आयुर्वेद में योग पर बहुत अधिक महत्व दिया गया है। यहां योग से मतलब है जोड़। अलग-अलग जड़ी-बूटियों के योग से बनी दवाई। ये जड़ी-बूटियां अपने अलग-अलग रूप में तो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती ही हैं। पर जब इन्हें अन्य कई जड़ी-बूटियों के साथ मिला दिया जाता है, तो ये सेहत के लिए और भी ज्यादा फायदेमंद हो जाती हैं। ऐसी ही कई प्रकार की जड़ी-बूटियों के योग से तैयार हुई आयुर्वेदिक दवा है दशमूल। दवा के रूप में इसे दशमूलारिष्ट और दशमूल क्वाथ भी कहते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि ये पीरियड्स से लेकर मेनोपॉज तक महिलाओं की कई समस्याओं में राहत दे सकती है।
दशमूल को तैयार करने में कौन-कौन से पेड़ की छाल, जड़ों या बीजों का प्रयोग किया जाता है। यह जानने के लिए हमने बात की आयुर्वेद एक्सपर्ट नीतू भट्ट से।
दस पेड़ों की जड़ों से बनता है दशमूलारिष्ट
नीतू बताती हैं, ‘आयुर्वेद में दशमूल को अचूक दवा माना गया है। यह स्त्रियों की स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं को दूर करने में सक्षम है। इसमें दस प्रकार की वनस्पतियों की जड़ को मिलाया जाता है। ये सभी वनस्पतियां हैं- बेल, गंभारी, पाटल, अरनी, अरलू, सरिवन, पिठवन, बड़ी कटेली, छोटी कटेली और गोखरू’।
इनके अलावा, बड़ी संख्या में अन्य जड़ी-बूटियां भी मिलाई जाती हैं। आयुर्वेदिक पुस्तकों में दशमूल के बारे में स्पष्ट बताया गया है कि यह टिश्यू के पुनर्निमाण में मदद करता है। यह शरीर को शक्ति प्रदान करता है। साथ ही शरीर की सूजन को कम कर एनर्जेटिक बनाता है।
पीरियड हो या प्रेगनेंसी या फिर मेनोपॉज की स्थित यह महिलाओं की हर स्वास्थ्य समस्या में यह कारगर होता है। यह एनालजेसिक, एंटी अर्थरिटिक, एंटी ब्रोंकाइटिस, एंटी माइक्रोबियल, एंटी फंगल, एंटीऑक्सीडेंट, एंटी एनरोक्सिक, एंटी गैस्ट्रिक होता है।
क्वाथ या काढ़ा बनाने के लिए सूखी वनस्पतियों की तुलना में आठ या सोलह गुना पानी मिलाया जाता है। फिर धीमी आंच पर इसे उबाला जाता है।
अरिष्ट : काढ़े में गुड़ या चीनी मिलाकर फर्मेंटेशन प्रोसेस से बनाया जाता है। इसे आयुर्वेद में संधान विधि कहा जाता है।
दस पौधों की जड़ से तैयार होने वाले अरिष्ट को अत्यधिक फायदेमंद बनाने क लिए और भी कई जड़ी-बूटियां मिलायी जाती हैं। यह वात और कफजन्य रोगों में विशेष रूप से लाभदायक है।
हार्मोन इंबैलेंस के कारण पोलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम पीसीओएस होता है। इसके कारण महिलाओं में इनफर्टिलिटी होती है। पीसीओएस मैनेज करता है दशमूलारिष्ट। यह हार्मोन लेवल को बैलेंस कर इनफर्टिलिटी को ठीक करता है। साथ ही पीसीओएस के कारण होने वाले अनियमित मेंस्ट्रुअल पीरियड को भी सही करता है। यह फिमेल रिप्रोडक्टिव सिस्टम को भी ठीक करता है।
हर्ट अटैक और स्ट्रोक ब्लड क्लॉट करने के कारण होते हैं। दशमूलारिष्ट ब्लड प्लेटलेट्स के क्लॉट करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाता है। यदि आप एलोपैथिक दवाइयां ले रही हैं, तो भी साथ में दशमूलारिष्ट का सेवन कर सकती हैं। पर दोनों दवाओं के बीच आधे घंटे का अंतर जरूर रखें।
वजन बढ़ने के कारण ज्वाइंट्स प्रभावित होने लगते हैं। इसके कारण घुटने और हिप ज्वाइंट्स में सूजन हो जाती है और दर्द होने लगता है।
दशमूलारिष्ट इन्फ्लेमेशन और दर्द को कम करने में मदद करता है।
नार्मल डिलिवरी के बाद महिलाओं में दर्द आम समस्या है। यदि प्रेगनेंसी के बाद दशमूलारिष्ट का सेवन किया जाए, तो यह दर्द से राहत दिलाता है। यह कमजोरी दूर करता है। नीतू बताती हैं, नव प्रसूता महिलाओं के लिए यह अमृत के समान है। नियमित रूप से इसका सेवन करने पर भी यह पाचन तंत्र को मजबूत करता है।
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