शरीर में बाइल यानि पित्त को स्टोर, प्रोडयूस और सिक्रीट करने वाला गॉलब्लैडर फैट्स के डाइजेशन में मदद करता है। गॉलब्लैडर में अचानक उठने वाला दर्द गॉलस्टोन का मुख्य कारण साबित होता है। फैट्स से भरपूर पित्ताशय की थैली में दर्द उठने से कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पेट और पीठ में बढ़ने वाला ये दर्द उल्टी और दस्त के साथ और भी ज्यादा तकलीफदेह हो सकता है। फैट्स के पाचन में दिक्कत से दर्द बढ़ता है और यूरिन के रंग में भी बदलाव होने लगता है। मगर ये सभी लक्षण हैं, मूल समस्या है गॉलब्लैडर में परेशानी का होना। चलिए जानते हैं क्या हैं इसके कारण और गॉलब्लैडर में यह समस्या क्यों बढ़ने लगती है (gallbladder disease)।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार गॉलब्लैडर बाइलरी सिस्टम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जो बाइल यानि पित्त के प्रोडक्शन, स्टोरज और सिक्रीशन के लिए प्रयोग में लाया जाता है। बाइल एक गाढ़ा तरल पदार्थ होता है। इसका रंग हरा, भूरा या पीला होता है। बाइल की मदद से फैट्स के पाचन में सहायता प्राप्त होती है, जिसका उत्पादन लिवर करता है। लिवर एक दिन में 27 से 34 द्रव औंस बाइल प्रोड्यूस करता है।
पित्ताशय की थैली पेट के दाहिने ऊपरी हिस्से में होती है और लिवर के नीचे पाया जाता है। ये ब्रेस्टबोन के नीचे से शुरू होकर नाभि तक होता है, जो नाशपाती के आकार की होती है। ये फैट्स से भरपूर आहार के डाइजेशन में मदद करता है। इसके लिए गॉलब्लैडर श्रिंक होता है और बाइल को स्टोर करके सिक्रीट करता है।
इस बारे में बातचीत करते हुए आर्टिमिस अस्पताल गुरूग्राम में सीनियर फीज़िशियन डॉ पी वेंकट कृष्णन का कहना है कि ऑयली फूड का नियमित सेवन और एक्सरसाइज की कमी से स्टोन फॉरमेशन का रिस्क बना रहता है। पुरूषों के मुकाबले महिलाओं में 30 की उम्र के बाद इस समस्या को अधिक पाया जाता है। वे महिलाएं जो लंबे वक्त से किसी बीमारी से ग्रस्त रही हों, उनमें इस समस्या का जोखिम तेज़ी से बढ़ने लगता है।
इसके अलावा ये एक जेनेटिकल डिज़ीज़ भी है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ सकती है। दरअसल, शारीरिक गतिविधि के चलते गॉलब्लैडर में पाया जाने वाला वसा और बाइल सॉल्ट स्टोन का रूप लेने लगते हैं।
पथरी के कारण पित्त की थैली में बढ़ने वाली सूजन को एक्यूट कोलेसिस्टिटिस कहा जाता है, जब कि बैक्टीरियल इंफे्क्शन से बढ़ने वाली समस्या एक्युलकुलस कोलेसिस्टिटिस कहलाती है।
कोलेडोकोलिथियासिस उस स्थिति को कहते हैं, जब गॉलस्टोन बाइल डक्ट को बाधित करने लगता है। ऐसे में बाइल लिवर में वापिस लौटने लगता है। इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में दर्द महसूस होता है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार पित्ताशय की पथरी को उसकी संरचना यानि कॉम्पोज़िशन के आधार पर क्लासीफाईड किया जाता है। पित्त में फिजिकल और कैमिकल अलटरेशन पाई जाती हैं। इसे हाई कोलेस्ट्रॉल या बिलीरुबिन कॉसनटरेशन के आधार पर विभाजित किया जाता है। लगभग 90 फीसदी पित्त की पथरी कोलेस्ट्रॉल से होती है। बाकी बची 10 फीसदी पथरी काले और भूरे रंग के पत्थरों से बनी होती हैं। ये खासतौर से कैल्शियम बिलीरुबिनेट, कैल्शियम कॉम्प्लेक्स और म्यूसिन ग्लाइकोप्रोटीन से बनते हैं।
नेशनल हेल्थ एंड न्यूटरीशन एग्ज़ामिनेशन के अनुसार शरीर में फाइबर की कमी गॉलस्टोन डिज़ीज़ के जोखिम को बढ़ा देती है। कम मात्रा में फाइबर, हाई रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट और वसा की उच्च मात्रा पित्त पथरी का कारण साबित होती है।
एनसीबीआई की रिसर्च के अनुसार डायबिटीज़ के चलते गॉलब्लैडर में पथरी का जोखिम बना रहता है। मधुमेह से पीडित लोगों में इसका संभावना बढ़ जाती है। दरअसल, इस समस्या से ग्रस्त लोगों में ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर उच्च होता है, जो एक प्रकार के फैट्स हैं। ये ब्लड में घुलकर पथरी का रूप ले लेता है। इसके चलते गॉलब्लैडर में स्टोन समेत अन्य समस्याओं का खतरा रहता है।
वे लोग जो मोटापे का शिकार होते हैं, उनमें में पित्ताशय की थैली का खतरा बढ़ने लगता है। दरअसल, ओवरवेट लोगों के गॉलब्लैडर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ने लगती है, जिससे स्टोन्स का खतरा बना रहता है। शरीर में मोटापा बढ़ने से वसा एकत्रित होने लगता है, जिससे पित्त की थैली में वो वसा पथरी का रूप ले लेता है। वहीं दूसरी ओर तेज़ी से वज़न का घटना भी पित्ताशय की थैली का कारण साबित होने लगता है।
पोषक तत्वों की कमी गॉलस्टोन्स का खतरा बढ़ने लगता है। डाइट में रिफाइंड कार्ब्स और सेचुरेटिड फैट्स पाचन में गड़बड़ी का कारण साबित होते हैं। डाइजेशन की समस्या बढ़ने से फैट्स एकत्रित होकर स्टोन का रूप लेने लगते हैं। आहार में विटामिन, मिनरल और फाइबर को सम्मिलित करने से डाइजेशन में सुधार होने लगता है।
एक्सपर्ट के अनुसार परिवार में किसी भी व्यक्ति को होने वाली गॉलब्लैडर की समस्या अगली पीढ़ियों में होने का खतरा बना रहता है। दरअसल, गॉलब्लैडर डिज़ीज़ एक जेनेटिक कॉम्पोनेंट है, जिसके चलते गॉलस्टेन का खतरा रहता है। जीन म्यूटेशंस के चलते लिवर से बाईल की ओर बढ़ने वाला वसा का मूवमेंट प्रभावित होने लगता है, जिससे गॉलस्टोन का खतरा बढ़ने लगता है और सूजन की समस्या बनी रहती है।
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