सेक्सुअल हेल्थ के लिए पीरियड जरूरी है। पीरियड होने के दौरान कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह पीरियड क्रैम्प, पीठ के निचले हिस्से में दर्द, थकान या परेशानी के रूप में सामने आ सकता है, जो सामान्य है। कभी-कभी पीरियड फ्लो की भी समस्या हो जाती है। इस दौरान हैवी ब्लीडिंग होने लगती है। हैवी ब्लीडिंग होना सामान्य बात नहीं है। यह कुछ विशेष कारणों से हो सकता है। इसका उपचार किया जा सकता है। आयुर्वेद में बिना साइड इफेक्ट के हैवी ब्लीडिंग का उपचार (ayurvedic treatments for heavy bleeding) किया जा सकता है।
यूट्रस में होने वाले फाइब्रॉएड या पॉलीप्स (non-cancerous growth), जो कैंसरकारक नहीं होते हैं।
यूट्रस या सर्विक्स का कैंसर भी हैवी फ्लो का कारण हो सकता है।
कुछ प्रकार के बर्थ कंट्रोल जैसे कि इंट्रायूटरीन डिवाइस या गर्भावस्था से संबंधित समस्याएं, जैसे कि मिसकैरेज या अन्य प्रकार की समस्या असामान्य ब्लड फ्लो का कारण बन सकती है।
आयुर्वेद मानता है कि वात दोष के कारण हैवी ब्लीडिंग होती है। वात पीरियड्स के लिए जिम्मेदार होता है।
पित्त दोष कई कारणों से कम मात्रा में बढ़ता है और तेजी से भी बढ़ता है। यह स्थिति वायु और अग्नि के संयोग जैसी होती है। थोड़ी सी आग इसे कई गुना बढ़ा देती है। इस मामले में भी ऐसा ही होता है, क्योंकि इसमें पित्त की तरलता होती है। जब यह तरलता बढ़ जाती है, तो इससे अत्यधिक रक्तस्राव होता है। इसलिए आयुर्वेद में उपचार पित्त और वात संतुलन पर केंद्रित है।
सबसे पहले आहार और जीवनशैली को सही करना जरुरी है। हार्मोनल असंतुलन, उपवास, बहुत अधिक सेक्स करना, मसालेदार भोजन का सेवन, पेनीट्रेटिंग फ़ूड जैसे कि लहसुन या सरसों का सेवन, भारी व्यायाम या थकावट भी हैवी फ्लो के कारण बन सकते हैं। कारण को दूर किये बिना औषधियों का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसके बाद डायग्नूज करना जरूरी है।
इसमें मुख्य रूप से वात दोष को संतुलित किया जाता है। आयुर्वेद में कई हर्बल औषधियां हैं, जो सहायक हो सकती हैं। दवाओं की तुलना में हर्ब्स को शरीर के लिए अधिक सही माना जाता है। इसलिए वे अधिक सुरक्षित होती हैं। आयुर्वेद में दवाएं उम्र और फाइब्रॉएड के स्थान के आधार पर बेहतर तरीके से काम कर सकती हैं। यदि महिला की उम्र 30 वर्ष से कम है, तो यष्टिमधु दिया जा सकता है। यदि उम्र कम से कम 30 वर्ष है, लेकिन मेनोपॉज फेज में नहीं पहुंची है, तो राजहप्रवर्तिनी वटी से मदद मिलेगी।
जटिल मामलों में जब दवाएं काम नहीं करती हैं, महिला को पंचकर्म की आवश्यकता हो सकती है। इसमें दोषों को संतुलित करना होता है। पंचकर्म वात और पित्त दोनों दोषों में मदद कर सकता है। पंचकर्म के लिए रोगी को स्थिति के आधार पर 8 या 16 दिनों तक आयुर्वेदिक अस्पताल या क्लिनिक में भर्ती रहना होगा। पंचकर्म पांच क्रियाओं के समूह को कहा जाता है।
इसमें 5 चरणों द्वारा शरीर से विषाक्त पदार्थों को खत्म किया जाता है। ये तकनीक शरीर से टॉक्सिन्स निकालकर शुद्ध करने का सबसे आसान तरीका है। इसमें वमन, विरेचन, वस्ति, नस्य जैसी क्रियाएं शामिल होती हैं।
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