आजकल की अनहेल्दी लाइफस्टाइल और कम शारीरिक गतिविधियों के कारण पुरुषों में ‘लो स्पर्म काउंट’ जैसी समस्या बहुत आम हो जाती है। कम स्पर्म काउंट की समस्या को मेडिकल टर्मिनोलॉजी में ‘ओलिगोस्पर्मिया’ भी कहा जाता है। WHO के अनुसार, लो स्पर्म काउंट एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें इजैक्युलेशन के दौरान निकलने वाले सीमन में शुक्राणु यानी ‘स्पर्म’ की संख्या कम होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रति मिलीलीटर सीमन में 15 मिलियन से कम स्पर्म होने की स्थिति को ‘लो स्पर्म काउंट’ की श्रेणी में रखा है।
इसी मुद्दे पर बात करे हुए वरदान आईवीएफ क्लीनिक के फाउंडर डॉ. वरीश कुमार बताते हैं कि ओलिगोस्पर्मिया, एक ऐसी स्थिति है जिसमें किसी पुरुष के वीर्य में सामान्य से कम शुक्राणु होते हैं। डॉ कुमार के अनुसार, किसी पुरुष के वीर्य में सामान्यतः प्रजनन क्षमता के लिए सामान्य माने जाने वाले शुक्राणु से कम शुक्राणु होते है, तो यह प्रेग्नेंसी को और अधिक चुनौतीपूर्ण बना सकती है।
वहीं, यदि आप या आपका कोई परिचित कम शुक्राणुओं की संख्या का अनुभव कर रहा है, तो यह समझना महत्वपूर्ण है कि इसके कई संभावित कारण और उपचार विकल्प हैं।
लो स्पर्म काउंट के कारण बताते हुए डॉ. कुमार कहते है कि इस समस्या के पीछे कई कारक है। उन में से कुछ मुख्य कारक कई पुरुषों में दिखाई पड़ें हैं।
वैरिकोसेले एक ऐसी समस्या है, जिसमें स्क्रोटम में कुछ नसों का इज़ाफ़ा हो जाता है और यह नसें स्क्रोटम से ऑक्सीजन रहित रक्त को दूर ले जाती हैं। साथ ही स्क्रोटम में बढ़ी हुई यह नसें, टेस्टिकल्स को गर्म कर सकती हैं, जिससे स्पर्म प्रोडक्शन प्रभावित हो सकता है।
पुरुषों में ‘हॉर्मोनल इम्बैलेंस’ के कारण टेस्टोस्टेरोन के स्तर में उतार-चढ़ाव होते हैं, जिसके कारण स्पर्म की प्रोडक्शन में प्रभाव पड़ता है और ‘लो स्पर्म काउंट’ की समस्या हो सकती है।
सेक्सुअल ट्रांसमिलटेड इंफेक्शन (एसटीआई) या एपिडीडिमाइटिस जैसे सेक्सुअल इंफेक्शन भी स्पर्म प्रोडक्शन और स्पर्म मोबिलिटी को प्रभावित करते है।
किसी भी तरह की टेस्टिकल्स पर या शारीरिक तौर पर लगी चोट के कारण स्पर्म बनाने वाले क्षतिग्रस्त हो सकती हैं।
धूम्रपान, अत्यधिक शराब का सेवन, नशीली दवाओं का उपयोग और मोटापा जैसी लाइफस्टाइल की कमियां भी स्पर्म काउंट को कम करती है और लो स्पर्म काउंट की समस्या पैदा करती है।
स्पर्म काउंट की कमी का एक कारण आहार में पोषण की कमी भी हो सकता है। एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन, जिंक और सेलेनियम जैसे खनिजों से भरपूर आहार शुक्राणुओं की संख्या में सुधार कर सकता है। फल, सब्जियाँ, नट्स और प्रोटीन जैसे खाद्य पदार्थ फायदेमंद होते हैं।
लो स्पर्म काउंट का मुख्य लक्षण गर्भधारण में असमर्थता होता है। लेकिन लो स्पर्म काउंट के मुख्य लक्षण पर बात करते हुए डॉ. कुमार बताते हैं कि इस समस्या के कई कारण हो सकते है, उनमें से मुख्य कारण
डॉ. कुमार बताते है कि लो सेक्स ड्राइव भी स्पर्म काउंट की कमी का एक लक्षण हैं। इसके साथ ही इरेक्शन में समस्या आना भी लो स्पर्म काउंट की समस्या को प्रदर्शित करता है।
स्क्रोटम में सूजन या गांठ दिखना भी इसका एक लक्षण होता है। हॉर्मोनल इम्बैलेंस के कारण शरीर में बॉडी हेयर में कमी दिखाई देना भी इसका एक लक्षण होता है।
लो स्पर्म काउंट का उपचार कई कारणों पर निर्भर करता है, जिसमें जीवनशैली में बदलाव से लेकर मेडिकल ट्रीटमेंट भी शामिल है ।
लाइफस्टाइल में बदलाव करके इस समस्या का बचाव किया जा सकता है। दैनिक कार्यों में सुधार इसके लिए बहुत जरूरी है।
मोटापा हार्मोनल असंतुलन में योगदान करता है, जिससे शुक्राणुओं की संख्या कम हो सकती है। इसलिए स्वस्थ वजन बनाए रखने से इसमें मदद मिल सकती है।
विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर संतुलित आहार खाने से शुक्राणु स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है। जिंक, विटामिन सी, विटामिन डी और ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर खाद्य पदार्थ शामिल करें।
गर्म टब या सौना जैसी गर्मी के अत्यधिक संपर्क में आने से शुक्राणु उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, इसलिए गर्म वातावरण से बचें।
स्ट्रेस न सिर्फ स्पर्म की समस्याओं को कम करता है बल्कि आपको अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण भी बनता है। इसलिए ध्यान और योग जैसे तनाव प्रबंधन तकनीकें आपके लिए सहायक हो सकती हैं।
शराब और तंबाकू का सेवन सीमित करें: अत्यधिक शराब और धूम्रपान शुक्राणुओं की संख्या को कम करने में योगदान कर सकते हैं। इन आदतों को कम करना या छोड़ना फायदेमंद हो सकता है।
इस समस्या को दूर करने के लिए मेडिकल ट्रीटमेंट भी सहायक होता है।
-रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजीस : लो स्पर्म काउंट के गंभीर मामलों में, कपल्स गर्भावस्था प्राप्त करने के लिए विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) या इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन (आईसीएसआई) जैसी तकनीकों की मदद ले सकते हैं
-सर्जरी: यदि कोई शारीरिक रुकावट या वैरिकोसेले है, जो स्पर्म प्रोडक्शन में बाधा डाल रही है, तो सर्जिकल हस्तक्षेप आवश्यक होता है। सर्जरी इन समस्याओं को ठीक कर सकती है।
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