अगर आप पूरी दुनिया के किसी भी बड़े शहर में जाते हैं और आसमान की तरफ देखते हैं, तो आपको हवा में लाखों छोटे-छोटे कण तैरते हुए दिखाई देंगे। इसका मतलब है कि हवा प्रदूषित है। यह वायु प्रदूषण (Air pollution) न केवल आसपास के वातावरण को धुंधला करता है, बल्कि वायु के कण लाखों शहरवासियों के फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे उनके समग्र स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। ये आपके मस्तिष्क में प्रवेश कर आपको न्यूरोलॉजिकल समस्याएं (Air pollution causes neurological problems) भी दे सकते हैं।
प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार, प्रदूषित हवा में जो जहरीले कण हम सांस के द्वारा शरीर के भीतर लेते हैं, वे फेफड़ों से मस्तिष्क तक रक्तप्रवाह के माध्यम से पहुंच सकते हैं। इससे मस्तिष्क संबंधी विकार और नर्वस सिस्टम संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
अतीत में हुए कई अध्ययनों का हवाला देते हुए कहा गया है कि वायु प्रदूषण पार्किंसंस, अल्जाइमर और अन्य प्रकार के मनोभ्रंश सहित नर्वस सिस्टम से जुड़ी बीमारियों की संभावना को काफी बढ़ा सकता है।
बर्मिंघम विश्वविद्यालय और चीन में अनुसंधान संस्थानों के विशेषज्ञ, जिन्होंने यह अध्ययन किया, बताते हैं कि वायु में मौजूद प्रदूषण साँस के द्वारा महीन कणों के रूप में शरीर में एक सीधे रास्ते से प्रवेश कर रक्त प्रवाह के माध्यम से आपके पूरे शरीर में आराम घूम सकते है। इतना ही नए निष्कर्षों में यह भी संकेत मिलता है कि प्रदूषित वायु कण अन्य मुख्य पाचन तंत्र से जुड़े अंगों की तुलना में मस्तिष्क में अधिक समय तक रह सकते हैं।
इतना ही नहीं, वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क विकारों का अनुभव करने वाले रोगियों के मानव मस्तिष्क मेरु द्रव में प्रदूषण के विभिन्न महीन कण भी पाए हैं, जो स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं कि यह विषाक्त कण हवा में फैले पदार्थों में से ही हैं जो मस्तिष्क तक पहुंच गए हैं।
” केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system) पर हवाई महीन कणों के हानिकारक प्रभावों के बारे में हमारे पास अभी पूरी जानकारी नहीं है। बर्मिंघम विश्वविद्यालय के सह-लेखक प्रोफेसर इसेल्ट लिंच ने एक बयान में कहा, यह काम इनहेलिंग कणों और बाद में शरीर में इनके चारों ओर घूमने, के बीच की कड़ी पर नई रोशनी डालता है।
“आंकड़ों से पता चलता है कि आठ गुना तक महीन कणों की संख्या यात्रा करके, रक्तप्रवाह के माध्यम से, फेफड़ों में सीधे नाक से होते हुए मस्तिष्क तक पहुंच सकने वाले वायु प्रदूषण और उन कणों के हानिकारक प्रभावों के बीच संबंधों पर नए सबूत जोड़ने की ही कोशिश इस अध्ययन में की गई है।”
जबकि वायु प्रदूषण कमोबेश कई जहरीले घटकों का मिश्रण है, पार्टिकुलेट मैटर (पीएम, विशेष रूप से पीएम 25 और पीएम01 जैसे महीन कण), ऐसे हैं जिनके बारे में हमें सबसे ज्यादा चिंता करनी चाहिए। अल्ट्रा-फाइन कण, विशेष रूप से, शरीर के भीतर मौजूद सुरक्षा प्रणालियों से बचने में सक्षम हैं, और प्रहरी प्रतिरक्षा कोशिकाओं और जैविक बाधाओं को पार कर सकते हैं ।
अध्ययन का निष्कर्ष है कि सांस के कण हर बाधा को पार कर सकते हैं और एक बार जब वे मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं, तो वे मस्तिष्क-में रक्त अवरोधक बन सकने के साथ ही आसपास के ऊतकों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। जब वे वहां पहुंच जाते हैं, तो वायु प्रदूषण के इन कणों को साफ करना मुश्किल हो सकता है और अन्य अंगों की तुलना में यह मस्तिष्क में अधिक समय तक बने रह सकता है
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