फर्टिलिटी प्रिज़र्वेशन (Fertility Preservation) विभिन्न चिकित्सा तकनीकों और प्रक्रियाओं द्वारा किया जाता है। जिसका उद्देश्य ज़्यादा उम्र होने पर भी गर्भधारण (Pregnancy after 35) करने की क्षमता को सुरक्षित करना है। यह उन महिलाओं के लिए एक वरदान के समान है, जो किसी ऐसी परिस्थिति से गुजर रही हैं, जिनसे उनकी फर्टिलिटी को ख़तरा हो सकता है। अगर आप भी किसी कारणवश देर से यानी 35 की उम्र के बाद प्रेगनेंसी प्लान करना चाहती हैं, तो आईवीएफ (Invitro fertilization) आपको 5 विकल्प उपलब्ध करवाता है।
फर्टिलिटी प्रिज़र्वेशन भविष्य के लिए प्रजनन विकल्पों को सुरक्षित करता है। मेडिकल इलाज और बढ़ती उम्र के कारण फर्टिलिटी कम होने या लिंग परिवर्तन के मामले में फर्टिलिटी प्रिज़र्वेशन सहायक सिद्ध होता है। यह कैसे किया जाता है और इसके अंतर्गत कौन से विकल्प आजमाए जा सकते हैं, आइए आगे इस लेख में जानते हैं।
इसे ऊसाइट क्रायोप्रिज़र्वेशन भी कहते हैं। इस विधि में महिलाओं के लिए अंडे की फ्रीजिंग और पुरुषों के लिए शुक्राणु की फ्रीजिंग की जाती है। इसमें अंडे या शुक्राणु निकालकर उन्हें स्टोर कर लिया जाता है। जब दंपति गर्भधारण के लिए तैयार हो, तब इनकी मदद से इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) की प्रक्रिया की जा सकती है। यह विधि कैंसर पीड़ित रोगियों, अकेली महिला या पुरुषों के लिए भी उपयोगी है।
यह उन महिलाओं के लिए एक अच्छा विकल्प है, जो इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आई. वी. एफ.) जैसी असिस्टेड रिप्रोडक्टिव तकनीकों के विकल्प पर विचार कर रही हैं। इस विधि में अंडों और शुक्राणु के फ़र्टिलाइज़ेशन से बने एंब्रियो को फ्रीज करके रखा जा सकता है। जिसे बाद में निकालकर गर्भ में स्थापित किया जा सकता है।
यह विधि तब बहुत उपयोगी होती है, जब दंपति अपने करियर, व्यक्तिगत रुचि या किसी मेडिकल स्थिति जैसे कारणों से अभी बच्चे पैदा करना नहीं चाहते हैं।
यह एक अत्याधुनिक विधि है। इसमें ओवरी का एक छोटा टुकड़ा निकालकर उसे फ्रीज कर दिया जाता है, ताकि भविष्य में आई. वी. एफ. जैसी प्रक्रिया के लिए उसका इस्तेमाल हो सके। यह विधि अभी प्रयोग के चरण में है, लेकिन यौवन अवस्था में आ रही लड़कियों के लिए यह उपयोगी हो सकती है।
महिलाओं की फर्टिलिटी को सुरक्षित रखने के लिए ओवरीज़ को कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी जैसे इलाज से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए हार्मोनल दवाओं का उपयोग किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में कुछ समय के लिये ओवरीज़ के काम को रोक दिया जाता है, ताकि इलाज कराते वक़्त फर्टिलिटी को कोई भी नुक़सान पहुंचने की संभावना कम हो जाए।
कैंसर या किसी अन्य मेडिकल समस्या वाले लोग अपनी फर्टिलिटी को सर्जरी की मदद से प्रिज़र्व करा सकते हैं। फर्टिलिटी को प्रिज़र्व (Fertility Preservation) करने के लिये ओवेरियन ट्रांसपोज़िशन या टेस्टिकुलर स्पर्म एक्सट्रैक्शन का उपयोग किया जा सकता है।
फर्टिलिटी को कुछ दवाओं और हार्मोनल उपचारों की मदद से अस्थायी रूप से रोका या फिर संरक्षित किया जा सकता है। यह लिंग परिवर्तन कराने वाले लोगों के लिए एक उपयोगी विधि हो सकती है।
असल में प्रि-इंप्लांटेशन जेनेटिक परीक्षण (पीजीएस या पीजीटी-ए) डायग्नोस्टिक कंपनियों द्वारा की जाती है। जिसमें इन विट्रो फर्टिलाइज्ड (आई. वी. एफ.) एंब्रियो को गर्भ में स्थापित करने से पहले उसकी क्रोमोसोमल सामग्री में संख्यात्मक क्रोमोसोमल विकारों का परीक्षण किया जाता है।
ताकि गर्भ में स्थापित करने के लिए केवल सामान्य संख्या वाले एंब्रियो को प्राथमिकता दी जा सके। गर्भ में स्थापित करने से पहले अनुवांशिक विकारों से मुक्त एंब्रियो का चयन करने के लिए फर्टिलिटी प्रिज़र्वेशन की विधियों के साथ पीजीटी का उपयोग किया जा सकता है।
फर्टिलिटी के प्रिज़र्वेशन में मनोवैज्ञानिक सहायता और काउंसलिंग भी शामिल होती है, क्योंकि यह प्रक्रिया जटिल और भावनात्मक हो सकती है। इसलिए इन प्रक्रियाओं द्वारा व्यक्ति के शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में बात करना ज़रूरी होता है।
ये सभी तकनीकें अपना परिवार शुरू करने के विकल्पों पर नियंत्रण प्रदान करती हैं, और लोगों व दंपतियों को भविष्य में कब प्रजनन करना है, यह निर्णय लेने में समर्थ बनाती हैं। परिवार की विकसित होती संरचनाओं, चिकित्सा में हो रही प्रगति और बदलते सामाजिक मानदंडों के संदर्भ में इन विधियों का महत्व भी बढ़ता जा रहा है।
प्रजनन का सही विकल्प चुनने से पहले महिला को अपने फर्टिलिटी एक्सपर्ट से राय ज़रूर लेनी चाहिए, क्योंकि इसमें महिला की उम्र, स्वास्थ्य और फर्टिलिटी के लक्ष्यों की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
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