बताए हैं।
डॉ नीरज शर्मा के अनुसार पेरेंट्स को अपने बच्चों को हर पहलू से सेक्स के बारे में बताना चाहिए। सेक्स से जुड़ी शारीरिक जानकारी के साथ ही भावनात्मक और सामाजिक ज्ञान भी जरूरी है। उन्हें सेक्स से जुड़े सभी कानून (law) की जानकारी होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त बच्चों में बैड टच और गुड टच की समझ बहुत जरूरी है। उन्हें यह भी बताएं कि सेक्स के लिए सामने वाले व्यक्ति की सहमति भी मायने रखती है, जबरदस्ती किसी के साथ यौन संबंध बनाना रेप माना जाता है।
यौन संबंध शुरु करने की सही उम्र, इसके शरीर, मन और जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव, रिश्तों की अहमियत पर बात करना भी बहुत जरूरी है।
सेक्स के लिए केवल शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक समझ होना भी जरूरी है। विशेषज्ञ प्रजनन की आयु के बारे में बात कर सकते हैं। मगर किसी व्यक्ति को यौन संबंधों के लिए कब सक्रिय होना है, यह पूरी तरह उसकी अपनी इच्छा पर निर्भर करता है। डॉ नीरज कहती हैं, इस तर्क का आधार यह है कि किसी को भी उसकी उम्र के कारण बच्चे पैदा करने या शादी करने का दबाव न बनाया जाए।
गवर्नमेंट द्वारा साइंटिफिक, सोशल और फिजिकल पहलुओं को ध्यान में रखते हुए एडल्टहुड की उम्र 18 वर्ष रखी गई है। इससे पहले बनाए गए यौन संबंध बाल यौन शोषण (Child sex abuse) की श्रेणी में रखे जाते हैं और इस पर सजा भी हो सकती है।
यौन शिक्षा उन तमाम भ्रामक जानकारियों से बचाने का रास्ता है जो आपके बच्चे को कन्फ्यूज कर रही हैं। चित्र : शटरस्टॉक
बच्चे जब बड़े होते हैं, खासकर जब उन्हें प्यूबर्टी हिट करती है, तो शरीर में कई बदलाव आते हैं। जैसे कि हेयर ग्रोथ, खासकर प्राइवेट एरिया में, वहीं लड़कियों में डिस्चार्ज होता है, ऐसे में हाइजीन के प्रति अधिक सचेत रहना जरूरी है।
बचपन में साफ-सफाई का ध्यान पेरेंट्स रखा करते थे, पर जब बच्चे टीनएज में आ जाते हैं, तो ऐसे में उन्हें अपनी हाइजीन से जुड़ी जानकारी होना जरूरी है। पेरेंट्स को वेजाइना और पेनिस क्लीनिंग के साथ ही प्यूबिक हेयर के इंपोर्टेंस बताने चाहिए। साथ ही साथ पीरियड्स हाइजीन के बारे में भी उन्हें अवेयर करना जरूरी है।
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यौन संबंध एक बेहद संवेदनशील मसला है। बढ़ती उम्र के बच्चे कई बार यह तय नहीं कर पाते कि वे किसी को पसंद कर रहे हैं या उसकी पर्सनेलिटी को कोई एक हिस्सा उन्हें आकर्षित कर रहा है। इस उम्र में हॉमोन्स का दबाव इतना अधिक होता है कि बच्चे बहुत जल्दी किसी के प्रति शारीरिक आकर्षण में बंध जाते हैं। फिर चाहें उनके दोस्त हों, टीचर, कोच, परिचित या आसपास का कोई भी व्यक्ति।
इमोशनल और हॉर्मोनल ओवरलोड उन्हें किसी गलत संबंध या व्यक्ति के प्रति आकर्षित न करे, इसके लिए जरूरी है पेरेंट्स का उनके साथ बातें शेयर करना। जब उन्हें अपनी भावनाएं आपके साथ शेयर करने की अनुमति होगी, तभी आप सेक्स के जोखिमों और सेफ्टी पर ठीक से समझा पाएंगी।
बच्चों में सेक्सुअल समझ पैदा करने का एक सबसे बड़ा कारण है एसटीआई। आजकल एसटीआई कॉमन हो गया है और छोटी उम्र में भी लोगों को प्रभावित कर रहा है। ऐसे में सेक्सुअल ट्रांसमिटेड डिजीज से बचने के लिए इसके बारे में पता होना बेहद जरूरी है।
प्यूबर्टी के बाद अपने बच्चों को एसटीआई के प्रति जागरूक करें। उन्हें इसके बारे में बताएं साथ ही इसकी संभावित कारणों पर बात करें। बच्चों में जानकारी की कमी होने से वे अनसेफ सेक्स कर सकते हैं, जिसकी वजह से उनमें एस्टीआई का खतरा बढ़ जाता है। आपकी छोटी सी पहल आपके बच्चों को तमाम परेशानियों से बचा सकती है।
अक्सर नादानी में बेहद कम उम्र में लोग मेक आउट, ब्लो जॉब जैसी गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं। यह न्यू नॉर्मल है, पर इससे बच्चों के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य की हानि हो सकती है। इसलिए उन्हें इनके बारे में पहले से बताएं ताकि वे समझदारी से काम ले सकें। आपके बच्चे के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि एक बार किसी एक्टिविटी में शामिल हो जाने के मतलब यह नहीं है कि कोई व्यक्ति इस आधार पर दोबारा ऐसा करने का उन पर दबाव बनाए।
यदि आपको कुछ ऐसा पता चलता है तो उस पर नेगेटिव रिएक्ट करने की जगह उनकी भावनाओं को प्राथमिकता देते हुए उन्हें सही बात बताएं। जब वे हाई स्कूल में अपने जूनियर या सीनियर क्लास में पहुंचते हैं, तो डेटिंग सम्मान और संचार के साथ एक वास्तविक रिश्ते की तरह होती है, न कि केवल हुकअप। यह दो लोगों के बीच संचार का एक रूप है, यह भावनात्मक है, और अगर यह एक परिपक्व, स्वस्थ रिश्ता है, तो यह पारस्परिक और सम्मानजनक है। डेटा दिखाता है कि यौन गतिविधि में देरी करने के कई लाभ हैं।
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