दुनियाभर में बड़ी तादाद में लोग रोज़ाना यौन संचारित संक्रमण (Sexually transmitted disease) का शिकार होते हैं। मगर फिर भी समाज में इन समस्याओं पर खुलकर बात करने में अब भी महिलाओं को हिचक महसूस होती है। इस तरह की अप्रोच समस्या को दिनों दिन गंभीर बनाने का काम करती है। डब्ल्यू एच ओ (WHO) के अनुसार, विश्वभर में प्रतिदिन तकरीबन 10 लाख से ज्यादा लोग यौन संचारित संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं। सिफलिस (Syphilis) उन्हीं में से एक एसटीआई (STI) रोग है, जिसके बारे में बिना जांच के पता लगाना आसान नहीं है। जानते हैं सिफलिस क्या है और इसके कारण व बचाव भी।
ट्रेपोनेमा पैलिडम बैक्टीरिया (Treponema pallidum bacteria) से संक्रमित व्यक्ति से यौन संबध बनाने के कारण यौन संचारित संक्रमण फैलने लगते हैं, जो सिफलिस का कारण बनता है। सही समय पर उपचार न मिलने के कारण ये शरीर के कई ऑर्गन्स को डैमेज कर देता है। ये जीवाणु आमतौर पर योनि, गुदा या ओरल सेक्स के दौरान सिफलिस के घाव के साथ सीधे संपर्क के माध्यम से फैलता है। यह प्रसव के दौरान एक संक्रमित मां से उसके बच्चे में भी फैल सकता है। आमतौर पर 15 से लेकर 40 वर्ष की उम्र तक के महिला और पुरूषों में इस समस्या की चपेट में आने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। यौन संबधों के अलावा ये रोग गर्भावस्था में मां से शिशु को भी हो सकता है।
इस बारे में फाउंडर डायरेक्टर, उजाला सिगनस ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल, डॉ शुचिन बजाज का कहना है कि सिफलिस के फैलने का मुख्य कारण असुरक्षित यौन संबध हैं। दरअसल, संक्रमित साथी के साथ असुरक्षित यौन संबंध बनाने से संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। शुरूआत में सिफलिस का एंटीबायोटिक दवाओं के साथ उचित तरीके से इलाज किया जा सकता है। अगर आपको सिफलिस है या आप एसटीआई से ग्रस्त हैं, तो उचित चिकित्सा लें। वहीं सेक्स को सुरक्षित बनाने के लिए कंडोम का इस्तेमाल सिफलिस के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है।
अनप्रोटेक्टिड सेक्स सिफलिस के फैलने का मुख्य कारण साबित होता है। किसी संक्रमित व्यक्ति से असुरक्षित यौन संबध बनाने से बचें और कण्डोम का प्रयोग करें। महिला कण्डोम भी इन दिनों बेहद चलन में हैं।
सेक्स टॉयज़ की शेयरिंग आपकी मुश्किलें बढ़ा सकती है। खुद को संक्रमण से मुक्त रखने के लिए इस्तेमाल किए हुए टॉयज़ को प्रयोग करने से बचें। अगर आप प्रयोग करना चाहते हैं, तो उन्हें अच्छी तरह से क्लीन करें।
संक्रमण से खुद को बचाव करने के लिए किसी भी नए पार्टनर से सेक्स करने से पहले उससे बात करें। इससे आप यौन संचारित संक्रमण से अपना बचाव कर सकते हैं।
सबसे पहले हाथ, तलवों, योनि के बाहर, मुंह, गले या जीभ समेत शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द रहित दाना बनने लगता है। ये दाना कुछ दिनों में ठीक होकर दोबारा फिर से उभरने लगता है। इनमें से रक्त स्त्राव और दर्द की भी संभावना धीरे धीरे बढ़ने लगती है।
शरीर में अक्सर बुखार और थकान रहने लगती है। इसके अलावा हर पल आलस्य महसूस होता है।
आंखों में दर्द, जलन व पानी निकलने की समस्या बनी रहती है और भूख में भी कमी नज़र आती है।
मांसपेशियों में ऐंठन और जोड़ों में भी दर्द की शिकायत बनी रहती है।
इसे सिफलिस की हिडन स्टेज भी कहा जाता है। इस चरण के दौरान बीमारी पूरी तरह से गुप्त रहती है। कोई दाने या निशान व दर्द नहीं होती है। बैक्टीरिया बॉडी में ही मौजूद रहता है। सालों तक सिफलिस लेंटेंट स्टेज पर बना रहता है।
वे लोग जिन्हें देर से इस समस्या की जानकारी मिलती है, उनके शरीर पर दाने उभर आते हैं। अब वो दाने खुले घाव में बदल जाते हैं, जिसमें तीव्र दर्द रहता है। इलाज न करवाने पर समस्या बढ़ सकती है। उचित समय पर जांच और उपचार समस्या की रोकथाम में मददगार साबित होते हैं।
इसके अलावा कुछ लोगों की आंखों की रोशनी छिन जाती है।
अधिकतर लोग मानसिक समस्याओं से घिरे रहते हैं और मेमोरी लॉस उनकी समस्या का कारण बनता है।
सुनने में भी समस्या का सामना करना पड़ता है। शरीर में हृदय संबधी समस्याओं का खतरा बना रहता है।
डॉ शुचिन बजाज के अनुसार एंटीबायोटिक दवाओं के माध्यम से इस बीमारी का इलाज संभव है। समय पर इस बीमरी की जांच और उपचार इसके जोखिम को कम कर सकती है। उचित उपचार न मिलने के चलते सिफलिस के कारण विकलांगता और मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने की संभावना बनी रहती है।
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