तनाव, अव्यवस्थित जीवनशैली और बढ़ती जिम्मेदारियों के साथ बहुत सारी महिलाएं पीसीओएस की शिकार हो रही हैं। नतीजा यह होता है कि वे हार्मोनल इमबैलेंस की शिकार हो जाती हैं। पिछले कुछ वर्षों में इन्हीं कारणों के चलते महिलाओं में पीसीओएस (Polycystic ovary Syndrome) की समस्या लगातार बढ़ रही है। इसमें ओवरी में कई सिस्ट बनने लगते हैं। यदि पीसीओएस का समय पर इलाज नहीं किया जाता है, तो मेंस्ट्रुअल डिसऑर्डर, इनफर्टिलिटी, ओबेसिटी और डायबिटीज जैसी समस्याओं का जोखिम बढ़ सकता है। आयुर्वेदिक उपचार के अनुसार यदि महिलाएं नियमित रूप से मेडिसनल प्लांट शतावरी का उपयोग करें, तो पीसीओएस की समस्या (Shatavari for PCOS) का निदान हो सकता है।
भारत में हजारों वर्षों से शतावरी का प्रयोग होता आया है। शतावरी (Asparagus Racemosus) भारत का सबसे आम पौधा है। यह हिमालय पर्वत श्रृंखला पर खूब पाई जाती है। आज भी ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को रिप्रोडक्टिव ऑर्गन संबंधी किसी भी तरह की समस्या होने पर शतावरी के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है।
आयुर्वेद में तो शतावरी को स्त्रियों का दोस्त (Women Friend) कहा जाता है। इसे यूट्रस का टॉनिक (Uterus Tonic) भी कहा जाता है। यह ब्रेस्ट डेवलपमेंट और ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने में भी मदद करता है। मेंस्ट्रुअल डिसऑर्डर में शतावरी को मददगार माना जाता है। यह हार्मोनल इम्बैलेंस को रेगुलेट करता है। इसलिए शतावरी को पीसीओएस से होने वाली समस्याओं के इलाज में प्रयोग किया जाता है। शतावरी पीसीओएस में कितनी कारगर है, यह जानने के लिए हमने बात की आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. नीतू भट्ट से। वे शतावरी को महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद बताती हैं। पर उससे पहले आइए जानते हैं शतावरी पर हुए विभिन्न शोध क्या कहते हैं।
कोलंबो यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ आयुर्वेदिक ऑब्सटेट्रिक्स, गाइनेकोलॉजी एंड पीडिएट्रिक्स और डिपार्टमेंट ऑफ आयुर्वेद फार्मेकॉलॉजी और देसी चिकित्सा
संस्थान द्वारा पीसीओएस पर शतावरी के प्रभाव पर रिसर्च किया गया। इसे जून 2018 में इंटरनेशनल जरनल ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंस ऐंड रिसर्च में प्रकाशित भी किया गया।
श्रीलंका की कोलंबो यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ आयुर्वेदिक ऑब्सटेट्रिक्स के कुमारपेलि एम, डिपार्टमेंट ऑफ आयुर्वेद फार्मेकॉलॉजी के कौमादि करूणागोडा और देसी चिकित्सा संस्थान के पथिरेज कमल परेरा ने क्लिनिकल ट्रायल के तहत पीसीओएस मैनेज करने में शतावरी के प्रभावों की जांच की गई।
इसमें 60 पीसीओएस से प्रभावित महिलाओं को 3 ग्रुप में बांटा गया। एक ग्रुप को 10 एमएल गाय के घी में 5 ग्राम शतावरी मिलाकर मौखिक रूप से दी गई। वहीं दूसरी ओर बाकी 2 ग्रुप को दूसरी दवाइयां दी गईं। 1 महीने बाद जब जांच की गई, तो पाया गया कि ऑवेरियन वॉल्यूम में कमी आई है। इससे मेंस्ट्रुअल डिस्टर्बेंस भी घटा। पीसीओएस संबंधी कई दूसरी समस्याओं में भी कमी देखी गई।
बायो मेडिसिन एंड फार्माकोथेरेपी में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, शतावरी का पौधा होर्मोनल इम्बैलेंस और पॉलीसिस्टिक ऑवरी सिंड्रोम को कम करता है।
डॉ. नीतू कहती हैं, “आयुर्वेद मानता है कि पीसीओएस वात, पित्त और कफ तीनों दोषों के कारण होता है। जबकि शतावरी इन तीनों दोषों को खत्म करने में मदद करती है। इसमें मुख्य रूप से स्टीरॉयडल सेपोनिंस पाया जाता है।
यह एस्ट्रोजेन को रेगुलेट कर पीरियड को नियमित करता है। इससे ऑव्यूलेशन भी हो पाता है। यह फीमेल हार्मोन बनाने में मदद करती है और किसी भी प्रकार के असंतुलन को भी खत्म करती है।
शतावरी पीरियड्स को भी रेगुलर कर रिप्रोडक्टिव टिश्यू को स्वस्थ करती है। यह फॉलिकुलर ग्रोथ को इंप्रूव करती है और एग को संपूर्ण पोषण देती है। इसलिए यह पीसीओएस कंट्रोल करने में उपयोगी है।”
डॉ. नीतू कहती हैं, “शतावरी काढ़ा और चूर्ण के रूप में उपलब्ध होती है। शतावरी के तेल का भी प्रयोग किया जाता है।’
दूध या शहद के साथ दिन में दो बार शतावरी चूर्ण को लिया जा सकता है।
शतावरी काढ़ा को भी दिन में 1-2 बार लिया जा सकता है।
शतावरी से कुछ लोगों को एलर्जी भी होती है। इससे स्किन में खुजली, हार्ट बीट तेज होना, सुस्ती महसूस करना जैसे लक्षण भी दिख सकते हैं। इसलिए बिना डॉक्टर की सलाह के शतावरी का प्रयोग शुरू न करें।