पार्टनर को है यौन समस्या, तो बाजीकरण की शक्ति से करें उनकी मदद
एक बच्चे का जन्म माता-पिता के जीवन में सबसे खूबसूरत पलों में से एक होता है। लेकिन इनफर्टिलिटी के मामलों की बढ़ती घटनाओं के साथ, इस समस्या से निपटने के तरीके के बारे में चिंता बढ़ रही है। वैसे तो इस मुद्दे को हल करने के लिए आज कई विकल्प उपलब्ध हैं, लेकिन आपका साथी आयुर्वेद की आठ शाखाओं में से एक वजीकरण या बाजीकरण (Vajikarana) की मदद से भी आप इस समस्या का निवारण कर सकते हैं। जो रिप्रोडक्टिव सिस्टम (Reproductive system) से संबंधित स्वास्थ्य मुद्दों के समाधान के लिए है।
क्या है वाजीकरण ?
‘वजः’ शब्द घोड़े के साथ-साथ रिप्रोडक्टिव टिश्यू दोनों को प्वाइंट करता है। इसलिए दवाएं और आहार जो किसी व्यक्ति (घोड़े के समान) में ताकत या जीवन शक्ति में सुधार करने की क्षमता रखता है, और रिप्रोडक्टिव टिश्यू की गुणवत्ता में सुधार करता है। उसे वाजीकरण द्रव्य माना जाता है।
चिकित्सा की वाजीकरण शाखा का महत्व
हर व्यक्ति को स्वस्थ संतान की सहायता से धार्मिकता, अर्थ या धन, प्रीति या प्रेम और यश या प्रसिद्धि प्राप्त करने वाला माना जाता है। इसलिए चिकित्सा की इस वाजीकरण शाखा को बहुत महत्व दिया गया है।
ये दवाएं स्वाभाविक रूप से प्रकृति में होती हैं और ताकत बढ़ाती हैं। एक व्यक्ति में सम धातु या शरीर मे मौजूद टिश्यू को बैलेंस्ड रखने में मदद करती हैं। साथ ही वे शुक्र धातु या रिप्रोडक्टिव टिश्यू को भी बढ़ाते हैं। प्रजनन क्षमता के साथ-साथ एक व्यक्ति में सामान्य स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देते हैं।
क्या है शुक्र धातु का कॉन्सेप्ट ?
शुक्र धातु या रिप्रोडक्टिव टिश्यू आयुर्वेद में बताए गए सात शरीर के टिश्यू में से एक हैं। इसका सबसे पहला काम गर्भ या भ्रूण का निर्माण होता है। जब शरीर में शुक्र धातु पूरी तरह से स्वस्थ हो, तो यह एक व्यक्ति में विशिष्ट विशेषताओं के लिए जिम्मेदार होता है। जिसमें वे नरम स्वभाव वाले, स्पष्ट दूधिया सफेद आंखों के साथ एक स्पष्ट रंग भी होता है।
ओजस, जिसे शरीर के सभी टिश्यू का सार माना जाता है, शरीर में सुरक्षात्मक कार्य करने वाले व्यक्ति में भी अच्छी तरह से बनता है।
यह कारक शुक्र धातु के गठन में मदद करते हैं –
अग्नि
किसी व्यक्ति में डाइजेशन और मेटाबॉलिज्म जिसे आयुर्वेद में अग्नि कहा जाता है, स्वास्थ्य का निर्धारण करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है। जब तक अग्नि पूरी तरह स्वस्थ नहीं होती, शरीर में कई शारीरिक पहलुओं जैसे कि दोष या तीन प्रमुख फिजियोलॉजिकल फंक्शन का निर्माण होने में समस्या होगी। यह बदले में, शुक्र धातु के अनुचित गठन सहित विभिन्न बीमारियों का परिणाम होगा।
इसलिए, कई लंघन या उपवास उपचारों का उपयोग करके और भोजन में मसालों का उपयोग करके अग्नि को बेहतर बनाने के तरीके महत्वपूर्ण हैं।
यहां जानिए वाजीकरण द्रव्य की गुणवत्ता
आम तौर पर, खाने की चीज़े या दवाएं जिनमें स्वाद में मिठास (मीठा) होने का गुण होता है, जैवभौतिक गुणों में अशुद्ध), पुष्टिकार या प्रकृति में पौष्टिक होने के साथ-साथ मनोप्रसन्नता (जो मन को संतुष्ट करती हैं) यह सब इस श्रेणी में आती हैं।
इनमें क्षीर (दूध), घृत (घी), यावगु (चावल का दलिया), पायसा (दूध दलिया), मोदका (मीठी डंपलिंग ), गोधुमा (गेहूं), माश (उड़द की दाल), आमरा (आम), लशुना जैसे चीजें शामिल।
प्यूरिफैक्टरी थेरेपी : पंचकर्म
आयुर्वेद ने हमेशा टिश्यू पोषण के ऑप्टिमम फंक्शनिंग को हासिल करने के लिए रोज की सफाई पर जोर दिया है। माना जाता है कि अमा एक कॉम्प्लेक्स केमिकल और मेटाबॉलिक वेस्ट, जिसका विभिन्न शारीरिक, भावनात्मक, संज्ञानात्मक और व्यवहार संबंधी कार्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
पुरुषों में इसका सीधा असर स्पर्म की क्वालिटी और ओव्यूलेशन में नियमितता पर पड़ता है। सफाई का तरीका आमतौर पर व्यक्तिगत बॉडी टाइप के अनुसार और एक नियमित अवधि के लिए अपनाया जाता है, जो सिस्टम में अमा के स्तर पर निर्भर करता है।
वाजीकरण विहार
माना जाता है कि साधारण गतिविधियों में वाजीकरण प्रभाव डालने की क्षमता होती है। इनमें अभ्यंग (मालिश), स्नान, शयन (आरामदायक विश्राम स्थल), आसन (आरामदायक बैठने की जगह), और संवाहन (हल्की मालिश) शामिल हैं।
कुछ सामान्य वाजीकरण जड़ी-बूटियां
- अश्वगंधा ( withania somnifera )
- कपिकाचु (mucuna pruriens)
- शतावरी (asparagus racemosus)
- विदारीकंद (pueraria tuberosa)
- मुसली (chlorophytum borivilianum)
- कोकिलाक्ष (hygrophila auriculata)
आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श के बाद ही इन दवाओं का उपयोग किया जाना चाहिए। किसी भी व्यक्ति को स्व-दवा की सलाह नहीं दी जाती है।