कितने सौभाग्य की बात है न कि देश में पिछले कुछ वर्षों में महिला खिलाड़ियों की संख्या बढ़ी है। मैरी कॉम और सानिया मिर्जा से लेकर साइना नेहवाल, पीवी सिंधू और स्मृति मंदाना तक- ये सभी महिलाएं देश का नाम रौशन कर रही हैं और हम सभी के लिए गौरव का विषय है। महिलाओं की स्थिति बदल रही है, महिलाएं सशक्त हो रही हैं, लेकिन कुछ स्थितियों में बदलाव नहीं आया है।
कुछ साल पहले तक महिला खिलाड़ी और एथलीट खुल कर पीरियड्स के विषय पर बात नहीं कर पाती थीं। हालांकि स्थिति में काफी सुधार आया है। पर अभी बहुत सुधार होने बाकी है। 2016 में कांस्य पदक विजेता चाइनीज तैराक फू युआनहई ने अपने समर ओलंपिक में पीरियड्स के अनुभव को साझा किया था। उन्होंने यह भी स्पष्ट तौर पर कहा था कि वह अपने पीरियड्स को एक बहाने की तरह इस्तेमाल नहीं कर रहीं हैं।
“कल रात मेरे पीरियड्स शुरू हो गए जिसके कारण मैं बहुत थकान और कमजोरी महसूस कर रही हूं। लेकिन यह बहाना नहीं हो सकता। सच यही है कि मैं अच्छे से नहीं तैर पाई।”,रेस के बाद मीडिया से कहती हैं फू।
और इसी के साथ हम महत्वपूर्ण प्रश्न पर लौटते हैं- क्या मासिक धर्म महिला एथलीट की परफॉर्मेंस को प्रभावित करते हैं?
हम यहां सिर्फ पीरियड्स के पांच दिनों की बात नहीं कर रहे क्योंकि हमारी मेंस्ट्रुअल साईकल तो पूरे महीने चलती ही रहती है, बस फेज अलग-अलग होते हैं। पीरियड्स महिला खिलाड़ियों को किस तरह प्रभावित करता है इस पर अधिक तथ्य मौजूद नहीं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि मेंस्ट्रुअल साईकल के मध्य के दिनों में महिलाओं के लिए परफॉर्म करना सबसे आसान होता है।
अगर किसी महिला की सायकल 28 दिन की है तो पहले 5 दिन ब्लड फ्लो होता है। उसके बाद 14 दिन तक फॉलिक्यूलर फेज चलता है जिस दौरान एग बन रहा होता है। इस दौरान महिलाओं को खास ख्याल रखना चाहिए क्योंकि इस वक्त टिश्यू इंजरी की ज्यादा सम्भावना होती है। इस समय घुटने के लिगामेंट एंटीरियर करूशत में चोट की बहुत सम्भावना होती है।
अगले 14 दिन लूटियल फेज होता है, जिसमें एग स्पर्म का इंतजार करता है और फेर्टिलाइजेशन ना होने पर बाहर निकलने लगता है। इस फेज में एस्ट्रोजन स्तर बढ़ जाता है, जिसके कारण शरीर को परफॉर्म करते वक्त ज्यादा कार्ब्स की जरूरत पड़ती है।
कई गम्भीर मामलों में एथलीट को पीरियड्स होने ही बन्द हो जाते हैं। इस स्थिति को अमेनोरिया कहते हैं। इस में दिमाग यूटेरस को गलत सिग्नल दे देता है, जिसके कारण पीरियड्स होते ही नहीं हैं। ज्यादा कठोर ट्रेनिंग, जो अधिकांश सभी एथलीट को मिलती है, एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर को कम कर देती है। जिससे पीरियड्स होने ही खत्म हो जाते हैं।
साथ ही अमेनोरिया में और भी कई समस्याएं होती हैं – जैसे हड्डियां कमजोर होना, दिल सम्बंधी बीमारी होना इत्यादि। ऐसा माना जाता है कि वेट कम होने के कारण कॉर्टिसोल स्तर में अनियंत्रण हो जाता है जिससे पीरियड्स नही आते। जब महिला सही BMI में पहुंच जाती हैं, पीरियड्स दोबारा शुरू हो जाते हैं।
तीन बार राष्ट्रीय 200 मीटर चैंपियन रह चुकी आएशा बिलिमोरिया बताती हैं,”ज्यादातर महिलाएं पीरियड्स में ट्रेनिंग के दौरान बहुत मुश्किलों से गुजरती हैं। अपने टीनेज और शुरुआती 20s में मैंने अपने पीरियड्स का असर अपनी परफॉर्मेंस पर नहीं पड़ने दिया। मैं खुद को मानसिक रूप से तैयार रखती थी। खुद को समझाती थी कि इन दिनों में दौड़ने से मुझे आराम मिलेगा। लेकिन अब 30s में आने के बाद मेरा शरीर खुद ही जाहिर कर देता है कि मुझे शुरुआती तीन दिन आराम करना चाहिए।”
पीरियड्स की डेट नियंत्रित करने के लिए कई एथलीट बर्थ कंट्रोल पिल्स लेती हैं, लेकिन किसी प्रतियोगिता से पहले इन्हें नहीं लेना चाहिए क्योंकि आपकी परफॉर्मेंस पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।
एक दूसरा तरीका जिसे महिला खिलाड़ी इस्तेमाल करती हैं, वह है पीरियड ट्रैकर। “मेरे लिए ट्रैकर बहुत कारगर होता है। मुझे पीरियड्स से पहले ही पता चल जाता है कि डेट आने वाली है जिससे मैं मानसिक रूप से तैयार हो जाती हूं।”,बताती हैं कानपुर की राज्य स्तरीय एथलीट झनक दुबे।
हर महिला अलग है, हर शरीर अलग है। और अंततः अपने शरीर की सुनना ही महत्वपूर्ण है।