तृणमूल कांग्रेस की फायरब्रांड प्रवक्ता और सांसद महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) हमेशा चर्चाओं में रहती हैं। उनके बयान कभी-कभी विवाद भी खड़े कर देते हैं। मगर महिलाओं के मुद्दों पर वह बहुत अधिकार से बात करती हैं। अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ पर भी वे एकदम बिंदास बात करती हैं। पिछले दिनों उन्हें अपनी यूट्रस रिमूवल सर्जरी के बारे में बहुत आत्मविश्वास के साथ बात की। हालांकि उनके भाषण में बहुत सारे मुद्दों पर बात की जा रही थी, मगर इस दौरान उन्होंने कहा, “I lost my uterus and gained a lot.” (मैंने अपना यूट्रस खोया, मगर बहुत कुछ पा लिया)।
यूट्रस (Uterus) अर्थात अपने गर्भाशय को लेकर महिलाएं इतनी ज्यादा सेंसेटिव होती हैं कि जब किन्हीं अनिवार्य स्वास्थ्य कारणों से इसे निकलवाने की सलाह दी जाती है, तब भी वे गहरे सदमे में चली जाती हैं। ये पुरानी परंपराओं की जकड़बंदी भी हो सकती है, जिसमें गर्भाशय अथवा बच्चेदानी के होने से एक स्त्री को संपूर्ण माना जाता है। मगर जब यही बच्चेदानी किसी स्त्री के स्वास्थ्य के लिए चुनौती बन जाए, तब डॉक्टर इसे निकलवाने की सलाह देते हैं। इससे घबराने की बजाए सही जानकारी के साथ इस स्थिति का सामना किए जाने की जरूरत है।
डॉ नीति कौटिश फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल, फरीदाबाद में डिपार्टमेंट ऑफ ऑब्सटैट्रिक्स एंड गाइनीकोलॉजी के हेड एवं डायरेक्टर हैं। वे कहते हैं, “हिस्टेरेक्टॉमी गभार्शय को सर्जरी के जरिए हटाने की प्रक्रिया है और गाइनीकोलॉजी में सबसे ज्यादा की जाने वाली प्रमुख शल्य-चिकित्साओं में से है। आमतौर पर हिस्टेरेक्टॉमी ऐसी मेडिकल कंडीशंस में की जाती है जब उपचार के अन्य विकल्प कारगर नहीं रह जाते या उन्हें करना नामुमकिन होता है।”
हिस्टेरेक्टॉमी क्यों की जा रही है और इसके बाद किस प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, यह समझना मरीज के लिए जरूरी होता है।
डॉ कौटिश कहते हैं, “ये आमतौर से बिनाइन ट्यूमर्स होते हैं, और इन्हें निकालने के लिए हिस्टेरेक्टॉमी की जरूरत होती है। इनकी वजह से मरीज को तेज दर्द, पीरियड्स के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव और अन्य कई तरह की जटिलताएं हो सकती हैं। जब भी दवाओं या मायोमेक्टोमी (फाइब्रॉयड्स को हटाना) कारगर साबित नहीं होती, तो हिस्टेरेक्टॉमी का सहारा लेना पड़ता है।”
इस कंडीशन में एंडोमीट्रियल टिश्यू की काफी ग्रोथ गर्भाशय से बाहर हो जाती है, जिसकी वजह से दर्द, अनियमित रक्तस्राव और इन्फर्टिलिटी की समस्या पैदा होती है। ऐसे में, जब अन्य उपचार जैसे हार्मोन थेरेपी या लैपरोस्कोपिक सर्जरी से राहत नहीं मिलती, तो हिस्टेरेक्टॉमी पर विचार किया जाता है, खासतौर से जब मामला काफी गंभीर होता है।
यह तब होता है जबकि पेल्विक मांसपेशियों में कमजोरी के चलते गर्भाशय खिसककर योनि नलिका में पहुंच जाता है। इसके लक्षणों में पेल्विक पर दबाव, पेशाब और मल त्याग में परेशानी महसूस होती है। कुछ गंभीर मामलों में, कई बार हिस्टेरेक्टॉमी के साथ-साथ पेल्विक फ्लोर रिपेयर करने से भी इन लक्षणों में राहत मिलती है।
गर्भाशय, गर्भग्रीवा (Cervix), डिंबग्रंथि (Ovary), या एंडोमीट्रियम के कैंसर (endometrial cancer) के इलाज में हिस्टेरेक्टॉमी जरूरी हो जाती है। यह इलाज की उस विस्तृत प्रक्रिया का एक हिस्सा होती है जिसके तहत कीमोथेरेपी और रेडिएशन भी दी जाती है।
जब अन्य किसी उपचार के बावजूद पेल्विक में दर्द की शिकायत दूर नहीं हो पाती और साथ ही, एडिनोमायोसिस या गंभीर पेल्विक इंफ्लेमेट्री रोग जैसी कंडीशंस भी होती हैं, तो मरीज के इलाज के लिए डॉक्टर अक्सर हिस्टेरेक्टॉमी के विकल्प को चुनते हैं।
डॉ नीति कौटिश कहते हैं, स्त्री रोगों में यह सबसे ज्यादा की जाने वाली सर्जरी में से एक है। मगर इसका यह अर्थ नहीं है कि इसके बाद आपको कोई परेशानी नहीं होगी। वास्तव में हिस्टेरेक्टॉमी के बाद पेश आने वाली चुनौतियां दो प्रकार की हो सकती हैं। पहली तो सर्जरी से संबंधित होती हैं और दूसरी, गर्भाशय (Uterus) निकालने की वजह से पैदा होने वाली चुनौतियां (hysterectomy side effects after surgery) होती हैं।
पिछले कुछ वर्षों में, लैपरोस्कोपिक सर्जरी का विकल्प उपलब्ध होने, सर्जरी की तकनीकों में सुधार होने के बाद से सर्जरी संबंधी जटिलताएं काफी कम हुई हैं। लैपरोस्कोपिक सर्जरी का लाभ यह होता है कि मरीज को अस्पताल में कम समय के लिए रुकना पड़ता है, वे जल्दी चलने-फिरने लायक होते हैं और ऑपरेशन के बाद कम जटिलताएं होती हैं।
हालांकि सर्जरी संबंधी जटिलताओं में काफी कमी आयी है, लेकिन इसके बावजूद गर्भाशय, मूत्राशय या बड़ी आंत संबंधी चोटें हो सकती हैं। जैसा कि अन्य किसी भी बड़ी सर्जरी में होता है, हिस्टेरेक्टॉमी के बाद इंफेक्शन और ब्लीडिंग जैसे रिस्क भी हो सकते हैं।
जहां तक गर्भाशय को निकालने से जुड़ी जटिलताओं का सवाल है, चूंकि गर्भाशय का प्रमुख कार्य प्रेग्नेंसी से जुड़ा है, इसलिए हिस्टेरेक्टॉमी के बाद आप प्रेग्नेंट नहीं हो सकते। इसके अलावा, कुछ हार्मोनल बदलाव भी शरीर में हो सकते हैं जो कि ओवरीज़ को हटाने के कारण पैदा होते हैं। ये बदलाव आमतौर से उसी तरह के होते हैं जो कि मेनोपॉज़ के बाद शरीर में दिखायी देते हैं।
मेनोपॉज़ से जुड़े लक्षणों में, बोन हैल्थ कम होता, योनि में शुष्कता (Vaginal dryness) प्रमुख हैं। लेकिन इन लक्षणों में दवाओं तथा सप्लीमेंट्स की मदद से राहत मिल सकती है। साथ ही, हरेक हिस्टेरेक्टॉमी में ओवरीज़ को नहीं निकाला जाता। अगर ओवरीज़ स्वस्थ होती हैं, तो उन्हें युवा मरीजों के मामले में छोड़ दिया जाता है, जिससे कि हार्मोनल उतार-चढ़ाव की समस्या न हो।
निष्कर्ष के तौर पर, कहा जा सकता है कि हिस्टेरेक्टॉमी कई तरह के प्रसूति रोगों (गाइनीकोलॉजिकल) के उपचार में महत्वपूर्ण सर्जिकल इंटरवेंशन की तरह है। जहां एक ओर यह मरीज को गंभीर किस्म के लक्षणों और कई बार जीवनघाती कंडीशंस से बचाती है, वहीं इसके साथ कुछ चुनौतियां भी हैं।
लेकिन सर्जरी से पहले मरीज की काउंसलिंग, सर्जरी के कारणों को ठीक तरीके से समझना, ऑपरेशन के बाद मरीज को जरूरी सपोर्ट आदि काफी महत्वपूर्ण पहलू हैं जो मरीजों को हिस्टेरेक्टॉमी के बाद पैदा होने वाले शारीरिक तथा भावनात्मक बदलावों से सही ढंग से निपटने में मददगार होते हैं। इनका एक फायदा यह होता है कि मरीजों को बेहतर लाइफ क्वालिटी का लाभ मिलता है और वे अपने शरीर में पैदा होने वाले बदलावों के साथ बखूबी तालमेल बैठा पाते हैं।
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