कहते हैं कि मातृत्व की शक्ति यानी अपने समान एक और इंसान को गढ़ने की क्षमता स्त्री को सबसे शक्तिशाली बनाती है। मां नौ महीने तक गर्भ में भ्रूण को अपने खून से सींचती-पालती रहती है। मां और भ्रूण के संबंध पर लगातार रिसर्च होते रहते हैं। कैसे जरूरत पड़ने पर गर्भ में मां और भ्रूण की कोशिकाओं की मरम्मत करने के लिए प्रयास किये जाते हैं। इस प्रक्रिया को फेटोमेटरनल माइक्रोचिमेरिज्म (Fetomaternal Microchimerism) कहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर जानते हैं मातृत्व की इस शक्ति को।
फेटोमेटरनल माइक्रोचिमेरिज्म (FMC) प्लेसेंटल वर्टेब्रेट्स में एक विशेष प्रकार की क्रिया है, जिसमें पीएपीसी नाम की भ्रूण कोशिकाओं की एक छोटी संख्या मां में चली जाती है। गर्भावस्था के दौरान यह मातृ अंगों में एकीकृत हो जाती है। जब एक महिला गर्भवती होती है, तो उसके भ्रूण की कोशिकाएं मां के ब्लड स्ट्रीम में चली जाती हैं। ये फिर वापस भ्रूण में चली जाती हैं। इसे फेटोमेटरनल माइक्रोचिमेरिज्म के रूप में जाना जाता है।
डॉ. छाया शाह अपने इन्स्टाग्राम पोस्ट में बताती हैं कि शोध से पता चला है कि अगर मां का दिल घायल हो जाता है, तो भ्रूण की कोशिकाएं साइट पर आ जाती हैं। वे क्षतिग्रस्त ऊतक की मरम्मत में मदद करती हैं। जब बच्चा मां को अपने शरीर को ठीक करने में मदद करता है, तो मां अपने बच्चे का निर्माण कर रही होती है। अध्ययनों से पता चला है कि बच्चे के जन्म के 18 साल बाद भी मां के मस्तिष्क में भ्रूण कोशिकाओं की उपस्थिति होती है।
जर्नल ऑफ़ ओरल एंड मेक्सिलो फेशियल पैथोलॉजी में फेटोमेटरनल माइक्रोचिमेरिज्म पर शोध प्रकाशित हुआ। शोधकर्ता संध्या श्रीवास्तव, रूपाली नाईक के अनुसार, ग्रीस की पौराणिक कहानियों के अनुसार चिमेरा एक मोंस्टर है, जो कई पशुओं के अंगों से बना है।
वास्तव में 1970 में वैज्ञानिकों को पता चला कि चिमेरा एक ओर्गेनिज्म है, जो दो जेनेटीक्ली दो अलग अलग कोशिकाओं से बना है। माइक्रोचिमेरिज्म को कोशिकाओं की दो आनुवंशिक रूप से अलग –अलग कोशिकाओं की उपस्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
इसमें एक पोपुलेशन लो कंसन्ट्रेशन वाली होती है। एक ही व्यक्ति या एक अंग जैसे बोन मेरो में बच्चे से मां के लिए सेल का माइग्रेशन होता है। इसलिए माइक्रोचिमेरिज्म आनुवंशिक रूप से भिन्न व्यक्ति में उत्पन्न होने वाली छोटी संख्या की कोशिकाओं के आश्रय को संदर्भित करता है।
कई कारणों से माइक्रोचिमेरिज्म पर बहुत अधिक बात की जा रही है। यह ऑटोइम्यून बीमारियों, कैंसर और घाव भरने आदि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गर्भावस्था के दौरान कुछ कोशिकाएं मां से भ्रूण में स्थानांतरित होती हैं और इसके विपरीत कुछ कोशिकाएं भ्रूण से मां में माइग्रेट कर जाती हैं। दिलचस्प बात यह है कि मां से प्राप्त कोशिकाओं की एक छोटी संख्या उसकी संतान में बनी रहती है। यह वयस्क होने तक व्यक्ति के जीवन में बनी रहती है। जबकि पिछले गर्भधारण से कुछ कोशिकाएं मां में कई वर्षों तक बनी रहती हैं।
वैज्ञानिक अब इन कोशिकाओं के निहितार्थ को समझने लगे हैं। वे और अधिक जानने-समझने की कोशिश कर रहे हैं, जो मेजबान के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद या हानिकारक हो सकते हैं।
माइक्रोचिमेरिज्म दो प्रकार के हो सकते हैं –
प्राकृतिक – गर्भावस्था, गर्भपात, प्राकृतिक : गर्भावस्था या गर्भपात या ट्विन या प्राकृतिक रूप से सेक्सुअल इंटरकोर्स के दौरान नेचुरल माइक्रोचिमेरिज्म हो सकते हैं। प्रेग्नेंसी प्राकृतिक माइक्रोचिमेरावाद का एक प्रमुख स्रोत है।
आर्टिफिशियल – इस प्रकार के माइक्रोचिमरिज़्म के उदाहरण अंग या टिश्यू प्रत्यारोपण और ब्लड ट्रांसफ्यूज़न के दौरान मिल सकते हैं।
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